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नवरात्रि | नवरात्रि के विषय में

DeepakDeepak

नवरात्रि

Navratri Navdurga

नवरात्रि एक महत्वपूर्ण हिन्दु त्यौहार है। यह नौ रात्रियों और दस दिवसों तक मनाया जाता है। नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

महाकाल संहिता के अनुसार, हिन्दु कैलेण्डर में चार नवरात्रि होती हैं।

धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, प्रत्येक नवरात्रि का महत्व एक युग से दूसरे युग में भिन्न होता है। सत्य युग में चैत्र चन्द्र मास के दौरान वसन्त नवरात्रि सभी चार नवरात्रि में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इसी प्रकार, त्रेता युग में आषाढ़ चन्द्र मास के दौरान गुप्त नवरात्रि, द्वापर युग में माघ चन्द्र मास के दौरान गुप्त नवरात्रि, और कलि युग में आश्विन चन्द्र मास के दौरान शरद नवरात्रि सभी चार नवरात्रि में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती हैं।

नवरात्रि का प्रारम्भ एवम् महत्व

शारदीय नवरात्रि के दौरान, देवी दुर्गा ने शक्तिशाली राक्षस महिषासुर का वध किया था। विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों में महिषासुर का वध करने वाली देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों का उल्लेख है। रम्भा कल्प के अनुसार, देवी दुर्गा ने अट्ठारह हाथों वाली उग्रचण्डी के रूप में महिषासुर का वध किया था। हालाँकि, नीललोहित कल्प के अनुसार सोलह हाथों वाली भद्रकाली ने महिषासुर का वध किया था और श्वेतवराह कल्प के अनुसार दस हाथों वाली कात्यायनी ने महिषासुर का वध किया था।

हालाँकि, अधिकांश धार्मिक ग्रन्थ इस बात से सहमत हैं कि देवी दुर्गा के उग्र रूपों में से किसी एक रूप ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसीलिये, नवरात्रि के दौरान बुराई पर देवी दुर्गा की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

यह भी मान्यता है कि शरद नवरात्रि के दौरान भगवान राम ने भी देवी दुर्गा की पूजा की थी। भगवान ब्रह्मा के परामर्श पर, भगवान राम ने देवी दुर्गा का आह्वान किया और राक्षस रावण के विरुद्ध युद्ध प्रारम्भ करने से पहले देवी से आशीर्वाद माँगा था। चूँकि भगवान राम ने देवी दुर्गा का आह्वान देवी की निद्रा के दौरान किया था, तब से शरद नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के असामयिक आह्वान को देवी दुर्गा के अकाल बोधन के रूप में भी जाना जाता है।

नवरात्रि की देवी

नवरात्रि की मुख्य देवी माँ दुर्गा हैं जिन्हें देवी भवानी और देवी अम्बा के नाम से भी जाना जाता है। दुर्गा के इन सभी रूपों का सम्बन्ध देवी पार्वती से है।

नवरात्रि में देवी दुर्गा के अतिरिक्त उनके नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दौरान जिन नौ देवियों की पूजा की जाती है, उनकी सूची क्षेत्र और सम्प्रदाय के आधार पर भिन्न हो सकती है।

शैव सम्प्रदाय के अनुसार और मुख्यतः उत्तर भारत में प्रचलित, नवरात्रि के दौरान प्रतिपदा से नवमी तक प्रत्येक तिथि की पीठासीन देवियाँ इस प्रकार हैं -

  1. शैलपुत्री
  2. ब्रह्मचारिणी
  3. चन्द्रघण्टा
  4. कूष्माण्डा
  5. स्कन्दमाता
  6. कात्यायनी
  7. कालरात्रि
  8. महागौरी
  9. सिद्धिदात्री

दक्षिण भारत में देवी दुर्गा के निम्नलिखित नौ रूपों की पूजा की जाती है -

  1. वनदुर्गा
  2. शूलिनी
  3. जातवेदा
  4. शान्ति
  5. शबरी
  6. ज्वालादुर्गा
  7. लवणदुर्गा
  8. आसुरीदुर्गा
  9. दीपदुर्गा

इसी प्रकार, वैष्णव सम्प्रदाय और माधव सम्प्रदाय नौ देवियों की अपनी अलग सूची का पालन करते हैं जिनकी पूजा नवरात्रि के दौरान की जाती है।

नवरात्रि दिनाँक और समय

आश्विन चन्द्र मास के प्रथम दिन घटस्थापना के साथ नवरात्रि का प्रारम्भ होता है। घटस्थापना के दौरान स्थापित कलश को दसवें दिन जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है।

नवरात्रि प्रारम्भ - आश्विन (7वाँ चन्द्र माह) शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (प्रथम दिवस)
नवरात्रि सम्पूर्ण - आश्विन शुक्ल पक्ष की नवमी (नौवाँ दिवस)

