देवी-देवताओं की महिमा करने के लिए आरती गाई जाती है। इस पृष्ठ पर नवरात्रि के दौरान पूजा की जाने वाली प्रत्येक देवी से जुड़ी आरतियों को एकत्र किया है।
प्रति वर्ष पन्द्रह दिवसीय देवी पक्ष के समय विभिन्न प्रकार से दुर्गा पूजा की जाती है, जो नवरात्रि, दुर्गोत्सव, तथा शारदोत्सव के रूप में भी लोकप्रिय है। दुर्गा पूजा में देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, भगवान गणेश, एवं भगवान कार्तिकेय का भी पूजन किया जाता है।
नवरात्रि में देवी की उपासना की शुरुआत घटस्थापना से ही होती है। जिसके लिये शुभ मुहूर्त का चयन करना सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस पृष्ठ पर घटस्थापना के लिये, आपके शहर के अनुसार सर्वाधिक शुभ मुहूर्त की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
शरद ऋतु से सम्बन्धित होने के कारण आश्विन माह की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं। विश्व भर के देवी उपासक इस पर्व की प्रतीक्षा करते हैं, जिसके कारण यह नवरात्रि बेहद लोकप्रिय है इसीलिये इसे 'महानवरात्रि' भी कहते हैं। इस पृष्ठ पर आपको शारदीय नवरात्रि पर्व के दिन और अन्य बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारियों के पृष्ठ मिल जायेंगे।
यहाँ आप नवरात्रि पर्व के समय की जाने वाली सन्धि पूजा का मुहूर्त एवं अवधि ज्ञात कर सकते हैं। सन्धि पूजा, अष्टमी तिथि के समापन एवं नवमी तिथि के आरम्भ एक विशेष मुहूर्त में की जाती है। इस विशेष मुहूर्त में ही चण्ड-मुण्ड नामक दैत्यों का वध करने हेतु देवी चामुण्डा का प्राकट्य हुआ था।
यहाँ दुर्गा पूजा की सम्पूर्ण समय सारणी प्रकाशित की गयी है। दुर्गा पूजा एक महत्पूर्ण हिन्दु त्यौहार है, जो दुर्गोत्सव एवं शारदोत्सव के नाम से भी लोकप्रिय है। दुर्गा पूजा के पावन अवसर पर देवी माँ दुर्गा के नवदुर्गा रूपों की विशेष पूजा-आराधना की जाती है।
विजयादशमी के दिन भगवान श्री राम ने रावण तथा देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक दैत्य का वध किया था। अतः इस दिन को अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में मनाया जाता है। विजयदशमी के अवसर पर शमी पूजा, अपराजिता पूजा तथा सीमोल्लंघन आदि अनुष्ठान किये जाते हैं।
प्राचीन काल से ही महा नवरात्रि की महानवमी के अवसर पर आयुध पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवी दुर्गा ने नौ दिवसीय भीषण युद्ध के उपरान्त महिषासुर दैत्य को पराजित किया था। दक्षिण भारत में इस पर्व को सरस्वती पूजा के रूप में भी मनाया जाता है।
इस पृष्ठ पर दुर्गा पूजा के समय उपयोग होने वाली नौ प्रकार की पत्तियों का विवरण प्रदान किया गया है, जिन्हें नवपत्रिका कहा जाता है। नौ पत्तियों द्वारा देवी दुर्गा की पूजा को नवपत्रिका पूजा के नाम से जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में यह पर्व कोलाबोऊ पूजा के नाम से लोकप्रिय है।
अम्बे तू है जगदम्बे काली, देवी दुर्गा को समर्पित सर्वाधिक प्रचलित एवं लोकप्रिय आरती है। देवी माँ से सम्बन्धित विभिन्न अवसरों सहित दैनिक पूजन में भी इस आरती का गायन किया जाता है। यह आरती अत्यन्त मधुर एवं कर्णप्रिय है तथा इसके गायन से माता रानी प्रसन्न होती हैं।
श्री दुर्गा चालीसा, देवी दुर्गा को समर्पित ४० छन्दों से युक्त एक प्रार्थना है, जिसका भक्तिपूर्वक पाठ करने से देवी माँ अत्यन्त प्रसन्न होकर कृपा करती हैं। देवी दुर्गा हिन्दु धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। देवी दुर्गा की कृपा से भक्तों को शक्ति, साहस एवं वीरता की प्राप्ति होती है।
यहाँ देवी दुर्गा माता के १०८ पवित्र नामों की सूची प्रदान की गयी है, जिसे अष्टोत्तर शतनामावली भी कहा जाता है। देवी माँ के यह १०८ नाम हृदय को शीतलता प्रदान करने वाले हैं। प्रतिदिन इन १०८ नामों का पाठ करने से देवी माँ के आशीर्वाद साहित उत्साह एवं आनन्द में वृद्धि होती है।
