पुंसवन संस्कार एक हिन्दु धार्मिक संस्कार है जिसे पुत्र की प्राप्ति एवं गर्भपात से सुरक्षा के उद्देश्य से सम्पन्न किया जाता है। सामान्यतः यह गर्भावस्था के तृतीय माह में किया जाता है, लेकिन इसे द्वितीय माह में करने का प्रचलन भी है। पुंसवन का शाब्दिक अर्थ लिंग परिवर्तन है।
टिप्पणी: सभी समय २४:००+ प्रारूप में Jalarpet, भारत के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय २४:०० से अधिक हैं और आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
सभी समय अन्तरालों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है -
पुंसवन संस्कार के श्रेष्ठ मुहूर्त की गणना के लिये निम्न बिन्दुओं पर विचार आवश्यक है।
गर्भावस्था के माह का स्वामी ग्रह: गर्भावस्था के माह के स्वामी ग्रह की गोचर में स्थिति प्रबल होना चाहिये। इसके अतिरिक्त, गर्भावस्था के माह का स्वामी उच्च राशि का हो, स्वराशि में हो, मित्र राशि में स्थित हो, या प्रबल नवांश में हो, यह ध्यान रखना चाहिये। श्रेष्ठ मुहूर्त के लिये बृहस्पति का बल भी देखा जाता है, क्योंकि पुंसवन संस्कार को सामान्यतः गर्भावस्था के तृतीय माह में सम्पन्न किया जाता है।
प्रथम माह में गर्भावस्था का स्वामी ग्रह शुक्र है, द्वितीय माह में गर्भावस्था का स्वामी ग्रह मङ्गल है, तृतीय माह में गर्भावस्था का स्वामी ग्रह बृहस्पति है, चतुर्थ माह में गर्भावस्था का स्वामी ग्रह सूर्य, पञ्चम माह में गर्भावस्था का स्वामी ग्रह चन्द्र, षष्ठम माह में गर्भावस्था का स्वामी ग्रह शनि, सप्तम माह में गर्भावस्था का स्वामी ग्रह बुध, अष्टम माह में गर्भावस्था का स्वामी ग्रह गर्भधारण का स्वामी लग्न ही होगा, नवम माह में गर्भावस्था का स्वामी ग्रह चन्द्र तथा दशम माह में गर्भावस्था का स्वामी ग्रह सूर्य है। पुंसवन संस्कार सामान्यतः द्वितीय अथवा तृतीय माह में सम्पन्न किया जाता है, अतः इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिये कि पुंसवन के समय मङ्गल और बृहस्पति की स्थिति प्रबल हो।
नक्षत्र: मृगशिरा (5), पुनर्वसु (7), पुष्य (8), हस्त (13), श्रवण (22), मूल (19), तथा सभी स्थिर नक्षत्र अर्थात् रोहिणी (4), उत्तराफाल्गुनी (12), उत्तराषाढा (21), उत्तर भाद्रपद (26) को पुंसवन संस्कार के लिये श्रेष्ठ माना जाता है।
तिथि: शुक्ल और कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा (1), द्वितीया (2), तृतीया (3), पञ्चमी (5), सप्तमी (7), दशमी (10), एकादशी (11), त्रयोदशी (13) तिथियों को पुंसवन संस्कार के लिये श्रेष्ठ माना जाता है।
दिन: पुंसवन संस्कार के लिये पुरुष सप्तवार अर्थात् रविवार, मंगलवार और गुरुवार को उत्तम माना जाता है।
लग्न: पुरुष राशि के लग्न अर्थात् मेष (1), मिथुन (3), सिंह (5), तुला (7), धनु (9) और कुम्भ (11) लग्नों को पुंसवन संस्कार के लिये उत्तम माना जाता है।
कुण्डली: केन्द्र और त्रिकोण अर्थात् 1/4/7/10/5/9 भावों में सौम्य ग्रह तथा 3/6/11 भावों में दुष्ट ग्रह की स्थिति पुंसवन संस्कार के लिये श्रेष्ठ मानी जाती है।
चन्द्र और तारा शुद्धि: पुंसवन संस्कार के समय गर्भवती महिला के लिये उचित चन्द्र और तारा शुद्धि होनी चाहिये। पुंसवन के लिये चन्द्र शुद्धि को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
यह भी ध्यान रखना चाहिये कि पुंसवन संस्कार गर्भावस्था के तृतीय माह के दौरान किया जाता है, सीमान्त संस्कार अर्थात् गोद भराई गर्भावस्था के षष्ठम अथवा अष्टम माह में, और विष्णु पूजा गर्भावस्था के अष्टम माह के दौरान किये जाते हैं।