हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार, एक वर्ष में कुल बारह संक्रान्ति होती हैं। सभी बारह संक्रान्तियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।
मकर संक्रान्ति एवं कर्क संक्रान्ति, यह दो अयन संक्रान्ति हैं, जिन्हें क्रमशः उत्तरायण संक्रान्ति एवं दक्षिणायन संक्रान्ति के रूप में भी जाना जाता है। ये हिन्दु कैलेण्डर में शीतकालीन संक्रान्ति एवं ग्रीष्म संक्रान्ति के समान हैं। अयनी संक्रान्तियाँ पृथ्वी के अग्रगमन के कारण मौसमी संक्रान्तियों से दूर हो रही हैं। सहस्रों वर्षों के उपरान्त, ये अयनी संक्रान्तियाँ मौसमी संक्रान्तियों से पुनः मेल खायेंगी।
ज्योतिष की वह शाखा, जिसके अन्तर्गत पृथ्वी के अग्रगमन पर विचार एवं अध्ययन किया जाता है, उसे निर्णय ज्योतिष के रूप में जाना जाता है। हिन्दु कैलेण्डर निर्णय ज्योतिष पर आधारित है। निर्णय ज्योतिष को निरयण ज्योतिष के रूप में भी जाना जाता है। निर्णय ज्योतिष के समकक्ष को उष्णकटिबन्धीय अथवा सायन ज्योतिष के रूप में जाना जाता है, जिसका पालन अधिकांश पश्चिमी ज्योतिषी करते हैं। पृथ्वी के अग्रगमन को अयन-अंश के रूप में भी जाना जाता है।
जिस समय सूर्य उत्तरी गोलार्ध में गमन करता है, उस छः माह की अवधि को उत्तरायण कहा जाता है, तथा जब सूर्य छः माह के लिये दक्षिणी गोलार्ध में गमन करता है, तो उसे दक्षिणायण के रूप में जाना जाता है। पृथ्वी के अग्रगमन, अर्थात् पृथ्वी के अक्ष में हो रहे परिवर्तन के कारण, अयन संक्रान्ति की उपरोक्त परिभाषायें भ्रामक हो गयी हैं।
हिन्दु धर्म के अनुसार, भगवान सूर्य एक प्रमुख देवता हैं, जिन्हें सूर्य देव के रूप में भी जाना जाता है। हिन्दु कैलेण्डर में मकर संक्रान्ति 14 अथवा 15 जनवरी को निर्धारित होती है। परन्तु, द्रिक गणनाओं के अनुसार, मकर संक्रान्ति से लगभग 24 दिन पहले (21 अथवा 22 दिसम्बर को ही), भगवान सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर अपनी यात्रा आरम्भ कर देते हैं।
वैदिक ज्योतिषी एवं पञ्चाङ्गकर्ता इस तथ्य से अवगत हैं तथा कोई सुधार नहीं करते हैं, क्योंकि सितारों की सही स्थिति को चिह्नित करने के लिये पृथ्वी के अग्रगमन पर भी विचार किया जाना चाहिये।
तारों की सही स्थिति ही हिन्दु कैलेण्डर का आधार है तथा इसमें कोई भी सम्भावित सुधार, नक्षत्रीय ज्योतिष की सम्पूर्ण अवधारणा को अमान्य कर देगा। प्रत्येक मकर संक्रान्ति के समय अन्तरिक्ष में सूर्यदेव की पृष्ठभूमि में स्थित तारों अथवा नक्षत्रों की अवस्था सदैव एक समान होती है तथा यही मकर संक्रान्ति के दिन को निर्धारित करने की मूल अवधारणा थी और वर्तमान में भी है। यद्यपि, शीतकालीन संक्रान्ति के समय, सूर्यदेव की पृष्ठभूमि में उन तारों की स्थिति का मिलान नहीं होता है, जो मकर संक्रान्ति के दिन को निर्धारित करने के लिये आवश्यक हैं। इसीलिये, हिन्दु कैलेण्डर ऋतुओं को वरीयता नहीं देता है तथा उन्हें पृथक होने देता है। हिन्दु कैलेण्डर में मकर संक्रान्ति सहित सभी संक्रान्ति के दिनों को चिह्नित करने के लिये सूर्य की एवं उसकी पृष्ठभूमि में स्थित तारों की समान स्थिति पर विचार किया जाता है।
उपर्युक्त स्पष्टीकरण के अनुसार, हिन्दु अभी भी सही दिन पर मकर संक्रान्ति मनाते हैं, हालाँकि उत्तरायण शब्द, समय के साथ अप्रासंगिक हो गया है तथा अधिकांश भारतीयों ने किसी भी धार्मिक गतिविधियों के लिये शीतकालीन संक्रान्ति एवं ग्रीष्म संक्रान्ति को अस्वीकार करके इस तथ्य को स्वीकार कर लिया है।
इसी प्रकार दक्षिणायन, अर्थात् जिस समय सूर्यदेव दक्षिणी गोलार्ध की ओर यात्रा आरम्भ करते हैं, कर्क संक्रान्ति से लगभग 24 दिन पूर्व, 21 अथवा 22 जून को पड़ता है। कर्क संक्रान्ति वर्तमान में 15 या 16 जुलाई को होती है, जो ग्रीष्म संक्रान्ति से 24 दिन के अन्तराल पर है।
अयन संक्रान्ति के लिये शुभ समय अवधि धार्मिक ग्रन्थों में भली प्रकार से वर्णित है। मकर संक्रान्ति के लिये संक्रान्ति के उपरान्त 40 घटी तथा कर्क संक्रान्ति के लिये संक्रान्ति से 30 घटी पहले का समय संक्रान्ति से सम्बन्धित सभी अनुष्ठान करने के लिये शुभ है।
मेष संक्रान्ति एवं तुला संक्रान्ति, यह दो विषुव संक्रान्ति हैं, जिन्हें क्रमशः वसन्त सम्पात तथा शरद सम्पात के रूप में भी जाना जाता है। ये हिन्दु कैलेण्डर में वसन्त विषुव एवं शरद विषुव के समान हैं तथा ये विषुव संक्रान्ति, पृथ्वी की पूर्वगामी गति के कारण मौसमी विषुव से पृथक हो रही हैं। सहस्रों वर्षों के पश्चात, ये विषुव संक्रान्ति मौसमी विषुव के साथ पुनः मेल खाने लगेंगी।
इन दो संक्रान्तियों के लिये संक्रान्ति से पूर्व एवं पश्चात की पन्द्रह घटी शुभ कार्यों के लिये मानी जाती हैं।
सिंह संक्रान्ति, कुम्भ संक्रान्ति, वृषभ संक्रान्ति तथा वृश्चिक संक्रान्ति, यह चार विष्णुपदी संक्रान्ति हैं। इन सभी चार संक्रान्तियों के लिये संक्रान्ति से पूर्व सोलह घटी शुभ कार्यों के लिये स्वीकार की जाती हैं।
मीन संक्रान्ति, कन्या संक्रान्ति, मिथुन संक्रान्ति तथा धनु संक्रान्ति , यह चार षडशीतिमुखी संक्रान्ति हैं। इन सभी चार संक्रान्तियों के लिये संक्रान्ति के पश्चात की सोलह घटी क्षणों को शुभ कार्यों के लिये स्वीकार किया जाता है।