नामकरण एक महत्वपूर्ण हिन्दु संस्कार है, जिसके अन्तर्गत नवजात शिशु को उसकी जन्म राशि या जन्म नक्षत्र के अनुसार एक शुभ नाम दिया जाता है। नामकरण संस्कार हिन्दु धर्म शास्त्र में वर्णित 16 महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक है। पाश्चात्य सभ्यता में नामकरण संस्कार को शिशु के बपतिस्मा के समान माना जा सकता है।
टिप्पणी: सभी समय १२-घण्टा प्रारूप में Pirae, French Polynesia के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
सभी समय अन्तरालों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है -
आमतौर पर नामकरण जन्म के 11वें या 12वें दिन किया जाना चाहिये। नामकरण संस्कार का समय भी पारिवारिक परंपराओं के अनुसार समायोजित किया जा सकता है। यदि संस्कार जन्म के 11वें या 12वें दिन किया जा रहा है तो किसी शुभ मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होगी। इसके अतिरिक्त यदि शिशु का जातकर्म भी गर्भनाल काटने के पूर्व नहीं किया गया है तो यह नामकरण संस्कार के तुरन्त पहले किया जा सकता है।
यदि नामकरण संस्कार समय पर अथवा जन्म के ११वें या १२वें दिन नहीं किया जाता है तो उचित मुहूर्त चुनने के लिये निम्नलिखित विचार आवश्यक हैं।
नक्षत्र: सभी स्थिर नक्षत्र अर्थात् रोहिणी (4), उत्तराफाल्गुनी (12), उत्तराषाढा (21), उत्तर भाद्रपद (२६), सभी चल नक्षत्र अर्थात् पुनर्वसु (7), स्वाति (15), श्रवण (22), धनिष्ठा (23), शतभिषा (24), सभी सौम्य और मैत्रीपूर्ण नक्षत्र अर्थात् मृगशिरा (5), चित्रा (14), अनुराधा (१७), रेवती (२७), और सभी लघु नक्षत्र अर्थात् अश्विनी (1), पुष्य (8), हस्त (13) नामकरण संस्कार के लिये शुभ माने जाते हैं।
तिथि: शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा (1), द्वितीया (2), तृतीया (3), पञ्चमी (5), सप्तमी (7), दशमी (10), एकादशी (11), द्वादशी (12), त्रयोदशी (13) तिथियों को नामकरण के लिये शुभ माना जाता है।
दिन: नामकरण के लिये सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को शुभ माना जाता है।
लग्न: नामकरण के लिये चल लग्न अर्थात् मेष (1), कर्क (4), तुला (7) और मकर (10) को वर्जित माना जाता है।
कुण्डली: नामकरण के समय लग्न से आठवाँ भाव रिक्त होना चाहिये। इसके अतिरिक्त यह भी देखा जाना चाहिये कि लग्न में कोई अशुभ ग्रह स्थित नहीं हो या किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि लग्न पर न पड़ रही हो।
सामान्य: नामकरण के मुहूर्त के लिये तारा अस्त का विचार नहीं किया जाता है। इसी तरह महालय, चतुर्मास, होलाष्टक तथा सृजन के दिन अर्थात युगादि और मन्वादि तिथियों को भी इसमें वर्जित नहीं माना जाता है।
चन्द्र और तारा शुद्धि: नामकरण के समय, शिशु के लिये उचित चन्द्र और तारा शुद्धि होनी चाहिये।
वर्जित: नामकरण के लिये संक्रान्ति, ग्रहण और सामान्य पञ्चाङ्ग दोष वर्जित माने जाते हैं। साथ ही नामकरण संस्कार को उत्तरायण काल में, मध्याह्न के पूर्व करना उचित माना गया है। नामकरण संस्कार विशेषतः अपराह्न के पूर्व अर्थात् दिन के पहले भाग में करना सबसे शुभ माना गया है।