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2024 देवशयनी एकादशी व्रत का दिन नई दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, भारत के लिए

DeepakDeepak

2024 देवशयनी एकादशी व्रत

नई दिल्ली, भारत
देवशयनी एकादशी व्रत
17वाँ
जुलाई 2024
Wednesday / बुधवार
देवशयनी एकादशी
Lord Vishnu DevShayani

देवशयनी एकादशी पारण

देवशयनी एकादशी बुधवार, जुलाई 17, 2024 को
18वाँ जुलाई को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 05:35 ए एम से 08:20 ए एम
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - 08:44 पी एम
एकादशी तिथि प्रारम्भ - जुलाई 16, 2024 को 08:33 पी एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त - जुलाई 17, 2024 को 09:02 पी एम बजे

Ekadashi Fasting Food

Devotees can decide the type of Ekadashi fasting during Sankalp according to their will power and physical strength. In religious texts four types of Ekadashi fasting has been mentioned.

1. Jalahar (जलाहर) i.e. Ekadashi fasting with only water. Most devotees observer this fasting during Nirjala Ekadashi. However devotees can observe it on all Ekadashi fasting.

2. Ksheerbhoji (क्षीरभोजी) i.e. Ekadashi fasting on Ksheer. Ksheer refers to milk and milky juice of plants. But in Ekadashi context it should be all products made of milk.

3. Phalahari (फलाहारी) i.e. Ekadashi fasting on fruits only. One should consume only high class of fruits like mango, grapes, banana, almond, and pistachios etc. and should not eat leafy vegetables.

4. Naktabhoji (नक्तभोजी) i.e. having single meal in a day just before sunset. Single meal should not have any variety of grains and cereals including beans, wheat, rice and pulses which are forbidden during Ekadashi fasting.

Staple diet for Naktabhoji during Ekadashi fasting includes Sabudana, Singhada (Water caltrop and also known as Chestnut), Shakarkandi, Potatoes and Groundnuts.

For many Kuttu Atta (BuckWheat Flour) and Samak (Millet Rice) is also staple diet during single Ekadashi meal. However validity of both items as Ekadashi food is debatable as those are considered semi-grains or pseudo grains. It is better to avoid these items during fasting.

एकादशी व्रत के अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

वर्षों से हमें एकादशी व्रत से सम्बन्धित विभिन्न प्रश्न दुनिया भर से मिलते आ रहे हैं। हालाँकि, धार्मिक हिन्दु परिवार में जन्म लेने वाले किसी व्यक्ति को चाहे यह प्रश्न बहुत ही सामान्य प्रतीत हो, लेकिन भगवान विष्णु के कुछ भक्त ऐसे भी हैं जो द्रिक पञ्चाङ्ग पर दिये गये एकादशी व्रत की तिथि व समय को लेकर प्रायः भ्रमित हो जाते हैं।

1. एकादशी तिथि प्रारम्भ एवं एकादशी तिथि समाप्त से क्या अभिप्राय है?

यह पञ्चाङ्ग में दी गयी तिथि के समय है (ठीक उसी प्रकार जैसे रविवार, सोमवार आदि दिन मध्यरात्रि से शुरू होते हैं और अगली मध्यरात्रि को समाप्त होते हैं) और एकादशी व्रत के लिये सही दिनाँक की गणना करने में सहायक होते हैं। क्यूँकि एकादशी तिथि दिन के किसी भी समय प्रारम्भ हो सकती है और अधिकांशतः दो दिनों में विभाजित होती है, अतः तिथि के समय के आधार पर यह तय किया जाता है कि कौन से दिन एकादशी व्रत का पालन किया जाना चाहिये। व्रत के लिये सही दिनाँक की गणना के उपरान्त तिथि के समय की आवश्यकता नहीं रह जाती है तथा हम इसे सिर्फ एक सामान्य जानकारी के तौर पर उपलब्ध कराते हैं। व्रत का पालन करने के लिये तिथि के समय की आवश्यकता नहीं होती है।

2. क्या मुझे एकादशी तिथि के प्रारम्भ होने पर व्रत का पालन शुरू करना चाहिये?

