दोला आरोहण, शिशु को प्रथम बार पालने में झुलाने की प्रथा है। यह जन्म से 10वें, 12वें, 16वें, 18वें अथवा 32वें दिन किया जाता है। यदि जन्म से लेकर उपरोक्त निर्धारित दिनों में दोला आरोहण नहीं किया जाता है, तो निम्नलिखित वर्णन के अनुसार किसी शुभ मुहूर्त का चयन किया जा सकता है। दोला आरोहण को झूला आरोहण के नाम से भी जाना जाता है। उचित समय पर यह अनुष्ठान करने से शिशु स्वस्थ एवं रोग मुक्त रहता है।
टिप्पणी: सभी समय १२-घण्टा प्रारूप में Bregenz, Austria के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
सभी समय अन्तरालों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है -
नक्षत्र: सभी स्थिर नक्षत्र, अर्थात रोहिणी (4), उत्तराफाल्गुनी (12), उत्तराषाढा (21), उत्तर भाद्रपद (26), सभी सौम्य एवं मित्र नक्षत्र अर्थात मृगशिरा (5), रेवती (27), चित्रा (14), अनुराधा (17) तथा सभी लघु नक्षत्र अर्थात हस्त (13), अश्विनी (1), पुष्य (8), दोला आरोहण के लिये शुभ माने जाते हैं।
तिथि: द्वितीया (2), तृतीया (3), पञ्चमी (5), सप्तमी (7), दशमी (10), शुक्ल एवं कृष्ण दोनों पक्षों की एकादशियाँ (11) दोला आरोहण के लिये शुभ मानी जाती हैं। इन तिथियों के अतिरिक्त, शुक्ल त्रयोदशी, पूर्णिमा तथा कृष्ण प्रतिपदा को भी दोला आरोहण संस्कार के लिये शुभ माना जाता है।
दिन: रविवार, मंगलवार तथा शनिवार के अतिरिक्त, सप्ताह के अन्य सभी दिन दोला आरोहण के लिये उत्तम माने जाते हैं।
लग्न: सभी राशियाँ जो स्वभाव से स्थिर हैं, उन्हें लग्न के रूप में चुना जा सकता है, अर्थात वृषभ (2), सिंह (5), वृश्चिक (8) तथा कुम्भ(11) को दोला आरोहण के लिये उत्तम माना जाता है।
दोला चक्र: दोला आरोहण हेतु शुभ मुहूर्त ज्ञात करते समय दोला चक्र का अवलोकन भी करना चाहिये। सूर्य के नक्षत्र से पाँच नक्षत्र आगे तथा सात नक्षत्र पीछे शुभ माने जाते हैं। चन्द्र का नक्षत्र सूर्य के नक्षत्र से 1 से 27वें स्थान पर हो सकता है। इस दूरी के कारण प्राप्त परिणाम इस प्रकार हैं -