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नक्षत्र सप्त श्रेणी वर्गीकरण

DeepakDeepak

नक्षत्रों के सात समूह

• स्थिर नक्षत्र
• चर एवं चल नक्षत्र
• उग्र एवं क्रूर नक्षत्र
• मिश्र एवं साधारण नक्षत्र
• क्षिप्र एवं लघु नक्षत्र
• मृदु एवं मैत्र नक्षत्र
• तीक्ष्ण एवं दारुण नक्षत्र

वैदिक ज्योतिष में नक्षत्र समूहन

वैदिक ज्योतिष के अनुसार, यदि हम राशि चक्र को सत्ताईस (27) समान भागों में विभाजित करते हैं, तो प्रत्येक भाग 13° 20′ का होगा तथा प्रत्येक भाग को नक्षत्र कहा जाता है। यदि हम मेष राशि, अर्थात् निरयण के अनुसार प्रारम्भिक स्थिति से आरम्भ करते हैं, तो सभी नक्षत्रों को निम्नलिखित सूचि के अनुसार नाम दिया जा सकता है।

  1. अश्विनी - क्षिप्र एवं लघु
  2. भरणी - उग्र एवं क्रूर
  3. कृत्तिका - मिश्र एवं साधारण
  4. रोहिणी - स्थिर
  5. मृगशिरा - मृदु एवं मैत्र
  6. आर्द्रा - तीक्ष्ण एवं दारुण
  7. पुनर्वसु - चर
  8. पुष्य - क्षिप्र एवं लघु
  9. अश्लेशा - तीक्ष्ण एवं दारुण
  10. मघा- उग्र एवं क्रूर
  11. पूर्वाफाल्गुनी - उग्र एवं क्रूर
  12. उत्तराफाल्गुनी - स्थिर
  13. हस्त - क्षिप्र एवं लघु
  14. चित्रा - मृदु एवं मैत्र
  15. स्वाती - चर
  16. विशाखा - मिश्र एवं साधारण
  17. अनुराधा - मृदु एवं मैत्र
  18. ज्येष्ठा - तीक्ष्ण एवं दारुण
  19. मूल - तीक्ष्ण एवं दारुण
  20. पूर्वाषाढा - उग्र एवं क्रूर
  21. उत्तराषाढा - स्थिर
    1. अभिजित - क्षिप्र एवं लघु
  22. श्रवण - चर
  23. धनिष्ठा - चर
  24. शतभिषा - चर
  25. पूर्व भाद्रपद - उग्र एवं क्रूर
  26. उत्तर भाद्रपद - स्थिर
  27. रेवती - मृदु एवं मैत्र

इन 28 नक्षत्रों को सात समूहों में विभाजित किया गया है। नक्षत्रों का सात समूहों में वर्गीकरण इस प्रकार है -

  1. स्थिर नक्षत्र

    निम्नलिखित चार नक्षत्र, स्थिर प्रकृति के माने जाते हैं।

    • रोहिणी (4)
    • उत्तराफाल्गुनी (12)
    • उत्तराषाढा (21)
    • उत्तर भाद्रपद (26)

    स्थिर नक्षत्र श्रेणी को ध्रुव, अचल तथा स्थायी के नाम से भी जाना जाता है। नींव रखना, कुआँ खोदना, गृह निर्माण, उपनयन, कृषि, नौकरी आरम्भ करना आदि, सभी स्थिर प्रकृति के कार्य इन नक्षत्रों में किये जाते हैं।

  2. चर नक्षत्र

    निम्नलिखित पाँच नक्षत्र, चर प्रकृति के माने जाते हैं।

    • पुनर्वसु (7)
    • स्वाती (15)
    • श्रवण (22)
    • धनिष्ठा (23)
    • शतभिषा (24)

    चर नक्षत्र श्रेणी को चल नक्षत्र के नाम से भी जाना जाता है। वाहन, घोड़े, हाथी पर सवारी तथा यात्रा आदि, सभी चल गतिविधियाँ इन नक्षत्रों में की जा सकती हैं। इन कार्यों के अतिरिक्त भी वे सभी अन्य कार्य, जिनमें गति की आवश्यकता होती है, चल नक्षत्र में किये जा सकते हैं।

