☰
Search
Mic
हि
Android Play StoreIOS App Store
Setting
Clock

परम एकादशी व्रत कथा | परम एकादशी की पौराणिक कथायें

DeepakDeepak

परम एकादशी कथा

परम एकादशी व्रत कथा

सुमेधा नामक ब्राह्मण की दरिद्रता से मुक्ति की कथा

अर्जुन ने कहा - "हे कमलनयन! अब आप अधिक (लौंद) मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम तथा उसके व्रत का विधान बताने की कृपा करें। इसमें किस देवता का पूजन किया जाता है तथा इसके व्रत से किस फल की प्राप्ति होती है?"

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा - "हे अर्जुन! इस एकादशी का नाम परम है। इसके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मनुष्य को इहलोक में सुख तथा परलोक में सद्गति प्राप्त होती है। इसका व्रत पूर्व में कहे विधानानुसार करना चाहिये तथा भगवान विष्णु का धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प आदि से पूजन करना चाहिये।

इस एकादशी की पावन कथा जो कि महर्षियों के साथ काम्पिल्य नगरी में हुयी थी, वह मैं तुमसे कहता हूँ। ध्यानपूर्वक श्रवण करो - काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का एक अत्यन्त धर्मात्मा ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री अत्यन्त पवित्र तथा पतिव्रता थी। किसी पूर्व पाप के कारण वह दम्पती अत्यन्त दरिद्रता का जीवन व्यतीत कर रहे थे।

ब्राह्मण को भिक्षा माँगने पर भी भिक्षा नहीं मिलती थी। उस ब्राह्मण की पत्नी वस्त्रों से रहित होते हुये भी अपने पति की सेवा करती थी तथा अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी रह जाती थी। पति से कभी किसी वस्तु की माँग नहीं करती थी। दोनों पति-पत्नी घोर निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रहे थे।

एक दिन ब्राह्मण अपनी स्त्री से बोला - "हे प्रिय! जब मैं धनवानों से धन की याचना करता हूँ तो वह मुझे मना कर देते हैं। गृहस्थी धन के बिना नहीं चलती, इसीलिये यदि तुम्हारी सहमति हो तो मैं परदेस जाकर कुछ कार्य करूँ, क्योंकि विद्वानों ने कर्म की प्रशंसा की है।"

ब्राह्मण की पत्नी ने विनीत भाव से कहा - "हे स्वामी! मैं आपकी दासी हूँ। पति भला व बुरा जो कुछ भी कहे, पत्नी को वही करना चाहिये। मनुष्य को पूर्व जन्म में किये कर्मों का फल मिलता है। सुमेरु पर्वत पर रहते हुये भी मनुष्य को बिना भाग्य के स्वर्ण नहीं मिलता। पूर्व जन्म में जो मनुष्य विद्या एवं भूमि दान करते हैं, उन्हें अगले जन्म में विद्या एवं भूमि की प्राप्ति होती है। ईश्वर ने भाग्य में जो कुछ लिखा है, उसे टाला नहीं जा सकता।

यदि कोई मनुष्य दान नहीं करता तो प्रभु उसे केवल अन्न ही देते हैं, इसीलिये आपको इसी स्थान पर रहना चाहिये, क्योंकि मैं आपका विछोह नहीं सह सकती। पति बिना स्त्री की माता, पिता, भ्राता, श्वसुर तथा सम्बन्धी आदि सभी निन्दा करते हैं, इसीलिये हे स्वामी! कृपा कर आप कहीं न जायें, जो भाग्य में होगा, वह यहीं प्राप्त हो जायेगा।"

स्त्री की सलाह मानकर ब्राह्मण परदेश नहीं गया। इसी प्रकार समय व्यतीत होता रहा। एक समय कौण्डिन्य ऋषि वहाँ पधारे।

ऋषि को देखकर ब्राह्मण सुमेधा एवं उसकी स्त्री ने उन्हें प्रणाम किया और बोले - "आज हम धन्य हुये। आपके दर्शन से आज हमारा जीवन सफल हुआ।" ऋषि को उन्होंने आसन तथा भोजन दिया। भोजन प्रदान करने के पश्चात् पतिव्रता ब्राह्मणी ने कहा - "हे ऋषिवर! कृपा कर आप मुझे दरिद्रता का नाश करने की विधि बतलाइये। मैंने अपने पति को परदेश में जाकर धन कमाने से रोका है। मेरे भाग्य से आपका आगमन हुआ है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि अब मेरी दरिद्रता शीघ्र ही नष्ट हो जायेगी, अतः आप हमारी दरिद्रता नष्ट करने के लिये कोई उपाय बतायें।"

ब्राह्मणी की बात सुन कौण्डिन्य ऋषि बोले - "हे ब्राह्मणी! मल मास की कृष्ण पक्ष की परम एकादशी के व्रत से सभी पाप, दुख एवं दरिद्रता आदि नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह धनवान हो जाता है। इस व्रत में नृत्य, गायन आदि सहित रात्रि जागरण करना चाहिये।

