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Durga Puja

श्रावण चन्द्र माह | सावन माह

DeepakDeepak

श्रावण माह

श्रावण मास

हिन्दु कैलेण्डर में श्रावण मास बहुत ही शुभ महीना होता है। सम्पूर्ण माह भगवान शिव की पूजा के लिये समर्पित होता है।

Shivaratri Shivalingam Abhishekam
श्रावण के दौरान शिवलिंग अभिषेक

श्रावण मास का समय

श्रावण मास की 28 दिन की अवधि को चिह्नित करने के लिये बहुत से विवाद है। हिन्दु कैलेण्डर में, पूर्णिमान्त चक्र के अनुसार चन्द्र मास का प्रारम्भ पूर्णिमा से होता है और अमान्त चक्र के अनुसार चन्द्र मास का प्रारम्भ अमावस्या से होता है।

उत्तर भारत में, पूर्णिमान्त चक्र को चन्द्र मास की गणना के लिये माना जाता है। यह अलिखित है कि उत्तर भारतीय कैलेण्डर ने चन्द्र चक्र को अमान्त चक्र से 15 दिन पहले क्यों और कब स्थानान्तरित किया। पूर्णिमान्त चक्र नागरिक उद्देश्यों के लिये अच्छा हो सकता है लेकिन धार्मिक अनुष्ठानों के लिये यह उपयुक्त नहीं हो सकता है, क्योंकि यह चन्द्र मास की धार्मिक अवधि को 15 दिन आगे बढ़ा देता है।

पूर्णिमान्त चक्र में, चन्द्र वर्ष मीन संक्रान्ति (जो कैलेण्डर में 12वीं और अन्तिम संक्रान्ति है) से पहले शुरू हो सकता है, जो दर्शाता है कि पूर्णिमान्त चक्र में स्पष्ट दोष हैं। हालाँकि, अमान्त चक्र में, चन्द्र वर्ष हमेशा मीन संक्रान्ति के बाद और मेष संक्रान्ति से ठीक पहले प्रारम्भ होता है। इसीलिये, द्रिक पञ्चाङ्ग के अनुसार, श्रावण मास का पालन करने के लिये अमान्त माह चक्र का पालन करना अधिक उपयुक्त लगता है।

ज्योतिषीय रूप से भी, अधिकांश पुस्तकें चन्द्र मास की गणना के लिये अमान्त चक्र को ही मानती हैं। यहाँ तक कि, श्रावण महात्म्य, यानी श्रावण मास की महिमा पर लिखी गयी अधिकांश पुस्तकें, श्रावण मास के दौरान किये जाने वाले सभी अनुष्ठानों का वर्णन करने के लिये अमान्त चन्द्र चक्र को ही मानती हैं। उत्तर भारत में हिन्दी क्षेत्रों को छोड़कर, गुजरात, महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्य और अधिकांश पूर्वी तथा दक्षिणी राज्य श्रावण मास का पालन करने के लिये अमान्त चन्द्र चक्र का पालन करते हैं।

तिथि आधारित उपवास के दिन

श्रावण मास के दौरान प्रत्येक तिथि को उपवास रखने के लिये अत्यन्त शुभ माना जाता है। श्रावण मास के दौरान प्रत्येक चन्द्र दिवस को कुछ न कुछ व्रत और पूजा अनुष्ठान करने के लिये चिह्नित किया गया है।

  • शुक्ल प्रतिपदा - रोटक व्रत
  • शुक्ल द्वितीया - औदुम्बर व्रत
  • शुक्ल तृतीया - स्वर्ण गौरी व्रत, हरियाली तीज
  • शुक्ल चतुर्थी - दूर्वा गणपति व्रत
  • शुक्ल पञ्चमी - नाग पञ्चमी
  • शुक्ल षष्ठी - सुपोदान व्रत
  • शुक्ल सप्तमी - शीतला सप्तमी व्रत
  • शुक्ल अष्टमी - देवी पवित्ररोपण
  • शुक्ल नवमी - कुमारी व्रत
  • शुक्ल दशमी - आशा दशमी व्रत
  • शुक्ल एकादशी - श्रीधर व्रत, भगवान विष्णु एकादशी व्रत
  • शुक्ल द्वादशी - भगवान विष्णु पवित्ररोपण
  • शुक्ल त्रयोदशी - कामदेव षोडश पूजा
  • शुक्ल चतुर्दशी - शिव पूजा
  • पूर्णिमा - रक्षा बन्धन, हयग्रीव जयन्ती, श्रावणी कर्म, सर्प बलि, सभा दीप, उत्सर्जन और उपाकर्म
  • कृष्ण तृतीया - कजरी तीज
  • कृष्ण चतुर्थी - सङ्कट चतुर्थी व्रत, बहुला चतुर्थी
  • कृष्ण पञ्चमी - मानव कल्पादि व्रत
  • कृष्ण षष्ठी - बलराम जयन्ती
  • कृष्ण अष्टमी - कृष्ण जन्माष्टमी व्रत
  • कृष्ण चतुर्दशी - श्रावण शिवरात्रि व्रत
  • अमावस्या - पिठोर व्रत

सप्ताह के दिनों पर आधारित उपवास के दिन

चन्द्र तिथि पर आधारित पूजा कार्यक्रम के अलावा, श्रावण माह के दौरान सप्ताह के दिनों के आधार पर भी पूजा-कार्यक्रम का पालन किया जा सकता है।

  • रविवार - सूर्य देव व्रत
  • सोमवार - भगवान शिव व्रत अर्थात सावन सोमवार व्रत
  • मंगलवार - मङ्गला गौरी व्रत
  • बुधवार - बुध देव व्रत
  • बृहस्पतिवार - गुरु देव व्रत
  • शुक्रवार - जीवन्तिका देवी व्रत
  • शनिवार - भगवान हनुमान व्रत, नृसिंह व्रत

श्रावण में की गयी तपस्या की प्रतिज्ञा

आधुनिक भारत में, धार्मिक पुस्तकों के अनुसार सभी श्रावण व्रत और अनुष्ठानों का पालन नहीं किया जाता है। हालाँकि, श्रावण माह के दौरान सुझाये गये कुछ तपस्यायें नीचे बतायी गयी हैं।

  1. पूरे श्रावण मास के दौरान आहार से किसी एक प्रिय सामग्री का त्याग करना, जैसे सभी प्रकार की पत्तेदार सब्जियों का त्याग करना।
  2. पूरे श्रावण मास में जमीन पर सोना और ब्रह्मचर्य का पालन करना।
  3. शिव लिंग पर अभिषेक के साथ नियमित शिव पूजा, जिसमें गायत्री मन्त्र और शिव मूल मन्त्र अर्थात "ओम नमः शिवाय" का दैनिक पाठ शामिल है।

यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि श्रावण मास के दौरान अन्य देवताओं के लिये की गयी पूजा भगवान शिव को भी प्रसन्न करती है। इसीलिये, पवित्र श्रावण मास के दौरान किसी भी अन्य देवी-देवता के लिये की गयी पूजा भगवान शिव तक पहुँचती है।

अगस्त्य अर्घ्य

अगस्त्य अर्घ्य एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो मुख्य रूप से श्रावण मास में किया जाता है। जिस दिन अगस्त्य तारा कुछ महीनों तक अस्त रहने के बाद उदित होता है, वह दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। अगस्त्य तारा के प्रकट होने के प्रथम दिन, ऋषि अगस्त्य को अर्घ्य अर्पित करना अगस्त्य अर्घ्य कहलाता है।

Kalash
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