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भीष्म पितामह की पुण्य तिथि | भीष्म पितामह का जीवन कालक्रम

DeepakDeepak

भीष्म अष्टमी का समय निर्धारण

भीष्म पितामह की पुण्यतिथि माघ शुक्ल अष्टमी के दिन मनायी जाती है। इस दिन को भीष्म अष्टमी के नाम से जाना जाता है तथा यह निर्विवाद रूप से भीष्म पितामह की पुण्यतिथि है। इस दिन से सम्बन्धित पौराणिक कथा के अनुसार, गङ्गापुत्र भीष्म ने अपनी देह त्यागने से पूर्व 58 दिनों तक प्रतीक्षा की थी। भीष्म पितामह ने उत्तरायण के शुभ अवसर पर अपनी देह का त्याग किया था। उत्तरायण वह दिन है जब भगवान सूर्य ने दक्षिणायन के छह महीने की अवधि पूर्ण करने के पश्चात् उत्तर की ओर गमन किया था।

हम सभी उत्तरायण को मकर संक्रान्ति के रूप में जानते हैं, जो लगभग 15 जनवरी को आती है जबकि भीष्म अष्टमी फरवरी के समय आती है अर्थात् भीष्म अष्टमी सदैव मकर संक्रान्ति के पश्चात् आती है। तो ऐसा कालक्रम अथवा घटनाक्रम कैसे सम्भव है? हम दिन एवं कालक्रम पर विवाद नहीं कर सकते क्योंकि हिन्दु समुदाय के लोग सदियों से भीष्म अष्टमी का दिन मनाते आ रहे हैं तथा यह विवरण पीढ़ी दर पीढ़ी बिना किसी त्रुटि की सम्भावना के आगे बढ़ता जा रहा है। हिन्दु सर्वाधिक प्राचीन सभ्यता है, जिसकी जड़ें अतीत में इतनी गहरी हैं कि आधुनिक विज्ञान भी इस पर विश्वास नहीं करता है। सम्भावना है कि हिन्दुओं को भीष्म पितामह की मृत्यु का वर्ष ज्ञात न हो, किन्तु वे उनकी मृत्यु की तिथि को नहीं भूल सकते, क्योंकि हिन्दु पीढ़ी दर पीढ़ी उनके लिये एकोदिष्ट श्राद्ध करते आ रहे हैं।

Bhishma Ashtami
भीष्म पितामह की पुण्यतिथि

उल्लेखनीय है कि माघ माह सदैव मकर संक्रान्ति के उपरान्त आरम्भ होता है तथा यह 10,000 वर्ष पूर्व भी सत्य था तथा 10,000 वर्ष पश्चात् भी सत्य ही होगा। मकर संक्रान्ति एवं माघ अष्टमी के मध्य सापेक्ष विवादित अयनांश (जिसे पूर्वगमन भी कहा जाता है) से भी प्रभावित नहीं होगा। इसीलिये एकमात्र सिद्धान्त जो उपरोक्त कालक्रम की व्याख्या करता है वह यह है कि भीष्म पितामह ने मकर संक्रान्ति के लिये नहीं अपितु शीत अयनकाल की प्रतीक्षा की थी। आज भी अनेक पञ्चाङ्ग निर्माता मकर संक्रान्ति को नहीं अपितु शीतकालीन अयनान्त को ही वैदिक उत्तरायण मानते हैं। इस लेख को लिखने के पश्चात् द्रिक पञ्चाङ्ग टीम का भी यह दृढ़ विश्वास है कि वैदिक उत्तरायण सदैव शीत अयनकाल ही था तथा महाभारत के समय भी, जो ग्रेगोरियन वर्ष 2013 के अनुसार लगभग 5114+ वर्ष पूर्व हुआ था, शीत अयनकाल की अवधारणा प्रचलित थी तथा इसे अत्यधिक शुभ दिन माना जाता था।

यह व्यापक मान्यता है कि कलियुग को आरम्भ हुये 5114 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं तथा हिन्दु पञ्चाङ्ग निर्माताओं द्वारा इस गणना को भलीभाँति बनाये रखा गया है। यह भी सर्व स्वीकार्य है कि कलियुग का आरम्भ भगवान कृष्ण के गोलोक गमन के उपरान्त हुआ था। जिस समय भगवान कृष्ण ने पृथ्वीलोक को त्यागकर वैकुण्ठ गमन किया था, उस समय उनकी आयु 126 वर्ष थी तथा मान्यताओं के अनुसार महाभारत के समय उनकी आयु 90 वर्ष की थी। इसीलिये भीष्म पितामह की मृत्यु लगभग 5151 वर्ष पूर्व हुयी थी।