  3. उग्र एवं क्रूर नक्षत्र

    निम्नलिखित पाँच नक्षत्र, क्रूर प्रकृति के माने जाते हैं।

    • भरणी (2)
    • मघा (10)
    • पूर्वाफाल्गुनी (11)
    • पूर्वाषाढा (20)
    • पूर्व भाद्रपद (25)

    क्रूर नक्षत्र श्रेणी को उग्र नक्षत्र श्रेणी के रूप में भी जाना जाता है। ये सभी नक्षत्र प्रकृति में आक्रामक हैं तथा हत्या, धोखाधड़ी, अग्नि का उपयोग करने वाले कार्य, चोरी, विष, विषैली औषधियों पर शोध, आयुधों का क्रय या विक्रय तथा उपयोग, शल्य चिकित्सा संचालन, बन्दूक का अनुज्ञापत्र प्राप्त करने आदि के लिये उपयुक्त होते हैं।

  4. सामान्य नक्षत्र

    निम्नलिखित दो नक्षत्र, सामान्य प्रकृति के माने जाते हैं।

    • कृत्तिका (3)
    • विशाखा (16)

    सामान्य नक्षत्र श्रेणी को मिश्र, साधारण तथा मिश्रित नक्षत्र के रूप में भी जाना जाता है। ये नक्षत्र अग्नि से सम्बन्धित कार्य, वेल्डिंग, धातु गलाना, गैस कार्य, निर्माण कार्य, औषधि तैयार करना, अग्निहोत्र आदि के लिये उत्तम होते हैं।

  5. क्षिप्र एवं लघु नक्षत्र

    निम्नलिखित चार नक्षत्र, लघु प्रकृति के माने जाते हैं।

    • अश्विनी (1)
    • पुष्य (8)
    • हस्त (13)
    • अभिजित (21-a)

    लघु नक्षत्र श्रेणी को क्षिप्र नक्षत्र के रूप में भी जाना जाता है। ये नक्षत्र निर्माण कार्य, दुकान आरम्भ करना, विक्रय, सहवास, शिक्षा आरम्भ करना, आभूषण निर्माण तथा धारण, ललित कला, कला सीखने तथा प्रदर्शन करने आदि के लिये उपयुक्त होते हैं।

    चल नक्षत्र के अन्तर्गत किये जाने वाले सभी कार्य लघु नक्षत्र के समय भी किये जा सकते हैं। पुष्य नक्षत्र को विवाह समारोह के लिये अनुकूल नहीं माना जाता है।

  6. सौम्य नक्षत्र

    निम्नलिखित चार नक्षत्र, सौम्य प्रकृति के माने जाते हैं।

    • मृगशिरा (5)
    • चित्रा (14)
    • अनुराधा (17)
    • रेवती (27)

    सौम्य नक्षत्र श्रेणी को मृदु तथा मैत्र के नाम से भी जाना जाता है। गायन, संगीत अध्ययन, वस्त्र सिलना एवं धारण करना, खेलना, खेल कौशल सीखना, मित्र बनाना, आभूषण निर्माण तथा धारण करना आदि गतिविधियाँ इन नक्षत्रों में की जा सकती हैं।

    स्थिर नक्षत्र के समय की जाने वाली सभी गतिविधियाँ, सौम्य नक्षत्र के समय भी की जा सकती हैं।

  7. तीक्ष्ण एवं दारुण नक्षत्र

    निम्नलिखित चार नक्षत्र, तीक्ष्ण प्रकृति के माने जाते हैं।

    • आर्द्रा (6)
    • अश्लेशा (9)
    • मूल (19)
    • ज्येष्ठा (18)

    तीक्ष्ण नक्षत्र श्रेणी को दारुण अथवा कटु भी कहा जाता है। ये नक्षत्र तान्त्रिक क्रियायें, हत्या, काला जादू, आक्रामक एवं घातक कार्य, दूसरों को विभाजित करने, पशुओं को प्रशिक्षित करने एवं उन्हें वश में करने तथा साधना एवं हठ योग के लिये उत्तम होते हैं।

    क्रूर नक्षत्र के समय किये जाने वाले सभी कार्य तीक्ष्ण नक्षत्र के समय भी किये जा सकते हैं।

Kalash
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द्रिक पञ्चाङ्ग और पण्डितजी लोगो drikpanchang.com के पञ्जीकृत ट्रेडमार्क हैं।
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