उद्यापन एकादशियों का व्रत करने के पश्चात किया जाता है। बिना उद्यापन किये कोई व्रत सिद्ध नहीं होता, अतः नियमित रूप से एकादशियों का व्रत करने वालों को किसी विद्वान ब्राह्मण की देख-रेख में उद्यापन अवश्य करना चाहिये। एकादशी व्रतों का उद्यापन करते समय भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजा-आराधना तो की ही जाती है, हवन भी अनिवार्य रूप से किया जाता है। उद्यापन वाले दिन व्रतधारक को अपने जीवन-साथी सहित स्नानादि करके स्वच्छ, श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिये। पूजा-स्थल को सुन्दर रूप से सजाकर और सभी पूजन सामग्री निकट रखकर भगवान विष्णु एवं देवी श्री लक्ष्मी की षोडशोपचार आराधना की जाती है। पवित्रीकरण, भूतशुद्धि तथा शान्ति पाठ के पश्चात गणेशपूजन आदि की सभी क्रियायें की जाती हैं।
एकादशी व्रतोद्यापन पूजा में कलश स्थापना हेतु ताम्बे के कलश में चावल भरकर रखने का शास्त्रीय विधान है। अष्टदल कमल बनाकर विष्णु एवं लक्ष्मीजी का ध्यान तथा आह्वान तो किया ही जाता है, कृष्ण, श्रीराम, अग्नि, इन्द्र, प्रजापति, विश्वदेवों, ब्रह्माजी आदि का भी आह्वान किया जाता है। तदोपरान्त, मन्त्रों का स्तवन करते हुये एक-एक करके भगवान को सभी सेवायें और वस्तुयें अर्पित की जाती हैं तथा इसके पश्चात हवन किया जाता है। वास्तव में यह सभी कार्य तो पूजन कराने वाला आचार्य अथवा ब्राह्मण ही करता है, आप तो भक्तिपूर्वक पण्डितजी द्वारा बतलाये जाने वाली क्रियायें ही करेंगे। भगवान की पूजा-आराधना और हवन में कितनी वस्तुओं का और कितनी-कितनी मात्राओं में प्रयोग किया जाये यह पूरी तरह आपकी श्रद्धा और सामर्थ्य पर निर्भर करेगा। शास्त्रीय विधान तो भगवान की स्वर्ण प्रतिमा, स्वर्ण आभूषणों, स्वर्ण सिंहासन, छत्र, चमर, पञ्चरत्न, विभिन्न प्रकार की मेवाओं, अनाजों तथा फलों आदि के प्रयोग का है, जबकि सभी पूजन सामग्रियों का प्रयोग तो किया ही जायेगा।
हवन के पश्चात आचार्य को पूजा में प्रयुक्त सभी वस्तुयें, पाँचों कपड़े, जूते, छाता, पाँच बर्तन तथा पलँग सहित सभी बिस्तर एवं घरेलू उपयोग की अनेक वस्तुयें देने का भी शास्त्रीय विधान है। जहाँ तक व्यावहारिकता का प्रश्न है, कितने ब्राह्मणों को भोजन कराया जाये और आचार्य एवं अन्य ब्राह्मणों को कौन-कौन सी वस्तुयें दान दी जायें, इसका महत्त्व तो है ही, मुख्य महत्त्व आपकी भावना और श्रद्धा का है।