महाभारत के समय ग्रेगोरियन कैलेण्डर जिसे अंग्रेजी कैलेण्डर के रूप में जाना जाता है, उपलब्ध नहीं था। किन्तु भीष्म पितामह की पुण्यतिथि के कालक्रम को समझने के लिये हम यह मान सकते हैं कि महाभारत के समय ग्रेगोरियन कैलेण्डर उपलब्ध था। ग्रेगोरियन कैलेण्डर को इस प्रकार से निर्मित किया गया है कि यह ऋतुओं के साथ संरेखित है। इसीलिये सभी ऋतु सम्बन्धित पर्व एक दिन के अन्तर के साथ समान दिन पर ही आते हैं। अन्य शब्दों में कहें तो ग्रेगोरियन कैलेण्डर पर शीत अयनकाल का दिन लगभग 21 दिसम्बर या 22 दिसम्बर निश्चित है। क्योंकि शीत अयनकाल का दिन निर्धारित है, अतः महाभारत काल में भी ऐसा ही हुआ होगा। इसीलिये हम कह सकते हैं कि 21 दिसम्बर या 22 दिसम्बर को ही भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने का निर्णय किया होगा। अब उपरोक्त चर्चा के अन्तर्गत कालक्रम को सत्यापित करने हेतु हमें लगभग 5151 वर्ष पीछे जाना होगा तथा हमें अनुमानित ग्रेगोरियन कैलेण्डर, जिसे प्रोलेप्टिक ग्रेगोरियन कैलेण्डर भी कहा जाता है, पर नवम्बर या दिसम्बर के माह के दौरान प्रचलित हिन्दु तिथि एवं माह ज्ञात करना होगा।

हमारे लेख को समझने के लिये यह समझना होगा कि हिन्दु चन्द्र माह ग्रेगोरियन कैलेण्डर पर निश्चित नहीं हैं। हिन्दु माह संक्रान्ति दिनों सहित शीत अयनकाल से प्रथक होते जा रहे हैं। वर्तमान में माघ अष्टमी फरवरी के माह में आती है, किन्तु कुछ सहस्र वर्षों पश्चात् यह मार्च में होगी, तत्पश्चात् अप्रैल तथा इसी प्रकार आगे बढ़ती जायेगी। ग्रेगोरियन कैलेण्डर पर हिन्दु तिथियों का यह परिवर्तन संक्रान्ति के दिनों के लिये भी मान्य है। यह स्पष्ट अवलोकन किया जा सकता है कि ग्रेगोरियन कैलेण्डर पर वर्ष 1600 में मकर संक्रान्ति जनवरी 9 को थी तथा वर्ष 2600 में मकर संक्रान्ति जनवरी 23 को होगी। इसीलिये माघ माह सहित संक्रान्ति शीत अयनकाल से पृथक होती जा रही है।

जब हमने द्रिक पञ्चाङ्ग सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया तथा महाभारत काल के समय के ग्रेगोरियन दिन को परिवर्तित किया तो हमने पाया कि शीत अयनकाल से पूर्व माघ माह प्रचलित था।

भगवान कृष्ण के जन्म की ग्रेगोरियन दिनाँक = जून 23, -3227 (जुलाई 18, 3228 ईसा पूर्व)
महाभारत के समय ग्रेगोरियन वर्ष = -3227 + 90 = -3137
ग्रेगोरियन वर्ष -3137 में मकर संक्रान्ति दिन = नवम्बर 2
ग्रेगोरियन वर्ष -3137 में माघ शुक्ल अष्टमी का दिन = नवम्बर 28

उपरोक्त दिनों से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि निःसन्देह शीत अयनकाल ही उत्तरायण का शुभ दिन था क्योंकि कोई अन्य सिद्धान्त भीष्म पितामह की पुण्यतिथि के कालक्रम की व्याख्या नहीं कर सकता। हालाँकि यह शोधपत्र इस तथ्य की पुष्टि करने में सक्षम नहीं है कि 5151 वर्ष पूर्व पितामह की मृत्यु हुयी थी क्योंकि हमने माघ माह एवं शीत अयनकाल के मध्य थोड़ा अधिक अन्तर पाया है। माघ शुक्ल अष्टमी भीष्म पितामह की मृत्यु के अनुमानित वर्ष में शीत अयनकाल से लगभग 20 दिन पूर्व समाप्त हो रही थी।

यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि द्रिक पञ्चाङ्ग मकर संक्रान्ति के दिन के समय पर प्रश्नचिह्न नहीं उठाता है। मकर संक्रान्ति जो कि नक्षत्र ज्योतिष के आधार पर मनायी जाती है, उचित है तथा वैदिक नियमों पर आधारित है। मकर संक्रान्ति के दिन को शीत अयनकाल के साथ भ्रमित अथवा मिश्रित नहीं किया जाना चाहिये। हम ऐसे किसी भी दृष्टिकोण का समर्थन नहीं करते हैं जो प्रस्तावित करता है कि "शीत अयनकाल को मकर संक्रान्ति के रूप में मनाया जाना चाहिये"। इस लेख में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि महाभारत के समय हिन्दु दो भिन्न-भिन्न धार्मिक उत्सव मना रहे थे जिन्हें संक्रान्ति एवं उत्तरायण के नाम से जाना जाता था। यदि ऐसा न होता तो निम्नलिखित कथन अर्थहीन हो जाता "भीष्म अष्टमी माघ शुक्ल अष्टमी को मनायी जाती है तथा यह उत्तरायण का प्रथम दिवस था जिसे भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये चयनित किया था"

Kalash
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