हिन्दु कैलेण्डर एवं पञ्चाङ्गम् चन्द्र-सौर आधारित कैलेण्डर हैं। इस पञ्चाङ्ग में सूर्य तथा चन्द्रमा की स्थिति के आधार पर तिथि, नक्षत्र, योग, करण तथा सप्ताह का दिन आदि विभिन्न संयोजनों की गणना की जाती है। इन संयोजनों के आधार पर दिन अथवा उसके कुछ अंश को शुभ या अशुभ निर्धारित किया जाता है।
भारत में पञ्चाङ्ग निर्माताओं को पञ्चाङ्गम् कर्ता के रूप में भी जाना जाता है तथा वे सितारों की स्थिति ज्ञात करने के लिये दो भिन्न-भिन्न पद्धतियों का उपयोग करते हैं। वैदिक ज्योतिष में चन्द्रमा एवं सूर्य दोनों को ही सितारा माना जाता है।
पञ्चाङ्गम् निर्माताओं का एक समूह प्राचीन विधियों का उपयोग करता है जिनके द्वारा सरलता से अधिक विस्तृत गणना किये बिना ही नक्षत्रों की उपयुक्त स्थिति ज्ञात हो जाती है। प्राचीन गणनायें सरलता से स्मरण रखने एवं समझने के लिये कथनों या वाक्यों के रूप में लिखी जाती थीं। कालान्तर में ऐसी विधियों में आने वाली अशुद्धि को दूर करने के लिये समय-समय पर उन वाक्यों का नवीनीकरण किया जाता था। वाक्यम एवं सूर्य सिद्धान्त पद्धतियों द्वारा की जाने वाली सितारों की गणना से ज्ञात की गयी स्थितियाँ इतनी सटीक थीं कि उनका मिलान वेधशाला द्वारा ज्ञात स्थिति के साथ किया जा सकता था।
सदियों से इन पुरानी विधियों का नवीनीकरण नहीं किया गया है तथा इन विधियों द्वारा गणना की गयी सितारों की स्थितियाँ त्रुटिपूर्ण हैं। पुरानी विधियों द्वारा गणना की गयी सितारों की स्थिति एवं वेधशाला की स्थिति के मध्य का 12 घण्टे तक का अन्तर हो सकता है। इसीलिये वाक्य सिद्धान्त अथवा सूर्य सिद्धान्त जैसी प्राचीन कलन विधि (algorithms) द्वारा गणना की गयी सितारों की स्थिति सटीक नहीं है। यद्यपि इन प्राचीन पद्धतियों के अनुयायी भी इन विसंगतियों से भली-भाँति अवगत हैं तथापि अनुचित मार्गों का प्रयोग करते हैं। हालाँकि वे निःसङ्कोच बिना श्रेय दिये द्रिक पञ्चाङ्गम् अथवा थिरु-गणित पञ्चाङ्गम् से ग्रहण के विषय में दी गयी गणनाओं एवं सूचनाओं का प्रयोग करते हैं।
पञ्चाङ्गम् निर्माताओं का एक अन्य समूह, जैसे कि द्रिकपञ्चाङ्ग.कॉम, सितारों की स्थिति ज्ञात करने के लिये आधुनिक कलन विधि का उपयोग करता है या नासा इफेमेरिस (NASA ephemeris) का उपयोग करता है। कम्प्यूटर युग में सङ्ख्यात्मक गणना करना अत्यन्त सुलभ हो चुका है। द्रिक गणित पञ्चाङ्गम् निर्माता आधुनिक कलन विधि के द्वारा सितारों की सटीक स्थिति ज्ञात करके पञ्चाङ्गम् में उन स्थितियों का उपयोग करते हैं। भारत सरकार ने राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग के लिये आधुनिक गणनाओं पर आधारित सितारों की खगोलीय स्थितियों का भी समर्थन किया है। कलकत्ता में अवस्थित स्थितीय खगोल विज्ञान केन्द्र (पोजिशनल एस्ट्रोनॉमी सेन्टर) द्वारा 1957 से आधुनिक गणनाओं पर आधारित सितारों की स्थिति की भारतीय सूचि प्रकाशित की जाती है।
अन्य शब्दों में, द्रिक गणित एवं सूर्य सिद्धान्त के मध्य बहुत अधिक अन्तर नहीं है। दोनों ही पद्धतियों के अन्तर्गत हिन्दु तिथियों एवं त्यौहारों की गणना करने के लिये एक समान नियमों का प्रयोग किया जाता है। यह अन्तर आकाश में विभिन्न सितारों एवं ग्रहों की स्थिति के लिये अङ्कगणितीय गणना करने हेतु उपयोग की जाने वाली विधि के कारण उत्पन्न होता है।
तमिल नाडु में अनेक स्थानीय कैलेण्डर वाक्यम पञ्चाङ्गम् का पालन करते हैं। तमिल तिथियों का मिलान स्थानीय कैलेण्डर से करने के लिये हम थिरु गणित पञ्चाङ्गम् सहित वाक्य पञ्चाङ्गम् का भी समर्थन करते हैं।
मूल रूप से हमारे तमिल पञ्चाङ्गम् आधुनिक एल्गोरिदम का उपयोग करते हैं, किन्तु तमिल पञ्चाङ्गम् पृष्ठ पर वाक्यम पर जायें बटन पर क्लिक करके आप पुराने सूर्य सिद्धान्त पद्धति का चयन कर सकते हैं।
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थिरु गणित पञ्चाङ्गम् को तिरु कनिता पञ्चाङ्गम् के नाम से भी जाना जाता है।