श्री दुर्गा सप्तशती, देवी दुर्गा को समर्पित ७०० श्लोकों तथा १३ अध्यायों में विभक्त एक प्रसिद्ध धर्मग्रन्थ है, जिसका उद्भव ऋषि मार्कण्डेय द्वारा रचित मार्कण्डेय पुराण से हुआ है। दुर्गा सप्तशती के पाठ से साधक विभिन्न सिद्धियों को अर्जित कर अन्ततः उत्तम गति को प्राप्त होता है।
देवी माता पार्वती को शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा आदि नौ भिन्न-भिन्न रूपों में पूजा जाता है। माता पार्वती के यही नौ रूप समस्त संसार में नवदुर्गा के रूप में विख्यात हैं। नवरात्रि उत्सव के समय देवी माँ के दिव्य नवदुर्गा स्वरूपों की विस्तृत पूजा-आराधना की जाती है।
देवी शक्ति के १० मुख्य स्वरूपों को दश महाविद्या के रूप में पूजा जाता है। दश महाविद्या विभिन्न दिशाओं की अधिष्ठातृ शक्तियाँ हैं। दश महाविद्या की पूजा एवं साधना के माध्यम से साधकों को विभिन्न प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
यहाँ दुर्गा पूजा के अवसर पर अपने मित्रों एवं परिजनों को भेजने के लिये आकर्षक ग्रीटिंग्स एवं ई-कार्ड्स दिये गये हैं। यह ग्रीटिंग्स एवं ई-कार्ड्स हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में देवी माँ के सुन्दर चित्रों के साथ प्रकाशित किये गये हैं।
यहाँ देवी माँ को समर्पित नवरात्रि उत्सव के ग्रीटिंग्स तथा ई-कार्ड्स दिये गये हैं, जिनके माध्यम से आप अपने मित्रों एवं प्रियजनों के नवरात्रि के इस पवित्र उत्सव की शुभकामनायें प्रेषित कर सकते हैं। यह ग्रीटिंग्स देवी माता के मनोभावन चित्रों के साथ उपलब्ध हैं।
यहाँ बंगाल की सुन्दर अल्पना कलाकृतियाँ बनाने की विधि छायाचित्रों के माध्यम से चरणबद्ध रूप से प्रस्तुत की गयी है। प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा के अन्तर्गत विभिन्न रँगो से निर्मित रँगोलियों को अल्पना के नाम से जाना जाता है। महत्वपूर्ण मांगलिक अवसरों पर अल्पना रचना की जाती है।
यहाँ सम्पूर्ण घटस्थापना विधि विस्तार पूर्वक प्रदान की गयी है। घटस्थापना नवरात्रि उत्सव का प्रमुख एवं अति आवश्यक भाग है। नवरात्रि के प्रथम दिवस पर घटस्थापना के माध्यम से कलश में देवी माँ का आवाहन किया जाता है। तदोपरान्त ही नवरात्रि पूजन एवं व्रत का शुभारम्भ हो जाता है।
यहाँ नवरात्रि के समय उपयोग होने वाले ७ प्रकार के अनाजों सचित्र वर्णन किया गया है, जिन्हें सामूहिक रूप से सप्तधान्य के नाम से जाना जाता हैं। सप्तधान्य के अन्तर्गत जौ, तिल, धान, मूँग तथा कँगनी आदि अनाजों को सम्मिलित किया गया है, जो देवी माँ को अत्यधिक प्रिय होते हैं।
यहाँ दुर्गा पूजा के समय मन्त्र सहित पुष्पाञ्जलि अर्पित करने की विस्तृत विधि प्रदान की गयी है। दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़कर उनमें पुष्प लेकर अर्पित करने की क्रिया को पुष्पाञ्जलि कहते हैं। देवी माँ के अनेक प्रमुख देवालयों में नियमित रूप से प्रत्येक सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तिथि पर पुष्पाञ्जलि अर्पित की जाती है।
धुनुची नृत्य, दुर्गा पूजा के समय किया जाने वाला अत्यधिक लोकप्रिय नृत्य है। धुनुची नृत्य के अन्तर्गत दोनों हाथों में मिट्टी की धुनाची में दहकती हुयी धूप लेकर देवी दुर्गा के समक्ष नृत्य किया जाता है। नृत्य हेतु ढाक नामक पारम्परिक वाद्य यन्त्र का प्रयोग भी किया जाता है।
यहाँ नवरात्रि के समय की जाने वाली दुर्गा पूजा हेतु षोडशोपचार दुर्गा पूजा विधि चरणबद्ध एवं विस्तृत रूप में प्रदान की गयी है। षोडशोपचार पूजन में धर्मग्रन्थों द्वारा वर्णित सोलह चरणों के माध्यम से माता रानी की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा की षोडशोपचार पूजा करने से सुख-शान्ति एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।