करवा चौथ की रीति-रिवाजों में, सिनेमा और टीवी कार्यक्रमों द्वारा जिन मिथकों एवं चकाचौन्ध करने वाले आडम्बरों की मिलावट की गयी है, हम इस लेख में उन सभी को एक ओर रखने का प्रयास करेंगे। हालाँकि, हम सिनेमा की सराहना करते हैं और करवा चौथ के दिन को न केवल भारत में, अपितु विश्व भर के सभी भारतीयों के मध्य इतना लोकप्रिय बनाने हेतु उसे श्रेय भी देते हैं।
धर्मसिन्धु, निर्णयसिन्धु और व्रतराज सहित हमारे विभिन्न धर्म ग्रन्थों में करवा चौथ को करक चतुर्थी के रूप में वर्णित किया गया है। करक और करवा दोनों ही छोटे घड़े को सन्दर्भित करते हैं, जिसका उपयोग पूजा के समय किया जाता है। परिवार की कुशलता की कामना से करवा दान भी किया जाता है। धर्म ग्रन्थों में यह उल्लेख किया गया है कि करवा चौथ पर केवल स्त्रियों को ही व्रत पालन करने का अधिकार है। करवा चौथ का व्रत न केवल पति की कुशलता एवं दीर्घायु के लिये किया जाता है, अपितु परिवार के पुत्र, पौत्र, धन और चिरस्थायी समृद्धि की कामना से भी किया जाता है।
करवा चौथ के दिन संकष्टी चतुर्थी भी मनायी जाती है, इस दिन भगवान गणेश के लिये व्रत का पालन किया जाता है। यद्यपि, करवा चौथ के दिन भगवान शिव एवं उनके कुटुम्ब की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें देवी पार्वती, भगवान गणेश एवं भगवान कार्तिकेय समिल्लित हैं। पूजा के समय सर्वप्रथम देवी पार्वती की पूजा की जाती है, जो अखण्ड सौभाग्यवती हैं, तत्पश्चात भगवान शिव, भगवान कार्तिकेय एवं भगवान गणेश की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन स्त्रियाँ देवी गौरा और चौथ माता की भी पूजा करती हैं, जो देवी पार्वती का ही प्रतिनिधित्व करती हैं।
व्रत के दिन, प्रातः स्नानोपरान्त स्त्रियों को पति एवं परिवार की कुशलता हेतु व्रत पालन का प्रण लेना चाहिये, जिसे सङ्कल्प कहा जाता है। सङ्कल्प ग्रहण करते समय यह भी कहा जाता है कि, व्रत में किसी प्रकार के अन्न-जल का सेवन नहीं किया जायेगा एवं चन्द्र दर्शन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जायेगा। सङ्कल्प ग्रहण करते समय निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करना चाहिये -
मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।
अनुवाद - इसका अर्थ है "मैं पति, पुत्र एवं पौत्रों की कुशलता और अचल सम्पत्ति की प्राप्ति हेतु करक चतुर्थी के व्रत का पालन करुँगी"।
व्रतराज के अनुसार करवा चौथ पूजा करने का सर्वोत्तम समय सन्ध्याकाल होता है, जो सूर्यास्त के उपरान्त आरम्भ होता है। इसीलिये कृपया अपने नगर के लिये स्थान निर्धारित करने के पश्चात नगर आधारित करवा चौथ पूजा मुहूर्त ज्ञात कर लें।
करवा चौथ पूजा, देवी पार्वती की कृपा प्राप्ति हेतु की जाती है। माता पार्वती की पूजा करने हेतु स्त्रियाँ या तो दीवार पर देवी गौरा एवं चौथ माता की छवि की रचना करती हैं अथवा कागज पर मुद्रित करवा चौथ पूजा कैलेण्डर पर चौथ माता की छवि का उपयोग करती हैं। देवी गौरा और चौथ माता देवी पार्वती का ही प्रतिनिधित्व करती हैं। देवी पार्वती की पूजा के समय निम्नलिखित मन्त्र का जाप करना चाहिये -
नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥
अनुवाद - इसका अर्थ है "हे भगवान शिव की प्रिय अर्धाङ्गिनी, कृपया अपनी भक्त स्त्रियों के पति को दीर्घायु करें एवं उन्हें सुन्दर पुत्र प्रदान करें"। देवी गौरा के पश्चात, भगवान शिव, भगवान कार्तिकेय एवं भगवान गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है।
सामान्यतः स्त्रियाँ समूह में पूजा करती हैं और करवा चौथ की कथा का पाठ एवं श्रवण करती हैं, जिसे करवा चौथ व्रत का माहात्म्य कहा जाता है।
पूजन सम्पन्न होने के पश्चात, करवा किसी ब्राह्मण अथवा योग्य महिला को दान कर देना चाहिये। करवा अथवा करक को जल या दुग्ध से भरकर उसमें बहुमूल्य रत्न अथवा सिक्के डालने चाहिये। करवा, किसी ब्राह्मण या सुहागन स्त्री को ही दान करना चाहिये। करवा दान करते समय निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करना चाहिये -
करकं क्षीरसम्पूर्णा तोयपूर्णमथापि वा। ददामि रत्नसंयुक्तं चिरञ्जीवतु मे पतिः॥
अनुवाद - इसका अर्थ है "हे! मूल्यवान रत्नों एवं दुग्ध से भरे करवे; मैं तुम्हें अपने पति की दीर्घायु की कामना से दान करती हूँ"।
पूजन के पश्चात स्त्रियों को चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करनी चाहिये। स्त्रियों को भगवान चन्द्र की पूजा करनी चाहिये और उन्हें अर्घ्य अर्पण करने के उपरान्त ही व्रत सम्पूर्ण करना चाहिये।