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अप्रैल 25, 2025 उपनयन | जनेऊ संस्कार का मुहूर्त कोलंबस, Ohio, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये

DeepakDeepak
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अप्रैल 25, 2025, शुक्रवार

उपनयन मुहूर्त

Upanayana

उपनयन संस्कार, हिन्दु धर्मग्रन्थों में वर्णित 16 महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक संस्कार है। उपनयन संस्कार का मुख्य अनुष्ठान पवित्र सूत्र धारण करना है। उपनयन को यज्ञोपवीत, व्रतबन्ध, मौजुबन्धन तथा जनेऊ के नाम से भी जाना जाता है। यदि ब्राह्मण पवित्र सूत्र धारण करते हैं, तो इसे रश्ना-बन्धन, क्षत्रिय करते हैं, तो धनुर्ज्य-बन्धन तथा वैश्य द्वारा धारण करने पर मोर्वी-बन्धन कहते हैं। मुहूर्त ग्रन्थों में विवाह संस्कार के पश्चात्, उपनयन ही सर्वाधिक वर्णित संस्कार है, जो हमारे ऋषियों की दृष्टि में उपनयन के महत्व को दर्शाता है।

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वर्ण
शाखा
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उत्तरदक्षिणपूर्व
उपनयन - आज के दिन कोई मुहूर्त उपलब्ध नहीं है।

    टिप्पणी: सभी समय २४:००+ प्रारूप में कोलंबस, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
    आधी रात के बाद के समय २४:०० से अधिक हैं और आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।

    सभी समय अन्तरालों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है -

    • Auspicious Muhurat
      शुभ - कार्य करने के लिये बहुत अच्छा।
    • अशुभ - कार्य करना अच्छा नहीं।
    • Mixed Muhurat
      मिश्रित - अच्छे अन्तराल उपलब्ध लेकिन कुछ दोष होने के कारण इसे अति आवश्यक होने पर ही सावधानी के साथ उपयोग किया जाना चाहिये।

    समय: जन्म से अथवा गर्भधारण से आयु की गणना करते हुये, ब्राह्मणों के लिये 5वाँ अथवा 8वाँ वर्ष, क्षत्रियों के लिये 6वाँ अथवा 11वाँ वर्ष तथा वैश्यों के लिये 8वाँ अथवा 12वाँ वर्ष निर्धारित किया गया है। उपनयन संस्कार की अधिकतम आयु सीमा ब्राह्मणों के लिये 16 वर्ष, क्षत्रियों के लिये 22 वर्ष तथा वैश्यों के लिये 24 वर्ष है।

    सौर मास: उत्तरायण के समय सभी सौर मास, अर्थात् मकर (10), कुम्भ (11), मीन (12), चैत्र (1), वृषभ (2) तथा मिथुन (3) उत्तम माने जाते हैं, परन्तु हरिशयन, अर्थात् (आषाढ़, शुक्ल एकादशी से कार्तिक, शुक्ल एकादशी तक की अवधि) का त्याग कर देना चाहिये।

    नक्षत्र: सभी स्थिर नक्षत्र अर्थात् रोहिणी (4), उत्तराफाल्गुनी (12), उत्तराषाढा (21), उत्तर भाद्रपद (26), सभी चल नक्षत्र यानी स्वाति (15), पुनर्वसु (7), श्रवण (22), धनिष्ठा (23), शतभिषा (24), एवं सभी सौम्य व मित्र नक्षत्र अर्थात् मृगशिरा (5), रेवती (27), चित्रा (14), अनुराधा (17) तथा सभी लघु नक्षत्र अर्थात् हस्त (13), अश्विनी (1), पुष्य (8) उपनयन के लिये शुभ माने जाते हैं। मुहूर्त चिन्तामणि के अनुसार अश्लेशा (9), मूल (19), आर्द्रा (6), पूर्वाफाल्गुनी (11), पूर्वाषाढा (20) तथा पूर्वा भाद्रपद (25) भी उपनयन के लिये शुभ हैं।

    इन नक्षत्रों को ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद के अनुसार समूहीकृत किया गया है, जो चार महत्वपूर्ण शाखा हैं, अर्थात वैदिक ज्ञान के साधकों द्वारा इन वेद शाखाओं का अनुसरण किया जाता है।

    दिन: मंगलवार एवं शनिवार के अतिरिक्त सप्ताह के सभी दिन उपनयन के लिये शुभ माने जाते हैं।

    तिथि: शुक्ल पक्ष के समय द्वितीया (2), तृतीया (3), पञ्चमी (5), दशमी (10), एकादशी (11), द्वादशी (12) तिथियाँ तथा कृष्ण पक्ष के समय द्वितीया (17), तृतीया (18), पञ्चमी (20) तिथियाँ उपनयन के लिये शुभ मानी जाती हैं।

    दिनमान: यदि सूर्योदय से सूर्यास्त के मध्य के समय को तीन समान भागों में विभाजित किया जाये, तो दिन के प्रथम भाग में उपनयन को शुभ, दिन के मध्य भाग में मध्यम तथा दिन के तृतीय भाग में अशुभ माना जाता है। उपनयन के लिये मात्र दिन का समय स्वीकार किया जाता है।

