कार्तिक शुक्ल द्वितीया को प्रातःकाल चन्द्र-दर्शन करना चाहिये। यदि सम्भव हो, तो यमुना-स्नान करना चाहिये, अन्यथा घर में ही तैल लगाकर स्नान करना चाहिये।
स्नान आदि करके मध्याह्न-काल में बहन के घर जाकर वस्त्र एवं द्रव्यादि द्वारा बहन का सम्मान करना चाहिये तथा वहीं भोजन करना चाहिये।
यदि अपनी बहन न हो, तो अपने चाचा अथवा मौसी की पुत्री या मित्र की बहन को अपनी बहन मानकर वस्त्र-दक्षिणा द्वारा सन्तुष्ट करना चाहिये।
इस सम्बन्ध में प्राचीन कथा है कि - पूर्वकाल में कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना जी ने अपने भाई यमराज को अपने घर पर सत्कार-पूर्वक भोजन कराया था। उस दिन नारकीय जीवों को यातना से मुक्ति प्राप्त हुयी तथा उन्हें तृप्त किया गया। वे पाप-मुक्त होकर समस्त बन्धनों से मुक्त हो गये। उन सभी ने मिलकर उस दिन एक महान उत्सव मनाया, जो यमलोक के राज्य को सुख पहुँचाने वाला था। इसीलिये यह तिथि तीनों लोकों में यम-द्वितीया के नाम से विख्यात हुयी।
अतः ऐसी मान्यता है कि, जो लोग इस दिन सुवासिनी बहिनों को वस्त्र-दक्षिणा आदि से सन्तुष्ट करते हैं, उन्हें वर्ष पर्यन्त कलह, अपकीर्ति, एवं शत्रु-भय आदि का सामना नहीं करना पड़ता तथा धन, यश, आयु एवं बल की वृद्धि होती है।
सायाह्नकाल के समय घर में दीपक प्रज्वलित करने अथवा बिजली चालू करने से पूर्व, घर के बाहर यमराज के निमित्त चार बत्तियों से युक्त दीपक प्रज्वलित कर दीपदान करना चाहिये।