नवरात्रि त्यौहारों की सूची

नवरात्रि अनुष्ठान

नवरात्रि में विभिन्न प्रकार के अनुष्ठानों को सम्पन्न किया जाता है। ये अनुष्ठान एक राज्य से दूसरे राज्य और एक राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न होते हैं। हालाँकि, हम नवरात्रि के दौरान मनाये जाने वाले सर्वाधिक प्रचलित अनुष्ठानों और परम्पराओं को सूचीबद्ध कर रहे हैं।

नवरात्रि क्षेत्रीय भिन्नता

नवरात्रि को पश्चिम बंगाल और असम में दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। हालाँकि दुर्गा पूजा और नवरात्रि की अवधारणा समान है और दोनों त्यौहारों का समय समान होता है परन्तु दोनों त्यौहारों के लिये अनुष्ठान और परम्परायें काफी भिन्न होती हैं।

नवरात्रि और दुर्गा पूजा के बीच मुख्य अन्तर कई दुर्गा सम्प्रदायों के कारण है जो दुर्गा पूजा के लिये अस्तित्व में हैं। कात्यायनी कल्प और भद्रकाली कल्प दुर्गा पूजा के दो महत्वपूर्ण सम्प्रदाय हैं, जिनका उल्लेख धार्मिक ग्रन्थों में मिलता है।

  • पश्चिम बंगाल में नवरात्रि दुर्गा पूजा के रूप में
    दुर्गा पूजा कात्यायनी कल्प के अनुसार मनायी जाती है। कात्यायनी कल्प में, मुख्यतः तीन दिनों के लिये महत्वपूर्ण दुर्गा पूजा की जाती है और इन तीन दिनों को महा सप्तमी, दुर्गा अष्टमी और दुर्गा नवमी के रूप में मनाया जाता है। षष्ठी की शाम को बिल्व निमन्त्रण के अनुष्ठान के लिये देवी दुर्गा को आमन्त्रित करना और सप्तमी को प्रातःकाल नवपत्रिका पूजा के दौरान देवी दुर्गा को सात पवित्र पत्तों के साथ स्थापित करने की परम्परा कात्यायनी कल्प विधानम का हिस्सा हैं। कात्यायनी कल्प के अनुसार, प्रतिपदा को ही घटस्थापना की जाती है और दशमी तिथि को दुर्गा विसर्जन किया जाता है।
  • गुजरात और उत्तर भारत में नवरात्रि
    नवरात्रि भद्रकाली कल्प के अनुसार मनायी जाती है। भद्रकाली कल्प में नौ दिनों के दौरान दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के नौ रूपों में से एक को समर्पित है और देवी दुर्गा के इन सभी नौ अवतारों की एक निश्चित क्रम में पूजा की जाती है।
    कन्या पूजा और ज्योति कलश नवरात्रि अनुष्ठानों का हिस्सा हैं। कन्या पूजा को कुमारी पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
  • दक्षिण भारत में नवरात्रि
    दक्षिण भारत में, नवरात्रि बोम्माला कोलुवु का पर्याय है जो गोलू, कोलू और बोम्बे हब्बा के रूप में भी लोकप्रिय है। नवरात्रि के दौरान, विभिन्न गुड़ियाओं को एकत्र किया जाता है और जनता को दिखाने के लिये कई चरणों में प्रदर्शित किया जाता है। बोम्माला कोलुवु के दौरान गुड़ियाओं का प्रदर्शन इतना लोकप्रिय है कि इसे गुड़िया उत्सव के रूप में भी जाना जाता है।
    दक्षिण भारत में, गुड़ियाओं के सार्वजनिक प्रदर्शन के अलावा, नवरात्रि के नौ दिनों को तीन-तीन दिनों में विभाजित किया जाता है। नवरात्रि के पहले तीन दिनों में देवी दुर्गा की पूजा माँ काली के रूप में की जाती है। देवी दुर्गा के बाद अगले तीन दिनों तक धन और समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। नवरात्रि के अन्तिम तीन दिनों में विद्या और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।
  • कर्णाटक में नवरात्रि
    कर्णाटक में, नवरात्रि के नौवें दिन को आयुध पूजा के रूप में मनाया जाता है। आयुध पूजा के दौरान, पूजा कक्ष में सभी प्रकार के शस्त्र रखे जाते हैं और विधिपूर्वक पूजा की जाती है। हालाँकि, आधुनिक भारत में, शस्त्र पूजा अब केवल प्रतीकात्मक है और लोग आयुध पूजा के दिन अपने वाहनों की पूजा करते हैं।

नवरात्रि के समान अन्य त्यौहार

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