भगवान कुबेर, 'देवताओं के कोषाध्यक्ष' एवं 'यक्षों के राजा' हैं। भगवान कुबेर सम्पत्ति, समृद्धि, तथा वैभव का वास्तविक स्वरूप हैं। भगवान कुबेर धन-सम्पदा तो प्रदान करते ही हैं, साथ ही संसार की समस्त धन-सम्पदा को नियन्त्रित एवं सुरक्षित भी करते हैं। अतः उन्हें सम्पत्ति के संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है।
कुबेर देव, भगवान ब्रह्मा की वंशावली से आते हैं। वह महर्षि विश्रवा एवं देवी इलाविडा के पुत्र हैं। महर्षि विश्रवा का एक अन्य विवाह राक्षसकुल की राजकुमारी कैकसी से हुआ था, जिनसे रावण, कुम्भकरण, विभीषण तथा शूर्पणखा, आदि चार सन्तानों का जन्म हुआ। अतः भगवान कुबेर, दैत्यराज रावण के सौतेले भ्राता हैं।
भगवन कुबेर का विवाह देवी कौबेरी से हुआ था तथा उनकी चार सन्तानें थीं। उनके तीन पुत्रों को नलकुबेर, मणिग्रीव, मयूराज एवं एक पुत्री को मीनाक्षी के नाम से जाना जाता है। देवी कौबेरी को यक्षी, भद्रा तथा चार्वी आदि नामों से भी जाना जाता है।
'कुबेर' का संस्कृत में शाब्दिक अर्थ विकृत अथवा कुरूप होता है। अतः अपने नाम के अर्थानुसार कुबेर को एक नाटे व मोटे पुरुष के रूप में चित्रित किया जाता है। उन्हें कमल दलों के समान वर्ण (रँग) का दर्शाया जाता है एवं उनकी शारीरिक संरचना में कुछ विकृतियाँ प्रदर्शित होती हैं। कुबेर जी के तीन पग हैं, मात्र आठ दाँत हैं तथा उनकी बायाँ नेत्र पीले रँग का है। धन-सम्पदा के देवता होने के कारण कुबेर जी अपने साथ सोने के सिक्कों से भरा एक कलश अथवा पोटली लिये रहते हैं तथा विभिन्न प्रकार के दिव्य एवं दुर्लभ स्वर्णाभूषणों से सुशोभित रहते हैं।
कुबेर देव पुष्पक विमान (उड़ने वाले रथ) की यात्रा का आनन्द भी लेते हैं, जो उन्हें भगवान ब्रह्मा द्वारा भेंट किया गया था। इसके अतिरिक्त, कुछ धर्मग्रन्थों में भगवान कुबेर को हाथ में गदा, अनार अथवा एक धन की पोटली लिये दर्शाया जाता है। प्रायः नेवले को उनके साथ जोड़ कर देखा जाता है परन्तु कुछ ग्रन्थों में गज (हाथी) को उनसे सम्बन्धित माना गया है।
जैसे कि, त्रयोदशी एवं पूर्णिमा तिथि पौराणिक रूप से कुबेर देव से सम्बन्धित हैं, अतः यह दोनों तिथियाँ भगवान कुबेर का आशीर्वाद एवं कृपा प्राप्त करने हेतु सर्वोत्तम मानी जाती हैं।