समस्त पुराणों के व्याख्याकार ब्रह्मज्ञानी श्री सूतजी से एक दिन नैमिषारण्य में शौनक आदि अट्ठासी हजार (88,000) ऋषियों ने एकत्रित होकर प्रार्थना की- "हे परमज्ञानी सूतजी महाराज! कृपा कर एकादशियों की उत्पत्ति तथा उनकी महिमा को बताने की कृपा करें।"
महर्षियों की प्रार्थना सुन सूतजी बोले- "हे परम तपस्वी महर्षियों! अपने पांचवें अश्वमेध यज्ञ के समय धर्मराज युद्धिष्ठिर ने भी भगवान श्रीकृष्ण से यही प्रश्न किया था।
इस पर भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकला वह सारा वृत्तांत मैं आप सभी को सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो-
एक वर्ष में बारह मास होते हैं और एक मास में दो एकादशी होती हैं, सो एक वर्ष में चौबीस (24) एकादशी हुईं।
जिस वर्ष में अधिक (लौंद) मास पड़ता है, उस वर्ष में दो एकादशी बढ़ जाती हैं।
इन दो एकादशियों को मिलाकर कुल छब्बीस (26) एकादशी होती हैं-
अधिक मास की दोनों एकाशियो के नाम हैं-
ये सब एकादशी यथानाम तथा फल देने वाली हैं।