देवी पार्वती हिन्दु धर्म में पूजे जाने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय देवी-देवताओं में से एक हैं। सामान्यतः भक्त गण देवी पार्वती को गौरी, गौरा देवी तथा माता पार्वती आदि नामों से भी पुकारते हैं। पार्वती, देवी आदि शक्ति का ही प्रतिरूप हैं, जो हिन्दु धर्म में सर्वोच्च देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। जिस प्रकार देवताओं में ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश को संयुक्त रूप से त्रिमूर्ति कहा जाता है, ठीक उसी प्रकार देवी पार्वती, लक्ष्मी एवं सरस्वती को देवियों में त्रिमूर्ति के रूप में जाना जाता है। देवी पार्वती, हिन्दुओं के प्रमुख देवता भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं। देवी पार्वती ही मूल प्रकृति तथा सृष्टि का आधार हैं।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में माता पार्वती की भिन्न-भिन्न रूपों में भिन्न-भिन्न नामों से पूजा-अर्चना की जाती है। विभिन्न क्षेत्रों में महिलायें सौभाग्य वृद्धि, अपने पति की कुशलता एवं दीर्घायु की कामना से विभिन्न अवसरों पर माता पार्वती की उपासना करती हैं तथा उन्हें सुहाग और शृंगार आदि की सामग्री अर्पित करती हैं। उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक नाना प्रकार के उत्सवों के माध्यम से देवी पार्वती का पूजन किया जाता है। नौ दिवसीय नवरात्रि उत्सव के समय देवी पार्वती के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है।
उत्तराखण्ड में देवी पार्वती को देवी नन्दा के नाम से पूजा जाता है तथा प्रत्येक 12 वर्षों के उपरान्त नन्दा देवी राजजात नामक धार्मिक यात्रा का आयोजन किया जाता है। नन्दा देवी राजजात एशिया की सर्वाधिक लम्बी दूरी की पदयात्रा है।
देवी पार्वती ने अपने पूर्वजन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के रूप में अवतार धारण किया था। एक समय देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया, परन्तु उस यज्ञ में ईर्ष्यावश भगवान शिव को निमन्त्रित नहीं किया। निमन्त्रण न मिलने पर भी देवी द्वारा हठ करने पर भगवान शिव ने उन्हें यज्ञ में सम्मिलित होने की आज्ञा प्रदान कर दी, जहाँ प्रजापति दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान करने से आहत होकर देवी सती यज्ञ की अग्नि में समाहित हो गयीं। देवी सती के यज्ञाग्नि में भस्म होने की सूचना प्राप्त होते ही भगवान शिव भीषण रूप से क्रोधित हुये तथा उन्होंने वीरभद्र को प्रकट कर दक्ष प्रजापति का यज्ञ विध्वंस करने हेतु भेजा। वीरभद्र ने यज्ञ नष्ट करते हुये दक्ष प्रजापति का मस्तक भी काट दिया। भगवान शिव देवी सती की पार्थिव देह को लेकर ताण्डव नृत्य करने लगे, जिसके कारण समस्त सृष्टि डोलने लगी तथा चारों दिशाओं में प्रलय के घोर बादल छा गये।
समस्त संसार को सङ्कट में देखकर प्राणियों की रक्षा के उद्देश्य से भगवान श्री विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा माता सती के शव को 51 भागों में विभक्त कर दिया। जिस भी स्थान पर माता सती की देह के भाग गिरे, उस स्थान पर शक्तिपीठ की स्थापना हुयी, जो संयुक्त रूप से 51 शक्तिपीठों के नाम से विख्यात हुये। कालान्तर में देवी सती ने पर्वतराज हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लिया और देवी पार्वती के नाम से समस्त लोकों में प्रतिष्ठित हुयीं।
पर्वतराज हिमवान देवी पार्वती के पिता तथा रानी मैनावती उनकी माता हैं। मान्यताओं के अनुसार, देवी पार्वती का जन्म उत्तराखण्ड के चमोली जिले में हुआ था। देवी पार्वती के दो पुत्र हैं, जो गणेश एवं कार्तिकेय के रूप में समस्त संसार में पूजनीय हैं तथा अशोकसुन्दरी, ज्योति एवं मनसा देवी उनकी पुत्रियाँ हैं।
धर्मग्रन्थों में माता पार्वती के नाना प्रकार के रूपों का वर्णन किया गया है। देवी पार्वती को द्विभुजाधारी रूप में लाल रँग के सुन्दर वस्त्राभूषण धारण किये हुये दर्शाया जाता है। उनके सौन्दर्य के समक्ष सहस्र चन्द्रमाओं की कान्ति भी मन्द प्रतीत होती है। उनके मुखमण्डल पर मनोहर मुस्कान सुशोभित है। देवी पार्वती सुहाग एवं समस्त सोलह शृंगार से सुसज्जित हैं। उनका एक हस्तकमल वरद मुद्रा एवं दूसरा अभय मुद्रा में है। माँ पार्वती के अनेकों रूप हैं तथा उनका वर्णन सीमित शब्दों में करना असम्भव है। माता पार्वती को सिँह तथा बाघ पर आरूढ़ चित्रित किया जाता है। इन्हें ही दुर्गा एवं महाकाली आदि भी कहा जाता है।
मूल मन्त्र -
ॐ सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते॥
सामान्य मन्त्र -
ऊँ पार्वत्यै नमः।
ऊँ गौर्ये नमः।