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-3226 भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी उपवास का दिन कोलंबस, Ohio, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए

DeepakDeepak

-3226 भालचन्द्र संकष्टी

कोलंबस, संयुक्त राज्य अमेरिका
भालचन्द्र संकष्टी
12वाँ
जनवरी -3226
Friday / शुक्रवार
भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी
Sankashti Chaturthi

भालचन्द्र संकष्टी का समय

भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी शुक्रवार, जनवरी 12, -3226 को
Krishna Dashami संकष्टी के दिन चन्द्रोदय - 21:20
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - जनवरी 12, -3226 को 04:44 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त - जनवरी 13, -3226 को 01:51 बजे

टिप्पणी: सभी समय २४:००+ प्रारूप में कोलंबस, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय २४:०० से अधिक हैं और आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।

-3226 भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी

अमान्त हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार, फाल्गुन माह (पूर्णिमान्त चैत्र माह) की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को भालचन्द्र संकष्टी के रूप में मनाया जाता है। हिन्दु धर्म ग्रन्थों के अनुसार, जीवन में आने वाले घोर संकटों के निवारण हेतु भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी का व्रत एक अमोघ उपाय है। यह व्रत 4 वर्ष अथवा 13 वर्ष के लिये किया जाता है, इस अवधि के उपरान्त व्रत का उद्यापन करना चाहिये। इस व्रत का पालन करने हेतु चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी तिथि का चयन किया जाता है। यदि दो दिन चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी हो, तो प्रथम दिवस को व्रत हेतु चुनना चाहिये।

हिन्दु कैलेण्डर में प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के उपरान्त आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं तथा अमावस्या के उपरान्त आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं।

भालचन्द्र संकष्टी व्रत विधि

सर्वप्रथम प्रातः स्नान आदि कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ हो जायें। तत्पश्चात् भगवान गणेश का ध्यान करते हुये व्रत पालन एवं मौन रहने का सङ्कल्प ग्रहण करें। सन्ध्याकाल में पुनः स्नान करके पवित्र वेदी की रचना कर स्वर्ण आदि से निर्मित गणपति जी की प्रतिमा विराजमान करें। भगवान गणेश जी का ध्यान एवं आवाहन करें। तदोपरान्त विधि-विधान से षोडशोपचार गणेश पूजन करें। संकष्टी के अवसर पर भगवान गजानन गणपति को उनकी प्रिय मोदक, सुपारी, मूँग तथा दूर्वा अवश्य अर्पित करें।

गणेश जी की पूजा सम्पन्न होने के पश्चात् चन्द्रोदय के समय, गन्ध, पुष्प आदि से चन्द्रदेव का पूजन करें तथा उन्हें अर्घ्य एवं नैवेद्य आदि अर्पित करें। पूजन सम्पन्न होने पर ब्राह्मण-भोज का आयोजन करें। अन्त में व्रत का पारण करते हुये स्वयं भोजन ग्रहण करें। इस व्रत में तैल युक्त भोजन ग्रहण करना निषेध होता है।

Kalash
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