*द्रिकपञ्चाङ्ग अपने उपयोगकर्ताओं के लिए निःशुल्क ई-ग्रीटिंग प्रदान करता है। उपयोगकर्ता इन्हें सहेज सकते हैं और अपने प्रियजनों को भेज सकते हैं। ये ई-ग्रीटिंग्स कॉपीराइट के तहत संरक्षित हैं। इनका उपयोग व्यावसायिक उद्देश्य के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
रक्षा बन्धन का त्यौहार भाई-बहन के पवित्र सम्बन्ध को समर्पित है। इस त्यौहार में बहनें अपने भाइयों की कलाई पर उनकी रक्षा हेतु पवित्र सूत्र बाँधती हैं। भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधने के लिये रक्षा बन्धन अनुष्ठान का शुभ समय यहाँ प्रदान किया गया है।
रक्षा बन्धन पर्व की उत्पत्ति एवं महत्व, अनुष्ठान, क्षेत्रीय विविधतायें तथा रक्षा बन्धन की पौराणिक कथाओं सहित विभिन्न आवश्यक एवं रोचक विवरण प्रदान किया गया है। रक्षा बन्धन की परम्परा का उद्भव देवी इन्द्राणी द्वारा किया गया था।
धर्मग्रन्थों के अनुसार सरल रक्षा बन्धन पूजा विधि प्रदान की गयी है। पाठकों की सुविधा हेतु रक्षा बन्धन मन्त्र के संस्कृत बोल, ऑडियो तथा अर्थ भी प्रदान किये गये हैं, जिसकी सहायता से सरलतापूर्वक मन्त्रोच्चारण द्वारा रक्षा बन्धन पूजा की जा सकती है।
रक्षा बन्धन के लिये पूजा की थाली से सम्बन्धित समस्त सामग्रियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। किसी भी प्रकार की असुविधा से बचने हेतु उक्त सामग्रियों की व्यवस्था रक्षा बन्धन पूजा से पूर्व ही कर लेनी चाहिये। रक्षा बन्धन भाई-बहन के पावन सम्बन्ध को समर्पित एक अत्यन्त लोकप्रिय त्यौहार है।
भविष्यपुराण के अनुसार रक्षा बन्धन की पौराणिक कथा का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत कथा में दैत्यों द्वारा इन्द्र एवं अन्य देवताओं के परास्त हो जाने पर इन्द्र की पत्नी देवी शची द्वारा इन्द्र को रक्षा पोटली बाँधने तथा उसके प्रभाव से इन्द्र की विजय एवं राज सिंहासन की पुनः प्राप्ति का सम्पूर्ण वृतान्त दिया गया है।
साथ पले और साथ बड़े हुये, खूब मिला बचपन में प्यार, भाई-बहन का प्यार बढ़ाने, आया राखी का त्यौहार। भाई-बहन के प्यारे सम्बन्ध को समर्पित रक्षा बन्धन से सम्बन्धित ऐसे अनेक राखी सन्देश प्रदान किये गये हैं। इन सन्देशों को आप अपने भाई-बहनों से साझा कर सकते हैं।
भाई-बहन की मेहन्दी कलाकृति सहित रक्षा बन्धन के अवसर पर लगायी जाने वाली विभिन्न राखी मेहन्दी डिज़ाइन एवं रचनायें चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत की गयी हैं। चरणबद्ध रूप से दी गयीं इन रक्षा बन्धन मेहन्दी रचनाओं की सहायता से सुन्दर एवं आकर्षक मेहन्दी लगायी जा सकती है।
ऋगवेद उपाकर्म के दिन को जनेऊ परिवर्तित करने का उत्तम समय माना जाता है। ऋगवेद उपाकर्म के दिन, श्रौत अनुष्ठान के अन्तर्गत यज्ञोपवीत परिवर्तित किया जाता है। यह एक वैदिक अनुष्ठान है, जिसका पालन ब्राह्मणों द्वारा वर्तमान समय में भी किया जाता है।
वर्ष के प्रत्येक माह के लिये भद्रा आरम्भ एवं अन्त के दिन एवं समय प्रदान किये गये हैं। भद्रा को विष्टि करण के नाम से भी जाना जाता है। भद्राकाल के समय मुण्डन, विवाह, गृह प्रवेश, तीर्थाटन तथा नवीन व्यापार आरम्भ करना आदि माङ्गलिक कार्यों को निषिद्ध माना जाता है।