देवी षोडशी को त्रिपुर सुन्दरी के रूप में भी जाना जाता है। अपने नाम के अनुरूप ही, देवी षोडशी तीनों लोकों में सर्वाधिक सुन्दर हैं। महाविद्या के अन्तर्गत वह देवी पार्वती को निरूपित करती हैं तथा उन्हें तान्त्रिक पार्वती के रूप में भी जाना जाता है।
देवी षोडशी को ललिता एवं राजराजेश्वरी भी कहा जाता है, जिनका अर्थ क्रमशः "क्रीड़ा करने वाली " तथा "महारानियों की महारानी" है।
देवी त्रिपुर सुन्दरी के षोडशी स्वरूप को सोलह वर्षीय कन्या के रूप में दर्शाया जाता है। उन्हें सोलह प्रकार की इच्छाओं का प्रतीक माना जाता है। देवी षोडशी के पूजन मन्त्र में भी सोलह अक्षर ही हैं। त्रिपुर सुन्दरी महाविद्या को श्री यन्त्र के रूप में भी पूजा जाता है। हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार, षोडशी जयन्ती माघ पूर्णिमा को मनायी जाती है।
देवी त्रिपुर सुन्दरी को स्वर्ण, रक्त एवं श्याम वर्ण रूप में भगवान शिव से सम्बन्धित दर्शाया गया है। देवी एवं भगवान शिव को एक सिंहासन अथवा शैय्या पर सुशोभित दर्शाया जाता है, जिसके तल में ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, ईशान एवं सदाशिव स्तम्भ स्वरूप विराजमान रहते हैं।
देवी षोडशी के मस्तक पर एक त्रिनेत्र (तीसरा दिव्य नेत्र) विद्यमान है। वह लाल वस्त्र धारण किये हुये, विभिन्न आभूषणों से अलङ्कृत रहती हैं। देवी एक कमल पुष्प पर विराजमान रहती हैं, जो स्वर्ण सिंहासन पर स्थित है। उन्हें चतुर्भुज रूप में दर्शाया जाता है। वह अपने हाथों में पाँच पुष्पबाण, एक पाश (रस्सी का फन्दा), अङ्कुश तथा गन्ने को धनुष के रूप में धारण करती हैं। देवी के हाथ में स्थित पाश 'मोह', अङ्कुश 'प्रतिकर्षण', गन्ने का धनुष 'मस्तिष्क' तथा बाण 'पाँच ज्ञानेन्द्रियों' को प्रदर्शित करते हैं।
षोडशी साधना भोग-आनन्द के अतिरिक्त मुक्ति एवं परम तत्व का ज्ञान प्राप्त करने हेतु की जाती है। त्रिपुर सुन्दरी साधना द्वारा मन, शरीर एवं भावनाओं को नियन्त्रित करने की शक्ति प्राप्त होती है।
पारिवारिक सौहार्द, पौरुष तथा अनुकूल जीवनसाथी प्राप्त करने हेतु भी षोडशी साधना की जाती है।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