भगवान शङ्कर ने कुबेर जी को इसी व्रत के करने से धनाध्यक्ष बना दिया था। इसी व्रत के प्रभाव से सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र को पुत्र, स्त्री एवं राज्य की प्राप्ति हुयी थी।"

तदुपरान्त कौण्डिन्य ऋषि ने उन्हें एकादशी के व्रत का समस्त विधान कह सुनाया। ऋषि ने कहा - "हे ब्राह्मणी! पञ्चरात्रि व्रत इससे भी अधिक उत्तम है। परम एकादशी के दिन प्रातःकाल नित्य कर्म से निवृत्त होकर विधानपूर्वक पञ्चरात्रि व्रत आरम्भ करना चाहिये। जो मनुष्य पाँच दिन तक निर्जल व्रत करते हैं, वे अपने माता-पिता एवं स्त्री सहित स्वर्ग लोक को जाते हैं। जो मनुष्य पाँच दिन तक सन्ध्या को भोजन करते हैं, वे स्वर्ग को जाते हैं। जो मनुष्य स्नान करके पाँच दिन तक ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं, वे समस्त संसार को भोजन कराने का फल प्राप्त करते हैं। जो मनुष्य इस व्रत में अश्व दान करते हैं, उन्हें तीनों लोकों को दान करने का फल मिलता है। जो मनुष्य उत्तम ब्राह्मण को तिल दान करते हैं, वे तिल की सङ्ख्या के समान वर्षो तक विष्णुलोक में वास करते हैं। जो मनुष्य घी का पात्र दान करते हैं, वह सूर्यलोक को जाते हैं। जो मनुष्य पाँच दिन तक ब्रह्मचर्यपूर्वक रहते हैं, वे देवाङ्गनाओं सहित स्वर्ग को जाते हैं। हे ब्राह्मणी! तुम अपने पति के साथ इसी व्रत को धारण करो। इससे तुम्हें अवश्य ही सिद्धि तथा अन्त में स्वर्ग की प्राप्ति होगी।"

कौण्डिन्य ऋषि के वचनानुसार ब्राह्मण एवं उसकी स्त्री ने परम एकादशी का पाँच दिन तक व्रत किया। व्रत पूर्ण होने पर ब्राह्मण की स्त्री ने एक राजकुमार को अपने यहाँ आते देखा।

राजकुमार ने ब्रह्माजी की प्रेरणा से एक उत्तम घर जो कि समस्त वस्तुओं से परिपूर्ण था, उन्हें रहने के लिये प्रदान किया। तदुपरान्त राजकुमार ने आजीविका के लिये एक ग्राम दिया। इस प्रकार ब्राह्मण एवं उसकी स्त्री इस व्रत के प्रभाव से इहलोक में अनन्त सुख भोगकर अन्त में स्वर्गलोक को गये।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा - हे अर्जुन! जो मनुष्य परम एकादशी का व्रत करता है, उसे सभी तीर्थों व यज्ञों आदि का फल प्राप्त होता है। जिस प्रकार संसार में दो पैरों वालों में ब्राह्मण, चार पैरों वालों में गौ, देवताओं में देवेन्द्र श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार मासों में लौंद अर्थात् अधिक मास उत्तम है। इस माह में पञ्चरात्रि अत्यन्त पुण्य देने वाली होती है। इस माह में पद्मिनी एवं परम एकादशी भी श्रेष्ठ है। इनके व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, अतः दरिद्र मनुष्य को एक व्रत अवश्य करना चाहिये। जो मनुष्य अधिक मास में स्नान तथा एकादशी व्रत नहीं करते, उन्हें आत्महत्या करने का पाप लगता है। यह मनुष्य योनि बड़े पुण्यों से मिलती है, इसीलिये मनुष्य को एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिये।

हे कुन्ती पुत्र अर्जुन! जो तुमने पूछा था, वह मैंने विस्तारपूर्वक वर्णित कर दिया। अब इन व्रतों को भक्तिपूर्वक करो। जो मनुष्य अधिक (लौंद) मास की परम एकादशी का व्रत करते हैं, वे स्वर्गलोक में जाकर देवराज इन्द्र के समान सुखों का भोग करते हुये तीनों लोकों में पूजनीय होते हैं।"

कथा-सार

ब्राह्मणों, ऋषि-मुनियों व सज्जन पुरुषों का आदर करने वाले मनुष्यों पर प्रभु अवश्य ही कृपा करते हैं। श्रीलक्ष्मी की प्राप्ति मात्र भाग-दौड़ से नहीं होती, अपितु इसके लिये यत्नपूर्वक परिश्रम करने की आवश्यकता होती है। यत्नपूर्वक किया गया परिश्रम भगवान की कृपा से अवश्य ही पूर्ण होता है।


Kalash
कॉपीराइट नोटिस
PanditJi Logo
सभी छवियाँ और डेटा - कॉपीराइट
Ⓒ www.drikpanchang.com
प्राइवेसी पॉलिसी
द्रिक पञ्चाङ्ग और पण्डितजी लोगो drikpanchang.com के पञ्जीकृत ट्रेडमार्क हैं।
Android Play StoreIOS App Store
Drikpanchang Donation