अधिकांश हिन्दु परिवारों में, युवक एवं युवती के मध्य वैवाहिक सम्बन्ध को निर्धारित करने से पूर्व कुण्डली मिलान पर विचार अवश्य किया जाता है। कुण्डली मिलान एक प्राचीन परम्परा है, जो वर्तमान के आधुनिक भारत में भी जीवन्त है। ऐसे अनेक परिवार हैं, जो कुण्डली मिलान को अत्यधिक महत्व देते हैं। कुण्डली मिलान को राशि मिलान, पत्री मिलान तथा गुण मिलान के रूप में भी जाना जाता है।
अष्ट-कूट विधि, कुण्डली मिलान के समय उपयोग की जाने वाली व्यापक रूप से सर्वाधिक स्वीकृत विधि है। मिलान की अष्ट-कूट प्रणाली में, आठ भिन्न-भिन्न विशेषताओं को एक से आठ के क्रम में भिन्न-भिन्न अङ्क प्रदान किये जाते हैं। इन विशेषताओं को कूट के रूप में जाना जाता है। अष्टकूट एवं उनके मान निम्नलिखित हैं।
अष्ट-कूट विवाह प्रणाली में अधिकतम 36 गुण होते हैं। यदि दम्पति के मध्य दोनों के जोड़कर, कुल योग 31 गुण से 36 गुणों के मध्य हैं, तो मिलन उत्कृष्ट होता है, 21 से 30 गुणों के मध्य अति उत्तम होता है, 17 से 20 गुणों का योग मध्यम तथा 0 से 16 गुणों के मध्य का योग अशुभ होता है।
विद्वानों का यह भी मत है कि, उपरोक्त समूहीकरण तब लागू होता है, जब भकूट कूट अनुकूल होता है। यदि भकूट कूट प्रतिकूल है, तो मिलन किस भी परिस्थिति में उत्तम नहीं होता है। इस स्थिति में 26 से 29 (दोनों अंकों को मिलाकर) गुणों का योग अति उत्तम, 21 से 25 (दोनों अंकों को मिलाकर) गुणों का योग मध्यम तथा 0 से 20 (दोनों अंकों को मिलाकर) गुणों का योग अशुभ माना जाता है।
यह उल्लेखनीय है कि, कुण्डली मिलान के समय नाड़ी कूट को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। यदि नाड़ी कूट प्रतिकूल है, तो 28 गुणों वाला मिलान भी अशुभ माना जाता है।