☰
Search
Mic
हि
Android Play StoreIOS App Store
Setting
Clock

भगवान शनि | शनि देव

DeepakDeepak

भगवान शनि

शनिदेव | भगवान शनैश्चर

हिन्दु धर्म में कर्म सिद्धान्त और पुनर्जन्म को सृष्टि चक्र के लिये उत्तरदायी माना जाता है। इसीलिये शनि ग्रह को बेहद महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। क्योंकि शनिदेव कर्म फलदाता माने गये हैं। शनिदेव सप्तवारों में से शनिवार पर शासन करते हैं। इसीलिये विभिन्न क्षेत्रों में शनिवार के दिन शनि देव की विशेष आराधना की जाती है।

Shani Graha
शनि देव

शनिदेव ग्रह के रूप में शनि मण्डल में निवास करते हैं। अधिकांशतः शनि देव से लोग भय का भाव रखते हैं किन्तु शनि देव न्याय के देवता हैं। वह प्रत्येक प्राणी को उसके विभिन्न शुभ एवं अशुभ कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। शनिदेव का मूल कार्य ही प्राणियों के कर्मों के अनुसार उचित फल प्रदान करना है। इसी कारण से शनिदेव को धर्मराज, मन्दगामी, सूर्य-पुत्र, शनिश्चर, छायापुत्र एवं दण्डाधिकारी आदि नामों से भी पुकारा जाता है।

शनि देव भगवान शिव के परम भक्त हैं। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा तथा प्रत्यधिदेवता यम हैं। शनि ग्रह के विषय में विभिन्न धर्मग्रन्थों में विवरण प्राप्त होता है।

शनि उत्पत्ति

धर्म ग्रन्थों के अनुसार, सूर्य की पत्नी छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ है। देवी छाया के गर्भकाल के समय छाया देवी भगवान शिव की भक्ति में निरन्तर लीन रहती थीं। देवी छाया को शिव जी की भक्ति में अन्न-जल का भी ध्यान नहीं रहता था। मान्यताओं के अनुसार, यही कारण है कि उनकी अनियमित दिनचर्या का प्रभाव गर्भ में पल रहे शिशु पर पड़ा, जिसके परिणाम स्वरूप शनि देव श्याम वर्ण के हो गये। शनि देव के श्यामवर्ण होने के कारण सूर्यदेव ने अपनी पत्नी छाया पर यह सन्देहात्मक आरोप लगाया की शनि उनका पुत्र नहीं हैं।

उसी समय से शनि अपने पिता के प्रति शत्रुता की भावना रखते हैं। शनि देव ने भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु घोर तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने शनि देव से वरदान माँगने को कहा तब शनि देव ने प्रार्थना की, "युगों-युगों में मेरे पिता सूर्य द्वारा मेरी माता छाया का अनेक अवसरों पर अपमान किया गया है। अतः माता की इच्छा है कि, मैं अपनी माता के अपमान का प्रतिशोध लूँ और सूर्यदेव से भी अधिक शक्तिशाली रहूँ।" शनिदेव के मुख से इन वचनों का श्रवण कर भगवान शिव ने वरदान देते हुये कहा कि, "नवग्रहों में शनि का सर्वश्रेष्ठ स्थान होगा। मानव तथा देवता दोनों ही तुम्हारे नाम से भयभीत होंगे।"

शनि कुटुम्ब वर्णन

शनि देव भगवान सूर्य के पुत्र हैं तथा उनकी माता का नाम छाया था। देवी छाया को संवर्णा के नाम से भी जाना जाता है। शनि देव का विवाह चित्ररथ की कन्या नीलादेवी से हुआ था, जो धामिनी के नाम से भी विख्यात हैं। यमराज, यमुना, वैवस्वत मनु, सवर्णि मनु, कर्ण, सुग्रीव, रेवन्त, भद्रा, भया, नास्त्य, दस्र, रेवन्त तथा ताप्ती आदि भगवान शनि के भाई-बहन हैं।

शनि स्वरूप वर्णन

धर्म ग्रन्थों में शनिदेव को, नीलमणि के समान रँग वाला वर्णित किया गया है। शनि नीले वस्त्र एवं स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित रहते हैं। सामान्यतः वह कौआ एवं गिद्ध पर आरूढ़ रहते हैं। शनि भगवान को चतुर्भुज रूप में दर्शाया जाता है, वह अपनी चार भुजाओं में क्रमशः धनुष, बाण, त्रिशूल तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। शनि देव के अन्य विभिन्न वाहनों तथा उनपर आगमन का वर्णन भी प्राप्त होता है। गज, हय, गदर्भ, सिंह, जम्बुक आदि पर भी शनि आरूढ़ होते हैं। शनि देव का रथ लोह निर्मित है।

ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह का महत्त्व

वैदिक ज्योतिष के अनुसार पुष्य, अनुराधा तथा उत्तराभाद्रपद नक्षत्रों के स्वामी शनिदेव हैं। शनि को भचक्र की मकर तथा कुम्भ राशियों का स्वामी माना जाता है। तथा वह प्रत्येक राशि में 30 माह की अवधि के लिये गोचर करते हैं। नीलम शनि का प्रिय रत्न है। शनि की तीसरी, सातवीं, तथा दसवीं दृष्टि मानी जाती है। शनि सूर्य, चन्द्र और मंगल का शत्रु तथा बुध एवं शुक्र का मित्र है। गुरु के प्रति शनि तटस्थ भाव रखता है। कुण्डली में शनि नकारात्मक स्थिति में होने पर वायु विकार, कम्पन, अस्थियाँ तथा दन्त रोग देते हैं। शनि देव की महादशा 19 वर्ष की होती है।

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, मध्यमा अँगुली के मूल स्थान को शनि पर्वत कहा जाता है। शनि पर्वत पर उपस्थित रेखाओं को शनि रेखा कहा जाता है। शनि रेखा को भाग्य रेखा के नाम से भी जाना जाता है। शनि रेखा से व्यक्ति के भाग्य एवं कर्म सम्बन्धी फलविचार किया जाता है।

अङ्कशास्त्र के अनुसार, शनि देव अङ्क 8 का प्रतिधिनित्व करते हैं। यदि किसी जातक का जन्म किसी माह की 8, 17 तथा 26 दिनाँक पर होता है तो उसका मूलाङ्क 8 तथा मूलाङ्क स्वामी शनि होगा।

शनि भगवान के मन्त्र

सामान्य मन्त्र-

ॐ शं शनैश्चराय नमः।

बीज मन्त्र-

ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।

शनि गायत्री मन्त्र-

ॐ सूर्यात्मजाय विद्महे, मृत्युरूपाय धीमहि, तन्नः सौरिः प्रचोदयात्॥

शनि से सम्बन्धित पर्व

शनि के प्रसिद्ध एवं प्रमुख मन्दिर

  • शनि मन्दिर, शिंगणापुर, महाराष्ट्र
  • शनिश्चरा मन्दिर, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
  • कोकिला वन, कोशी, उत्तर प्रदेश
Kalash
कॉपीराइट नोटिस
PanditJi Logo
सभी छवियाँ और डेटा - कॉपीराइट
Ⓒ www.drikpanchang.com
प्राइवेसी पॉलिसी
द्रिक पञ्चाङ्ग और पण्डितजी लोगो drikpanchang.com के पञ्जीकृत ट्रेडमार्क हैं।
Android Play StoreIOS App Store
Drikpanchang Donation