चूड़ाकरण एक महत्वपूर्ण हिन्दु संस्कार है, जिसके अन्तर्गत शिशु के जन्म के बाद पहली बार उसके सिर के केश कटवाये जाते हैं। यह हिन्दु धर्म शास्त्रों में वर्णित 16 महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक हैं। चूड़ाकरण को मुण्डन और चौलकर्म के नाम से भी जाना जाता हैं। अंग्रेजी में इसे टोंशर कहते हैं। शुभ मुहूर्त में मुण्डन संस्कार करने से शिशु को दीर्घायु, चेहरे पर चमक, बल, यश-कीर्ति एवं साहस की प्राप्ति होती है।
टिप्पणी: सभी समय २४-घण्टा प्रारूप में Tiebo, Senegal के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
सभी समय अन्तरालों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है -
बालकों के लिये मुण्डन संस्कार जन्म तिथि या गर्भधारण के दिन से तीसरे, पाँचवें अथवा सातवें वर्ष में किये जाने की मान्यता है। कन्या का मुण्डन सम वर्षों में किया जाना चाहिये। सामान्यतः मुण्डन किस वर्ष में करना है इसमें पारिवारिक रीति-रिवाजों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। कुछ परिवारों में इसे उपनयन संस्कार के साथ सम्पन्न किया जाता है। ऐसे में उपनयन संस्कार के मुहूर्त को मुण्डन के मुहूर्त से अधिक महत्त्व दिया जाता है।
मुण्डन संस्कार के लिये शुभ मुहूर्त के चयन हेतु निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार आवश्यक है।
सौर मास: मुण्डन संस्कार के लिये, सौर मास मकर (10), कुम्भ (11), मेष (1), वृषभ (2), और मिथुन (3) शुभ माने जाते हैं। अर्थात् मीन (12) के अतिरिक्त वे सौर मास जब सूर्य उत्तरायण में होते हैं, मुण्डन संस्कार के लिये शुभ होते हैं। कुछ लोग सौर मास को सम्बन्धित चन्द्र मास के साथ दर्शाते हैं, लेकिन सौर मास के अनुसार गणना अधिक सटीक होती है क्योंकि शुभ माह अयन के आधार पर निर्धारित किये जाते हैं।
नक्षत्र: सभी चल नक्षत्र अर्थात् पुनर्वसु (7), स्वाति (15), श्रवण (22), धनिष्ठा (23), शतभिषा (24), सभी सौम्य और मैत्रीपूर्ण नक्षत्र अर्थात् मृगशिरा (5), चित्रा (14), रेवती (27), और सभी लघु नक्षत्र अर्थात् अश्विनी (1), पुष्य (8), हस्त (13) तथा कटु और उग्र नक्षत्र अर्थात् ज्येष्ठा (18) को मुण्डन संस्कार के लिये शुभ माना जाता है।
तिथि: शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की द्वितीया (2), तृतीया (3), पञ्चमी (5), सप्तमी (7), दशमी (10), एकादशी (11), त्रयोदशी (13), तिथियों को चूड़ाकरण संस्कार के लिये शुभ माना जाता है।
दिन: चूड़ाकरण के लिये सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को शुभ माना जाता है।
लग्न: वे सभी लग्न जिनके स्वामी दुष्ट ग्रह हैं, अर्थात् सिंह (5), मेष (1), वृश्चिक (8), मकर (10) और कुम्भ (11) चूड़ाकरण के लिये वर्जित माने जाते हैं।
जन्म राशि से और जन्म लग्न से अष्टम राशि का लग्न भी वर्जित माना जाता है। इसकी सटीक गणना के लिये जन्म विवरण की प्रविष्टि करनी होगी और उन मुहूर्त अन्तरालों को त्यागना होगा जहाँ अष्टम लग्न प्रबल हो।
कुण्डली: चूड़ाकरण संस्कार के समय लग्न से अष्टम भाव में शुक्र के अतिरिक्त अन्य कोई ग्रह नहीं होना चाहिये। चूड़ाकरण मुहूर्त के दौरान अष्टम भाव में शुक्र ग्रह को शुभ माना जाता है।
बलहीन चन्द्र, सूर्य, मङ्गल और शनि की केन्द्र भाव में स्थिति चूड़ाकरण संस्कार के लिये वर्जित मानी गयी है। मुहूर्त चिन्तामणि के अनुसार, केन्द्र में बलहीन चन्द्र मृत्यु देता है, सूर्य जातक को ज्वर पीड़ा देता है, मङ्गल जातक को शस्त्र से कष्ट देता है तथा शनि शरीर के किसी अंग में विकृति पैदा करता है। बुध, शुक्र और गुरु ग्रह की केन्द्र भाव में स्थिति को अत्यन्त शुभ माना जाता है। आदर्श रूप से, सौम्य ग्रह को केन्द्र और त्रिकोण में तथा दुष्ट ग्रह को तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में स्थित होना चाहिये।
अन्य: चूड़ाकरण संस्कार के लिये, बृहस्पति और शुक्र के अस्त समय तथा उनकी बाल और वृद्ध अवस्था के समय को त्याग देना चाहिये। संक्रान्ति, ग्रहण, क्रान्ति साम्य दोष, अधिक चन्द्र मास, तथा सामान्य पञ्चाङ्ग दोष के समय को भी त्याग देना चाहिये। मुण्डन संस्कार के लिये रात्रि काल को अत्यन्त अशुभ माना गया है।
जब सूर्य वृषभ राशि में हो तब ज्येष्ठ पुत्र या पुत्री का चूड़ाकरण नहीं करना चाहिये। इसके अतिरिक्त, अगर माता को पाँच माह से अधिक का गर्भ है तब पाँच वर्ष से छोटे शिशु का मुण्डन संस्कार नहीं करना चाहिये।
चन्द्र और तारा शुद्धि: मुण्डन संस्कार हेतु शिशु के लिये उचित चन्द्र एवं तारा शुद्धि करना चाहिये।