श्राद्ध अनुष्ठान में निम्नलिखित मुख्य क्रियायें सम्मिलित हैं -
पिण्डदान में चावल, गाय का दूध, घी, चीनी तथा शहद को पिण्ड के रूप में पितरों को अर्पित किया जाता है। पिण्डदान को मृतक की आत्मा की तृप्ति के लिये पूर्ण मन, भक्ति, भावना एवं सम्मान के साथ किया जाना चाहिये।
तर्पण में काले तिल, जौ, कुशा एवं श्वेत आटे को मिलाकर जल चढ़ाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, तर्पण की प्रक्रिया से पितरों को सन्तुष्टि प्राप्त होती है।
श्राद्ध कर्म पूर्ण करने के लिये ब्राह्मण भोज कराना अनिवार्य है। ब्राह्मण को भोजन कराने से पहले कौओं को भी भोजन कराया जाता है।
पितृ पक्ष, पन्द्रह चन्द्र दिवस की वह अवधि है, जिस समय हिन्दु समाज के अनुयायी अपने पूर्वजों को विशेषतः भोजन प्रसाद के माध्यम से श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हैं। प्रत्येक चन्द्र माह को दो समान पक्षों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष के रूप में जाना जाता है। प्रत्येक पक्ष में पन्द्रह चन्द्र दिवस होते हैं।
उत्तर भारतीय पूर्णिमान्त कैलेण्डर के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष के समय पन्द्रह दिनों की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है। परन्तु दक्षिण भारतीय अमान्त कैलेण्डर के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के समय पन्द्रह दिनों की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है। यह उल्लेखनीय है कि, यह मात्र चन्द्र मासों का भिन्न-भिन्न नामकरण है तथा उत्तर भारतीय एवं दक्षिण भारतीय दोनों ही समान दिनों पर श्राद्ध अनुष्ठान करते हैं।
अनेक स्रोतों द्वारा भाद्रपद पूर्णिमा को भी पितृ पक्ष की पन्द्रह दिनों की अवधि में सम्मिलित किया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा सामान्यतः पितृ पक्ष से एक दिन पूर्व आती है। भाद्रपद पूर्णिमा को प्रोष्ठपदी पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है एवं यह श्राद्ध अनुष्ठान करने हेतु एक शुभ दिवस है, किन्तु यह पितृ पक्ष का भाग नहीं है। ध्यान रहे कि, जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि पर हुयी है, उनके लिये महालय श्राद्ध भाद्रपद पूर्णिमा पर नहीं, अपितु पितृ पक्ष के समय अमावस्या श्राद्ध तिथि पर किया जाता है।
गणेश विसर्जन के एक या दो दिन पश्चात् पितृ पक्ष आरम्भ होता है। पितृ पक्ष को महालय पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। पितृ पक्ष के अन्तिम दिन को सर्वपितृ अमावस्या अथवा महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है। यह पितृ पक्ष का सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिन है। यदि परिवार में मृतक व्यक्ति की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है तो उसका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या को किया जा सकता है।
पश्चिम बंगाल में महालय अमावस्या से दुर्गा पूजा उत्सव का आरम्भ होता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन देवी दुर्गा भूलोक पर अवतरित हुयीं थीं।
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के तेरह दिन पश्चात्, आत्मा यमपुरी के लिये अपनी यात्रा आरम्भ करती है तथा वहाँ पहुँचने में उसे सत्रह दिवस का समय लगता है।
आत्मा यमपुरी में ग्यारह माह तक यात्रा करती है तथा बारहवें माह में ही यमराज के दरबार में पहुँचती है। ग्यारह महीने की अवधि के समय उसे भोजन एवं जल नहीं मिलता है। मान्यताओं के अनुसार, पुत्र एवं परिवार के सदस्यों द्वारा किया गया पिण्डदान एवं तर्पण, यमराज के दरबार तक पहुँचने तक की यात्रा में आत्मा की क्षुधा एवं प्यास को शान्त करता है।
इसीलिये, मृत्यु के उपरान्त प्रथम वर्ष के श्राद्ध कर्म को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है।