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-0516 वराह जयन्ती का दिन Fairfield, Connecticut, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये

DeepakDeepak

-0516 वराह जयन्ती

Fairfield, संयुक्त राज्य अमेरिका
वराह जयन्ती
20वाँ
जुलाई -0516
Friday / शुक्रवार
भगवान वराह
Varaha Jayanti

वराह जयन्ती मुहूर्त

वराह जयन्ती शुक्रवार, जुलाई 20, -0516 को
वराह जयन्ती मुहूर्त - 13:27 से 16:25
अवधि - 02 घण्टे 58 मिनट्स
तृतीया तिथि प्रारम्भ - जुलाई 20, -0516 को 10:08 बजे
तृतीया तिथि समाप्त - जुलाई 21, -0516 को 12:44 बजे

टिप्पणी: सभी समय २४:००+ प्रारूप में Fairfield, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय २४:०० से अधिक हैं और आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।

-0516 वराह जयन्ती

भगवान विष्णु के वराह अवतार के जन्म की वर्षगाँठ को वराह जयन्ती के रूप में मनाया जाता है। सत्य युग के समय भगवान विष्णु अपने तीसरे अवतार वराह रूप में प्रकट हुये थे। हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार भाद्रपद शुक्ल तृतीया को वराह जयन्ती मनायी जाती है।

वराह अवतार के अन्तर्गत भगवान विष्णु एक सूकर के रूप में प्रकट हुये थे। कालान्तर में हिरण्याक्ष नामक राक्षस ने पृथ्वी को ले जाकर रसातललोक में छुपा दिया था। उस समय भगवान विष्णु ने वराह रूप में अवतरित होकर हिरण्याक्ष का वध किया था। वराह अवतार को वराहावतार भी कहा जाता है।

वराह जयन्ती के अवसर पर भगवान विष्णु के मन्दिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त एक दिवसीय व्रत का पालन किया जाता है तथा वराहपुराण एवं श्रीविष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ किया जाता है। वराह जयन्ती के दिन तीर्थ स्नान एवं दान आदि गतिविधियों का भी विशेष महत्व होता है।

दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में वराह जयन्ती के अवसर पर वराह कलश की पूजा की जाती है, जिसके अन्तर्गत भगवान वराह की एक मूर्ति को जल से भरे हुये कलश के अन्दर स्थापित किया जाता है, तत्पश्चात् आम के पत्तों से उस कलश को ढककर तथा उसपर एक नारियल रखकर, उस कलश का पूजन किया जाता है। पूजनोपरान्त उस कलश को किसी ब्राह्मण को दान कर दिया जाता है।

आन्ध्र प्रदेश के तिरुमला में स्थित श्री वराहस्वामी मन्दिर में वराह जयन्ती के अवसर पर भगवान वराह का नारियल के पानी से अभिषेक किया जाता है। तदुपरान्त वैदिक मन्त्रों के उच्चारण के साथ वराह भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है।

श्री वराहस्वामी मन्दिर को भू-वराहस्वामी मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मन्दिर में भगवान वराह एवं भूदेवी के सुन्दर विग्रह विराजमान हैं।

तिरुमला तीर्थ क्षेत्र की प्रथानुसार वराहस्वामी वहाँ के प्रथम पूज्य देवता हैं। तिरुमला यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं द्वारा इस तीर्थ क्षेत्र में सर्वप्रथम भगवान वराहस्वामी का ही दर्शन एवं पूजन किया जाता है। तिरुमला तीर्थ परम्परा के अनुसार प्रथम घण्टी, प्रथम प्रसाद एवं प्रथम पूजन श्री वराहस्वामी को ही अर्पित करना चाहिये।

श्री वराहस्वामी के पूजन के उपरान्त ही भगवान वेंकटेश्वर का दर्शन किया जाता है। इस स्थान को वराहक्षेत्र अथवा आदिवराहक्षेत्र के नाम से जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी को रसातल से सुरक्षित लाने के उपरान्त भगवान वराह सर्वप्रथम इसी स्थान पर आये थे। भगवान वराह ने ही भगवान वेंकटेश्वर स्वामी को तिरुमला स्थित सप्त पर्वत प्रदान किये थे।

भगवान विष्णु के वराह अवतार के विषय में विस्तृत वर्णन पढ़ने हेतु उक्त लेख का अवलोकन करें - वराह अवतार

Kalash
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