नहीं। जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है, एकादशी व्रत के लिये तिथि के प्रारम्भ समय की आवश्यकता नहीं होती है। एकादशी का व्रत हमेशा सूर्योदय पर प्रारम्भ होता है और अधिकांशतः अगले दिन सूर्योदय के पश्चात समाप्त होता है। एकादशी व्रत का पालन मुख्यतः 24 घण्टों के लिये किया जाता है, अर्थात स्थानीय सूर्योदय के समय से अगले सूर्योदय तक।

लेकिन यहाँ इस बात का उल्लेख करना भी महत्वपूर्ण होगा कि भक्त एकादशी व्रत के एक दिन पूर्व सन्ध्या समय से सभी अनाजों का सेवन बन्द कर देते हैं ताकि अगले दिन सूर्योदय के समय व्रत प्रारम्भ करते समय पेट में अन्न का कोई अवशेष न रहें। अर्थात भगवान विष्णु के कुछ भक्त अपनी भक्ति के अनुसार एकादशी के एक दिन पहले ही सूर्यास्त से व्रत प्रारम्भ कर देते हैं।

3. कभी-कभी एकादशी के लिये लगातार दो दिनाँक सूचीबद्ध की जाती है। इसका क्या कारण है?

ऐसी स्थिति में जब एकादशी के लिये लगातार दो दिनाँक सूचीबद्ध की गयी हो, आप पहली दिनाँक को लेकर एक दिन के लिये एकादशी व्रत का पालन करें। जब व्रत का पालन एक दिन के लिये किया जाता है, तब पहली दिनाँक को ही प्राथमिकता दी जाती है। एकादशी का व्रत एक दिन के लिये रखना ही सबसे अधिक प्रचलित है, चाहें दिनाँक दो दिनों के लिये दी गयी है। लेकिन अगर आपमें सहन-शक्ति है तो आप दो दिन का व्रत भी रख सकते हैं।

4. पारण समय से क्या अभिप्राय है?

आप व्रत को स्थानीय समयानुसार सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक रखते हैं। लेकिन व्रत हमेशा अगले सूर्योदय पर नहीं तोड़ा जाता है। व्रत का सर्वोत्तम फल प्राप्त करने हेतु, एकादशी का उपवास अगले दिन सूर्योदय के बाद एक उचित समय पर तोड़ा जाता है, जिससे व्रत का समय मध्याह्न तक या उससे भी अधिक बढ़ सकता है। अतः आपने यह देखा होगा कि, व्रत के पारण का समय (अर्थात व्रत को तोड़ने का समय) कभी-कभी अगले दिन मध्याह्न तक का भी दिया जाता है।

5. हरी वासर समाप्ति समय क्या है?

हरी वासर का समय एकादशी व्रत को तोड़ने के लिये निषिद्ध माना गया है। अगर आप व्रत को मध्याह्न तक करने की स्थिति में नहीं हैं या किसी भी तात्कालिक परिस्थिति में आप व्रत को हरी वासर के समाप्त होने के पश्चात् तोड़ सकते हैं। हालाँकि, व्रत को हरी वासर समाप्त होने के कुछ घण्टों के पश्चात् तोड़ना अधिक उचित होता है।

टिप्पणी: सभी समय १२-घण्टा प्रारूप में नई दिल्ली, भारत के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।

2024 देवशयनी एकादशी व्रत

आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु का शयनकाल प्रारम्भ हो जाता है इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं। देवशयनी एकादशी के चार माह के बाद भगवान् विष्णु प्रबोधिनी एकादशी के दिन जागतें हैं।

देवशयनी एकादशी प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के तुरन्त बाद आती है और अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत जून अथवा जुलाई के महीने में आता है। चतुर्मास जो कि हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार चार महीने का आत्मसंयम काल है, देवशयनी एकादशी से प्रारम्भ हो जाता है।

देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।

एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।

कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।

भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।

Kalash
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