मङ्गल प्रदोष व्रत की कथा सुनाने के उपरान्त सूतजी, शौनक आदि ऋषियों से कहते हैं कि "अब मैं बुध त्रयोदशी प्रदोष की कथा का वर्णन करता हूँ, आप सभी ध्यानपूर्वक श्रवण करें -
प्राचीन काल में किसी ग्राम में एक पुरुष निवास करता था। कुछ समय पूर्व ही उसका विवाह संस्कार सम्पन्न हुआ था। विवाहोपरान्त कुछ दिनों के पश्चात् वह पुरुष गौने के लिये अपनी पत्नी को लेने ससुराल पहुँचा। वह बुधवार के दिन पत्नी को विदा कराने पहुँचा। उसके सास-ससुर, साले-सालियों आदि अन्य सम्बन्धियों ने उससे कहा कि बुधवार के दिन पत्नी को विदा करके ले जाना अशुभ माना जाता है, किन्तु उस दामाद ने सास से कहा कि - 'ऐसा कुछ नहीं होता, यह सब अन्धविश्वास है। मैं तो बुधवार के दिन ही अपनी पत्नी को घर लेकर जाऊँगा।'
बारम्बार समझाने पर भी दामाद ने अपना हठ नहीं छोड़ा जिसके कारण अन्ततः विवश होकर उसके सास-ससुर ने अपनी पुत्री को उसके साथ बुधवार के दिन ही विदा कर दिया।
वे दोनों नवविवाहित दम्पति बैलगाड़ी से घर की ओर जा रहे थे। एक नगर से थोड़ा दूर चलते ही मार्ग में उसकी पत्नी को प्यास लगी। पति एक पात्र लेकर उसके लिये जल लेने गया। जब वह लौटकर आया तो उसने देखा की एक अज्ञात व्यक्ति उसकी पत्नी के लिये लोटे में जल लेकर आया है तथा उसकी पत्नी उसका पान कर, उस व्यक्ति के साथ हास्य-विनोद कर रही है।
यह दृश्य देखकर उसके पति को अत्यन्त क्रोध आया तथा वह उस व्यक्ति पर क्रोध करते हुये उसके समीप गया। किन्तु उस व्यक्ति के निकट पहुँचते ही पति आश्चर्यचकित हो उठा क्योंकि अज्ञात व्यक्ति का रूप-रंग तथा शारीरिक संरचना पूर्णतः उस पति के समान ही थी। जैसे वह उसका ही प्रतिबिम्ब हो।
वे दोनों वहीं लड़ने लगे तथा उन्हें लड़ते हुये देखकर वहाँ पथिकों की भीड़ एकत्रित हो गयी। उसी समय वहाँ सैनिक भी आ गये और उस स्त्री से पूछने लगे कि - 'बता इनमें से कौन सा पुरुष तेरा पति है?'
एक समान दो व्यक्तियों को देखकर वह नवविवाहिता धर्म-संकट एवं असमंजस की स्थिति में पड़ गयी एवं व्याकुल हो उठी। मार्ग के मध्य में अपनी पत्नी को इस स्थिति में देखकर वह पुरुष भी व्यथित हो गया तथा मन ही मन भगवान शिव से प्रार्थना करने लगा कि - 'हे महादेव! आप मेरी एवं मेरी नववधू की रक्षा करें, मैंने बुधवार के दिन ही अपनी पत्नी को विदा कराकर अनुचित कार्य किया है। हे भोले-शङ्कर! मैं भविष्य में ऐसा अपराध कदापि नहीं करूँगा, मुझे क्षमा करें भगवन्।'
भगवान शिव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली तथा तत्क्षण ही वह अज्ञात व्यक्ति वहाँ से अन्तर्धान हो गया। तदुपरान्त वह पति अपनी नववधू को लेकर सकुशल अपने घर पहुँच गया। उसी घटनाक्रम के पश्चात् पति-पत्नी दोनों विधि-विधान से श्रद्धापूर्वक बुधवार प्रदोष के व्रत का पालन करने लगे।"
॥इति श्री बुध प्रदोष व्रत कथा सम्पूर्णः॥