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2026 सूरदास जयन्ती का दिन लँकेस्टर, California, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये

DeepakDeepak

2026 सूरदास जयन्ती

लँकेस्टर, संयुक्त राज्य अमेरिका
सूरदास जयन्ती
21वाँ
अप्रैल 2026
Tuesday / मंगलवार
सूरदास
Surdas

सूरदास जयन्ती

कवी सूरदास की 548वाँ जन्म वर्षगाँठ
सूरदास जयन्ती मंगलवार, अप्रैल 21, 2026 को
पञ्चमी तिथि प्रारम्भ - अप्रैल 20, 2026 को 03:44 पी एम बजे
पञ्चमी तिथि समाप्त - अप्रैल 21, 2026 को 12:49 पी एम बजे

टिप्पणी: सभी समय १२-घण्टा प्रारूप में लँकेस्टर, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।

सूरदास जयन्ती 2026

सन्त सूरदास (1478-1581 ई.पू.) एक महान कवि तथा संगीतकार थे, जो भगवान कृष्ण को समर्पित अपने भक्ति गीतों के लिये विश्व विख्यात हैं। सूरदास जन्मान्ध थे, अर्थात वह जन्म से ही अन्धे थे। सूरदास के जन्मान्ध होने के कारण, उन्हें पारिवारिक उपेक्षा का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप, उन्होंने छह वर्ष की आयु में अपना घर-परिवार त्याग दिया तथा अल्पायु में ही भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन हो गये।

इतिहासकारों के अनुसार, सन्त सूरदास का जन्म 1478 ई.पू. में हरियाणा राज्य के फरीदाबाद में सिही नामक ग्राम में हुआ था। हालाँकि, इतिहासकारों का एक विशाल वर्ग यह मानता है कि, उनका जन्म आगरा जिले के पास रुनकता नामक ग्राम में हुआ था। हिन्दु चन्द्र कैलेण्डर के अनुसार, सन्त सूरदास की जयन्ती, वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि पर मनायी जाती है।

कवि सूरदास के मधुर संगीत एवं भक्तिमय काव्य के कारण उन्हें अत्यधिक ख्याति प्राप्त हुयी। सूरदास जी की प्रसिद्धि की चर्चा सुनकर, मुगल सम्राट अकबर उनके संरक्षक बन गये। सन्त सूरदास ने अपने जीवनकाल के अन्तिम वर्ष ब्रज क्षेत्र में व्यतीत किये। सूरदास जी अत्यधिक ख्याति प्राप्त करने के उपरान्त भी साधारण जीवन जीते थे तथा अपने भजन गायन एवं धार्मिक प्रवचनों के बदले में मिलने वाले दान से ही जीवनयापन करते थे।

इतिहासकारों का मानना है कि, सूरदास जी ने सूरसागर नामक एक काव्यग्रन्थ में स्वरचित सैकड़ों सहस्र रचनाओं को समाहित किया था, किन्तु उनमें से लगभग 8,000 रचनायें ही वर्तमान में अस्तित्व में हैं।

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