धान्य लक्ष्मी, देवी लक्ष्मी का तीसरा स्वरूप है, जिसे अष्टलक्ष्मी में सूचीबद्ध किया जाता है। धान्य का तात्पर्य अन्न से है। अतः देवी धान्य लक्ष्मी की उपासना करने से व्यक्ति के जीवन में अन्न आदि का अभाव नहीं होता है तथा उसके भण्डार सदैव धन-धान्य से परिपूर्ण रहते हैं। देवी माँ की पूजा-अर्चना से उत्तम प्रकार के अन्न की प्राप्ति होती है। धान्य लक्ष्मी कृषि से प्राप्त अन्न रूपी धन की प्रतिमूर्ति हैं। धान्य लक्ष्मी अपने भक्तों के भरण-पोषण हेतु विभिन्न प्रकार के अन्न प्रदान करती हैं।
धान्य लक्ष्मी की उत्पत्ति को महाभारत काल से सम्बन्धित माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल में पाण्डवों को वनवास के दौरान भोजन खोजने में अत्यन्त कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था। धान्य लक्ष्मी के आशीर्वाद के कारण ही पाण्डव इस कठिन परीक्षा से बच पाये तथा अपनी भूख मिटा सके। मान्यताओं के अनुसार, देवी माँ उनकी सहायता हेतु आयीं तथा उन्हें एक लकड़ी का कटोरा दिया, जिसमें निरन्तर अन्न-भोजन आदि उत्पन्न होता रहता था।
देवी धान्य लक्ष्मी को अष्टभुज रूप में दर्शाया जाता है। वे हरे रँग के वस्त्र एवं स्वर्णाभूषण धारण किये हुये कमल पुष्प के आसन पर विराजमान रहती हैं। देवी को दो हाथों में कमल, एक गदा, धान की फसल, गन्ना तथा केले लिये हुये चित्रित किया जाता है। उनके दो हाथ अभय मुद्रा और वरद मुद्रा में स्थित रहते हैं।
ॐ धान्यलक्ष्म्यै नमः।
अहिकलि कल्मषनाशिनि कामिनि,वैदिकरूपिणि वेदमये
क्षीरसमुद्भव मङ्गलरूपिणि,मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि,देवगणाश्रित पादयुते
जय जय हे मधुसूदन कामिनि,धान्यलक्ष्मी परिपालय माम्॥
देवी लक्ष्मी के धान्यलक्ष्मी रूप के 108 नामों को देवी धान्य लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनामावली के रूप में जाना जाता है - देवी धान्य लक्ष्मी के 108 नाम।