ताम्बूल भक्षण एक ऐसा अनुष्ठान है, जिसमें शिशु को सर्व प्रथम पान का पत्ता प्रदान किया जाता है। सामान्यतः शिशु की ढाई माह की आयु में यह संस्कार किया जाता है। अधिकांशतः ताम्बूल भक्षण, अन्नप्राशन के साथ ही किया जाता है। आधुनिक समय में, शिशु को पान खिलाना अनुचित लगता है। इसीलिये ताम्बूल भक्षण के समय शिशु को पान के स्थान पर नूतन फल प्रदान किये जा सकते हैं।
टिप्पणी: सभी समय २४-घण्टा प्रारूप में Cambridge, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
सभी समय अन्तरालों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है -
ताम्बूल भक्षण के लिये शुभ मुहूर्त का चयन करते समय निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान रखना चाहिये।
नक्षत्र: सभी स्थिर नक्षत्र अर्थात रोहिणी (4), उत्तराफाल्गुनी (12), उत्तराषाढा (21), उत्तर भाद्रपद (26), चल नक्षत्र अर्थात स्वाती (15), पुनर्वसु (7), श्रवण (22), धनिष्ठा (23), तथा सभी सौम्य एवं मित्र नक्षत्र अर्थात मृगशिरा (5), रेवती (27), चित्रा (14), अनुराधा (17) तथा सभी लघु नक्षत्र अर्थात हस्त (13), अश्विनी (1), पुष्य (8) तथा अन्य अर्थात ज्येष्ठा (18), मूला (19) ताम्बूल भक्षण के लिये शुभ माने जाते हैं।
तिथि: ताम्बूल भक्षण हेतु सभी रिक्ता तिथि अर्थात, षष्ठी, अष्टमी, द्वादशी, शुक्ल प्रतिपदा, कृष्ण त्रयोदशी तथा अमावस्या को त्याज्य माना जाता है। उक्त तिथियों को त्याग कर शेष तिथियाँ, ताम्बूल भक्षण के लिये शुभ मानी जाती हैं।
दिन: मंगलवार एवं शनिवार के अतिरिक्त, सप्ताह के अन्य सभी दिन ताम्बूल भक्षण के लिये उत्तम माने जाते हैं।
लग्न: वृषभ (2), मिथुन (3), कन्या (6), मकर (10), कुम्भ (11) तथा मीन (12) लग्न को ताम्बूल भक्षण के लिये शुभ माना जाता हैं।