शिशु को प्रथमतः भूमि पर बैठाने की प्रथा को भूमि उपवेशन के नाम से जाना जाता है। भूमि उपवेशन, हिन्दु धर्म में एक महत्वपूर्ण संस्कार है। जिस समय शिशु को पहली बार भूमि पर बैठाया जाता है, वह समय शिशु के शारीरिक विकास एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
टिप्पणी: सभी समय १२-घण्टा प्रारूप में Dharuhera, भारत के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
सभी समय अन्तरालों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है -
सामान्यतः, भूमि उपवेशन जन्म के 5वें माह में किया जाता है। भूमि उपवेशन हेतु शुभ मुहूर्त का चयन करते समय निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देना चाहिये।
नक्षत्र: सभी स्थिर नक्षत्र, अर्थात रोहिणी (4), उत्तराफाल्गुनी (12), उत्तराषाढा (21), उत्तर भाद्रपद (26), एवं सौम्य व मित्र नक्षत्र मृगशिरा (5), अनुराधा (17) तथा सभी लघु नक्षत्र, अर्थात अश्विनी (1), पुष्य (8), हस्त (13) तथा ज्येष्ठा (18) को भूमि उपवेशन हेतु शुभ माना जाता है।
तिथि: रिक्ता तिथि के अतिरिक्त सभी तिथियाँ भूमि उपवेशन के लिये उत्तम मानी जाती हैं। अन्य शब्दों में, शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष दोनों पक्षों की चतुर्थी (4), नवमी (9) एवं चतुर्दशी (14) के अतिरिक्त सभी तिथियों को त्याग देना चाहिये।
दिन: रविवार, मंगलवार तथा शनिवार के अतिरिक्त, अन्य सभी सप्ताह भूमि उपवेशन के लिये उत्तम माने जाते हैं।
लग्न: सभी स्थिर लग्न, अर्थात वृषभ (2), सिंह (5), वृश्चिक (8) तथा कुम्भ (11) भूमि उपवेशन के लिये शुभ माने जाते हैं।
कुण्डली: भूमि उपवेशन के समय मंगल पीड़ित नहीं होना चाहिये, अपितु बलवान होना चाहिये।
कटि सूत्र धारण, अर्थात कमर के चारों ओर सूती धागा पहनना। यह अनुष्ठान माता पृथ्वी एवं भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा करने के पश्चात् किया जाता है। तत्पश्चात् शिशु को भूमि पर बैठाया जाता है।
आजीविका परीक्षा नामक अनुष्ठान भी भूमि उपवेशन के समय किया जाता है। आजीविका परीक्षा के लिये, शिशु के समक्ष स्वर्ण, रजत, वस्त्र, छुरिका, पुस्तकें, उपकरण, कलम, खिलौने आदि अनेक वस्तुयें रखी जाती हैं। तत्पश्चात् शिशु जो भी वस्तु उठाता है, उसी के आधार पर भविष्य में उसकी आजीविका कमाने का साधन निर्धारित किया जाता है। कुछ लोग अन्नप्राशन संस्कार के साथ ही यह संस्कार भी करते हैं।