अमावस्या तिथि के धार्मिक महत्व के कारण इस दिन दीवाली लक्ष्मी पूजा की जाती है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि सूर्य ग्रहण मात्र अमावस्या के दिन ही होता है। अतः दीवाली पूजा के दिन सूर्य ग्रहण होना असाधारण व असामान्य नहीं है। हालाँकि सूर्य ग्रहण पृथ्वी के एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र तक ही सीमित होता है।
कई वर्षों में दीवाली के दौरान भारत में सूर्य ग्रहण नहीं देखा गया किन्तु संयुक्त राज्य, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका तथा कनाडा आदि देशों में यह सूर्य ग्रहण देखा गया है। उपरोक्त देशों में उन भारतीय प्रवासियों की महत्वपूर्ण जन-सँख्या है जो दीवाली पूजा करते हैं तथा उन्हें दीवाली पूजा पर ग्रहण से सम्बन्धित जानकारी नहीं प्राप्त होती है। भारत में भी दीवाली के दिन सूर्य ग्रहण होने पर दीवाली पूजा मुहूर्त के सन्दर्भ में अनेक भ्रांतियाँ होती है।
अतः द्रिक पञ्चाङ्ग टीम ने धर्म ग्रन्थों में उपलब्ध तथ्यों की सहायता से सूर्य ग्रहण के दौरान दीवाली पूजा के विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है।
भारत में अधिकांश पण्डितों एवं ज्योतिषियों ने यह स्वीकारा है कि यदि आपके निवास स्थान से सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देता है तो सूर्य ग्रहण के समय किये जाने वाले किसी भी अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती है। उदाहरणतः यदि सूर्य ग्रहण मात्र संयुक्त राज्य अमेरिका में ही दिखाई दे रहा है तो भारत में ग्रहण सम्बधी क्रियाकलाप नहीं किये जाने चाहिये। वहीं इसके विपरीत परिस्थिति होने पर भी यही नियम लागु होगा। निर्णय सिन्धु एवं धर्म सिन्धु इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए आधिकारिक हिन्दु अभिलेख हैं। इन पुस्तकों के अनुसार यदि सूर्य ग्रहण रात्रिकाल में है तथा चन्द्र ग्रहण दिन के समय है तो किसी भी प्रकार का शुद्धि स्नान एवं दान आदि आवश्यक नहीं होता है। धर्म सिन्धु में स्पष्ट वर्णन है कि ग्रहण के नेत्रों के सामने से अदृश्य होते ही पुण्यकाल समाप्त हो जाता है, यद्यपि चाहे वह देश के अन्य भागों में दिखाई दे रहा हो।
यह दोनों ही धर्म ग्रन्थ उत्सव व अनुष्ठान निर्धारित करने हेतु विशाल रूप से स्वीकारे जाते हैं तथा इन धर्म ग्रन्थों में स्पष्ट वर्णन होने के पश्चात् भी कुछ ज्योतिष अपने अल्पज्ञान एवं अनिभिज्ञता के कारण उस स्थान पर भी ग्रहण सम्बन्धी अनुष्ठान करने तथा लक्ष्मी पूजा न करने का सुझाव देते हैं जिस स्थान पर सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देता है।
लोकप्रिय समाचार पत्रों और ब्लॉग में प्रकाशित लेखों में ग्रहणकाल के समय पूजा को वर्जित बताया जाता है। हालाँकि निर्णय सिन्धु व धर्म सिन्धु के अनुसार ग्रहणकाल में देव पूजन, मन्त्रजाप तथा हवन आदि अनुष्ठान अनिवार्य रूप से करना चाहिये। मान्यता है कि ग्रहणकाल में किये जाने वाले पूजा व होम आदि का पुण्य अनेकों गुना अधिक हो जाता है।
हिन्दु धर्म पर विभिन्न पुस्तकों में ग्रहण से पूर्व स्नान, ग्रहण काल के समय पूजा व हवन तथा ग्रहण समाप्त होने पर स्नान एवं दान इत्यादि करने का सुझाव दिया गया है। निद्रा, मल-मूत्र त्याग, सम्भोग, उबटन तथा भोजन आदि गतिविधियों को ग्रहणकाल के समय निषिद्ध माना जाता है। किसी भी धर्म ग्रन्थ में ग्रहण काल के समय लक्ष्मी पूजा अथवा किसी भी अन्य पूजा को निषिद्ध नहीं कहा गया है।
सामान्यतः लक्ष्मी पूजा का सर्वाधिक शुभ समय सूर्यास्त के उपरान्त प्रदोष काल के दौरान होता है। अतः ग्रहण काल के समय लक्ष्मी पूजा करना व्यावहारिक रूप से सम्भव नहीं है, क्योंकि पूजा के मुहूर्त से पूर्व ही सूर्य देव अस्त हो जाते हैं।
सूतक सूर्य ग्रहण से पूर्व चार प्रहर की एक समयावधि है जो कि समस्त प्रकार की भोग व इन्द्रियजन्य गतिविधियों के लिये प्रतिबन्धित है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्योदय से सूर्योदय तक कुल आठ प्रहर होते हैं तथा चार प्रहर लगभग 12 घण्टे की अवधि के बराबर होते हैं। स्मरण रहे कि ग्रहण आरम्भ होने के पूर्व से सूतक काल माना जाता है तथा यह ग्रहण की समाप्ति तक रहता है। बालकों, वृद्धजनों तथा रोगियों के लिये सूतक काल मात्र तीन मुहूर्त तक रहता है, जो कि लगभग 2 घण्टे व 24 मिनट समय के बराबर होता है।
यदि हम ये मानें की ग्रहण के समय सूतक काल में लक्ष्मी पूजा निषिद्ध है, तब भी प्रदोष काल के दौरान लक्ष्मी पूजा के समय के कारण इस पर सूतक लागू नहीं होगा। मात्र दो ही सम्भावनायें व परिस्थितियाँ हैं, जिनमें दीवाली पर सूर्यग्रहण के समय सूतक काल माना जाता है। प्रथम सम्भावना है कि लक्ष्मी पूजा के दिन ही सूर्य ग्रहण पड़ रहा हो। यदि ऐसी स्थिति बनती है तो सूर्यास्त तक ही सूतक काल चलता है तथा इसके उपरान्त स्नान आदि शुद्धिकरण करके लक्ष्मी पूजा की जा सकती है। दूसरी सम्भावना है कि सूर्य ग्रहण लक्ष्मी पूजा के अगले दिन पड़ रहा हो। लक्ष्मी पूजा सूर्यास्त के उपरान्त प्रदोष काल में की जाती है। अधिकांश परिस्थितियों में लक्ष्मी पूजा सूतक आरम्भ होने से पूर्व की जा सकती है क्योंकि अधिकांश स्थानों पर प्रदोष काल तथा अगले दिन के सूर्योदय के पश्चात् होने वाले सूर्य ग्रहण के मध्य लगभग बारह घण्टे का अन्तर होता है।
उपरोक्त जानकारी पढ़ने के पश्चात् यह समझा जा सकता है कि दीवाली के दिन सूर्य ग्रहण होना कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं है। इस घटनाक्रम के सन्दर्भ में अनावश्यक भ्रांतियाँ प्रचलित हैं। हम आशा करते हैं कि इस लेख को पढ़ने के उपरान्त आपके शहर अथवा देश में दीवाली पर सूर्य ग्रहण होने पर भी आप पूर्ण आत्मविश्वास के साथ लक्ष्मी पूजन कर सकते हैं।