राखी को रक्षा बन्धन के नाम से भी जाना जाता है। यह एक हिन्दु त्यौहार है जिसे सम्पूर्ण भारत में हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है। रक्षा बन्धन को हिन्दुओं द्वारा इसके प्रतीकात्मक महत्व के लिये पहचाना और मनाया जाता है। रक्षा बन्धन का महत्व एक पवित्र धागे से सम्बन्धित है और इस धागे को राखी के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है की राखी (यज्ञोपवीत) जब श्रावण पूर्णिमा के दिन शुभ मुहूर्त के दौरान धारण की जाये तो यह इसे पहनने वाले की रक्षा करती है।
श्रावण पूर्णिमा के शुभ अवसर पर पवित्र धागा बाँधने की अवधारणा या परम्परा कोई नयी बात नहीं है। श्रावण पूर्णिमा को ब्राह्मण समाज के बीच पवित्र यज्ञोपवीत को बदलने के लिये भी महत्वपूर्ण माना जाता है। श्रावण पूर्णिमा के दिन यज्ञोपवीत पहनने या यज्ञोपवीत बदलने के अनुष्ठान को उपाकर्म के रूप में जाना जाता है। उपाकर्म एक वैदिक अनुष्ठान है और ब्राह्मण जाति के हिन्दुओं द्वारा आज भी इस अनुष्ठान को सम्पन्न किया जाता है।
राखी के प्रारम्भ को देवी इन्द्राणी की अत्यन्त प्राचीन कथा से जोड़कर देखा जाता है। यह कथा इस पवित्र धागे की शक्ति का वर्णन करती है। कथा के इस प्रसंग में इन्द्र देव को यह धागा बाँधा गया था जिसके परिणामस्वरूप उन्हें राक्षसों पर विजय प्राप्त हुयी थी।
राखी को हिन्दु चन्द्र कैलेण्डर में श्रावण पूर्णिमा अर्थात श्रावण माह के दौरान पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण, हिन्दु कैलेण्डर में 5वाँ चन्द्र मास है। श्रावण मास को भगवान शिव और गौरी पूजन के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
रक्षा बन्धन का अनुष्ठान शुभ मुहूर्त में भद्रा के समाप्त होने पर सम्पन्न किया जाता है। इस राखी बाँधने के शुभ समय को राखी मुहूर्त के रूप में जाना जाता है।
हिन्दु महाकाव्यों और लोककथाओं में राखी के महत्वपूर्ण प्रसंग मिलते हैं। राखी के प्रारम्भ को देवी इन्द्राणी की अत्यन्त प्राचीन कथा से जोड़कर देखा जाता है। यह कथा इस पवित्र धागे की शक्ति का वर्णन करती है। कथा के इस प्रसंग में इन्द्र देव को यह धागा बाँधा गया था जिसके परिणामस्वरूप उन्हें राक्षसों पर विजय प्राप्त हुयी थी।
पौराणिक कथा के अनुसार, देवराज इन्द्र को राक्षसों द्वारा चुनौती दी गयी थी और इन्द्र राक्षसों की शक्ति का सामना करने में असमर्थ थे। जब देवराज इन्द्र युद्ध के लिये जा रहे थे उस समय देवराज इन्द्र को उनकी पत्नी और देवताओं के गुरु बृहस्पति ने एक पवित्र पोटली बाँधी थी जिसे रक्षा पोटली के नाम से जाना जाता है। श्रावण पूर्णिमा के शुभ अवसर पर बाँधे गये पवित्र धागे/पोटली की शक्ति के परिणामस्वरूप राक्षसों पर देवताओं की विजय हुयी। इस प्रकरण ने राखी की शक्ति में दृढ़ विश्वास को जन्म दिया।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार मृत्यु के देवता यमराज ने अपनी बहन को आशीर्वाद देते हुये यह वचन दिया था कि श्रावण पूर्णिमा के शुभ दिन राखी बाँधने वाली सभी बहनों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होगा।
महान हिन्दु महाकाव्य महाभारत में, भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को युद्ध के दौरान रक्षा और विजय के लिये राखी बाँधने का सुझाव दिया था। उसी महाकाव्य में एक प्रसंग के अनुसार द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्ण के रक्तरञ्जित हाथ में वस्त्र की एक पट्टी बाँध दी थी जिसके लिये द्रौपदी को भगवान श्री कृष्ण ने दिव्य सुरक्षा प्रदान की थी।
आधुनिक सन्दर्भ में रक्षा बन्धन को एक ऐसे अनुष्ठान के रूप में देखा जाता है जो भाई और बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। जब एक बहन अपने भाई की कलायी पर राखी बाँधती है, तो यह राखी अपने भाई के प्रति एक बहन के अद्वितीय एवं आजीवन प्रेम और पवित्र बन्धन को दर्शाती है। प्रेम और स्नेह के लिये कृतज्ञता के भाव के रूप में भाई अपनी बहन को हर तरह की परेशानियों से बचाने और उसकी सहायता करने का वचन देता है।
इसीलिये राखी बहन-भाई के पवित्र स्नेह बन्धन की प्रतिनिधि है। राखी का पर्व इस रिश्ते की महानता को और इस बन्धन की शाश्वत प्रकृति को बहुत ही प्रिय तरीके से पुष्ट करता है। वास्तव में, राखी की शक्ति के प्रति दृढ़ विश्वास, भाई की दीर्घ आयु की कामना और बहन के लिये सुरक्षा का भाव प्रति वर्ष समय के साथ बढ़ता जाता है।
आधुनिक भारतीय इतिहास भी हिन्दु रानियों की कहानियों से भरा हुआ है, जब हिन्दु रानियों ने जरूरत के समय में मुगल सम्राटों को राखियाँ भेजी थीं और इन सम्राटों ने राखी के बन्धन का वचन और कर्म से सम्मान रखा था। इसीलिये, राखी बाँधने की इस पुरानी परम्परा की लोकप्रियता भाई-बहन के बीच पवित्र प्रेम और स्नेह के बन्धन की स्वीकृति है।
राखी के उत्सव पर विभिन्न रस्मों को सम्पन्न किया जाता है। इसमें बहन भाई की आरती उतारती है, भाई की दीर्घ आयु के लिये प्रार्थना करती है, भाई की कलायी पर राखी बाँधने से पहले भाई के मस्तिष्क पर लाल टीका लगाती है। राखी की रस्म के बाद बहन अपने भाई को मिठाई और पारम्परिक घरेलू व्यञ्जन खिलाती है, जो सामान्यतः बहन द्वारा तैयार किये जाते हैं। भाई अपनी बहन को कुछ विशेष उपहार भेंट करके बहन के प्रति अपना प्रेम और स्नेह प्रकट करता है।
महाराष्ट्र में राखी पूर्णिमा को नारली अथवा नारियल पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। तमिलनाडु में राखी पूर्णिमा को अवनी अवित्तम के रूप में मनाया जाता है, जो ब्राह्मण समुदाय के लिये नवीन यज्ञोपवीत पहनने और पुराने यज्ञोपवीत को बदलने का एक महत्वपूर्ण दिवस होता है। आन्ध्र प्रदेश में, यज्ञोपवीत बदलने के इसी त्यौहार को जन्ध्याला पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। भारत के अन्य क्षेत्रों में, श्रावण पूर्णिमा के दौरान यज्ञोपवीत बदलने के अनुष्ठान को उपाकर्म दिवस के रूप में जाना जाता है।
राखी का दिन भगवान हयग्रीव की जयन्ती भी पड़ती है जिसे हयग्रीव जयन्ती के रूप में जाना जाता है।