    कुण्डली: लग्न शुद्धि करना एक अत्यन्त कठिन प्रक्रिया है। उपनयन के लिये शुभ समय का चयन करते समय अशुभ लग्न अवश्य ज्ञात करने चाहिये। निम्नलिखित कुण्डली संयोजनों को अशुभ माना जाता है तथा उपनयन संस्कार के समय इनका प्रभाव नहीं होना चाहिये।

    1. बृहस्पति, शुक्र एवं चन्द्र को अशुभ ग्रहों, अर्थात सूर्य, मंगल एवं शनि के साथ नहीं होना चाहिये।
    2. लग्नेश तथा बृहस्पति के 6वें एवं 8वें भाव में होने पर त्याग देना चाहिये।
    3. शुक्र एवं चन्द्र के 6वें, 8वें तथा 12वें भाव में होने पर त्याग देना चाहिये।
    4. सूर्य, कुजा एवं शनि के लग्न, 5वें एवं 8वें भाव में होने पर त्याग देना चाहिये।

    सामान्यतः केन्द्र एवं त्रिकोण में सौम्य ग्रह तथा 3, 6, 11वें भाव में अनिष्टकारी ग्रह उत्तम माने जाते हैं।

    नवमांश: उपनयन लग्न एवं चन्द्र को बुध, बृहस्पति अथवा शुक्र के नवमांश में होना चाहिये। चन्द्रमा अपने नवमांश में शुभ नहीं माना जाता है, किन्तु श्रवण अथवा पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण में होने की स्थिति में इसे शुभ माना जाता है। श्रवण एवं पुनर्वसु के चतुर्थ चरण को अधिकांश विद्वानों द्वारा मुहूर्त के लिये श्रेष्ठ एवं शुभ माना जाता है। दोनों ही स्थितियों में चन्द्रमा अपने नवमांश एवं पुनर्वसु के चतुर्थ चरण में होगा तथा वह अपनी राशि में भी अवस्थित होगा।

    त्रि-बल शुद्धि: त्रिबल शुद्धि हेतु सूर्य, चन्द्र एवं बृहस्पति की पारगमन शक्ति पर विचार किया जाना चाहिये। जन्म के चन्द्र से, सभी 3 प्रकाशमान ग्रह अर्थात् सूर्य, चन्द्र एवं बृहस्पति, जब 4, 8, 12 भावों से पारगमन करते हैं, तो उन्हें अशुभ माना जाता है।

    वर्णेश: हिन्दु धर्म में पालन किये जाने वाले विभिन्न वर्ण अर्थात् जाति हेतु, ब्राह्मणों के बृहस्पति एवं शुक्र, क्षत्रियों के मंगल एवं सूर्य, वैश्यों के चन्द्र, शूद्रों के बुध तथा चाण्डाल के लिये शनि को वर्णेश माना जाता है।

    शाखेश: ऋग्वेद के लिये बृहस्पति, यजुर्वेद के लिये शुक्र, सामवेद के लिये मंगल, अथर्ववेद के लिये बुध को वेद विद्या की विभिन्न शाखाओं के शाखेश के रूप में वर्णित किया गया है।

    वर्णेश एवं शाखेश: उपनयन के समय वर्णेश एवं शाखेश का साप्ताहिक दिन एवं लग्न शुभ माना जाता है। उपनयन के समय वर्णेश, शाखेश, बृहस्पति एवं शुक्र को बलवान स्थिति में होना चाहिये तथा पीड़ित नहीं होने चाहिये। उनमें से किसी भी ग्रह के पीड़ित होने से उपनयन का उद्देश्य पूर्णतः निष्फल हो जायेगा। जिस समय कोई ग्रह, शत्रु के घर में रहता है अथवा ग्रह युद्ध में दुर्बल, दग्ध अथवा पराजित होता है, तो उसे पीड़ित माना जाता है तथा उपनयन के समय उसका त्याग करना चाहिये।

    निषिद्ध:

    1. शुक्र एवं बृहस्पति का अस्त काल।
    2. क्रान्ति साम्य दोष।
    3. चतुर्मास, अर्थात् हरि शयन काल।
    4. गलग्रह तिथि अर्थात् (13, 14, 15, 30, 1, 4, 7, 8, 9), अनध्याय तिथि, प्रदोष तिथि, मन्वादि एवं युगादि तिथि।
    5. संक्रान्ति तथा ग्रहण के दिन।
    6. दैनिक पञ्चाङ्ग में निषिद्ध समय।

    सामान्य:

    1. वृषभ राशि में सूर्य के होने पर सबसे ज्येष्ठ पुत्र का उपनयन नहीं करना चाहिये। क्षत्रियों एवं वैश्यों के लिये ही मिथुन राशि में स्थित सूर्य उत्तम होता है। चैत्र सौर मास को उपनयन के लिये सर्वाधिक शुभ समय माना जाता है।
    2. पुनर्वसु नक्षत्र, ब्राह्मण के लिये अनुकूल नहीं माना जाता है।
    3. पूर्ण चन्द्र, उच्च अथवा अपने गृह में स्थित चन्द्र को लग्न में अत्यधिक शुभ माना जाता है।
    Kalash
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