होली के दिन राक्षसी होलिका की पूजा क्यों की जाती है? होली के दौरान होलिका की पूजा करना अत्यन्त रहस्यमयी है। यहाँ तक कि किसी भी धर्मग्रन्थ में होलिका की पूजा करने के विषय में विस्तृत विवरण प्राप्त नहीं होता है।
हालाँकि नारद पुराण में होलिका दहन का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसमें होलिका की पूजा करने तथा गीत गायन आदि करते हुये लकड़ियों द्वारा होलिका दहन के विषय में वर्णित किया गया है।
नारद पुराण में लिखा है "कुछ मूर्ख एवं बचकाने लोगों ने रक्तपान करने वाले राक्षसों के निरन्तर भय के कारण होलिका का निर्माण किया। इसीलिये, मैं आपकी पूजा करता हूँ तथा शक्ति, धन एवं समृद्धि की कामना करता हूँ। होलिका एक राक्षसी है तथा वह प्रहलाद को भयभीत करती है। इसीलिये हम लकड़ी द्वारा संगीत आदि सहित उसका दहन करते हैं। होलिका का दहन वर्ष तथा यौन इच्छाओं के दहन का भी प्रतीक है।"
आरम्भकाल में होलिका सुरक्षात्मक थी क्योंकि उसे सभी प्रकार के भय से मुक्ति के लिये बनाया गया था। वह शक्ति, धन एवं समृद्धि का प्रतीक थी तथा अपने उपासकों को यह सब कुछ प्रदान करने में समर्थ थी। हालाँकि जब उसने भक्त प्रहलाद का दहन कर उसकी हत्या का प्रयास किया तो वह हानिकारक एवं भयावह हो गयी। अतः भविष्य में होलिका के कारण होने वाली किसी भी प्रकार की सम्भावित हानि से सुरक्षा हेतु होलिका का दहन किया गया।
अनेक विद्वान होलिका शब्द की अपने-अपने मतानुसार व्याख्या करते हैं तथा उसकी पूजा करने का भिन्न-भिन्न कारण बताते हैं। यद्यपि होलिका में शुभ करने की भी शक्ति है, तथापि विद्वानों द्वारा की गयी अधिकांश व्याख्याओं में उसके दहन एवं पूजन को अधर्म एवं पाप के दहन से सम्बन्धित माना गया है।