कुआँ पूजा को मुहूर्त सम्बन्धित ग्रन्थों एवं साहित्यों में जल पूजा के रूप में वर्णित किया गया है। जल पृथ्वी पर जीवन प्रदान करता है। जल सृष्टि के आरम्भ में ही अस्तित्व में आया तथा सृष्टि की दिव्य शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
टिप्पणी: सभी समय २४:००+ प्रारूप में Al Qadarif, Sudan के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय २४:०० से अधिक हैं और आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
सभी समय अन्तरालों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है -
जल पूजा, नवजात शिशु तथा माँ दोनों के स्वास्थ्य के लिये एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। परम्परागत रूप से कुआँ नगरों के साथ ही ग्रामों में भी पेयजल का प्राथमिक स्रोत था। इसीलिये, जल पूजा को लोकप्रिय रूप से कुआँ पूजा के रूप में जाना जाता है। वास्तविकता में, कुआँ पूजा में किये जाने वाले अनुष्ठान सम्पन्न करने के लिये नदी, पानी की टन्कियों, नल तथा एक विशाल घड़े का प्रयोग भी किया जा सकता है।
निम्नलिखित मुहूर्त एवं स्थितियाँ उपलब्ध होने पर कुआँ पूजन करना चाहिये -
चन्द्र मास: चैत्र तथा पौष चन्द्र माह के अतिरिक्त सभी चन्द्र माह, कुआँ पूजा अनुष्ठानों के लिये उत्तम माने जाते हैं।
नक्षत्र: कुआँ पूजा संस्कार के लिये मृगशिरा (5), पुनर्वसु (7), पुष्य (8), हस्त (13), अनुराधा (17), मूल (19) तथा श्रवण (22) नक्षत्र उत्तम माने जाते हैं।
तिथि: रिक्ता तिथि, अर्थात शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (4), नवमी (9) तथा चतुर्दशी (14) के अतिरिक्त सभी तिथियाँ, कुआँ पूजा के लिये उत्तम मानी जाती हैं।
दिन: सोमवार, बुधवार तथा गुरुवार का दिन कुआँ पूजा के लिये उत्तम माना जाता है।
निषिद्ध: बृहस्पति तथा शुक्र के अस्त काल की समयावधि में कुआँ पूजा नहीं करनी चाहिये। कुआँ पूजा अथवा जल पूजा के लिये अधिक चन्द्र माह और क्षय चन्द्र माह को भी वर्जित माना जाता है।