देवी लक्ष्मी के सातवें रूप को विजय लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। विजय लक्ष्मी को जय लक्ष्मी भी कहा जाता है। देवी विजय लक्ष्मी की पूजा करने से साधक को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजय की प्राप्ति होती है। देवी विजय लक्ष्मी युद्धभूमि में विजय और सफलता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को भी नष्ट करती हैं।
प्राचीनकाल से ही राजा-महाराजा युद्धभूमि हेतु प्रस्थान करने से पूर्व देवी विजय लक्ष्मी का आशीर्वाद ग्रहण करते थे। न्यायालय सम्बन्धित विवादों में विजय प्राप्ति हेतु देवी विजय लक्ष्मी की पूजा करने का सुझाव दिया जाता है। देवी विजय लक्ष्मी की कृपा से भीषण शत्रु भी भक्तों का अहित करने में सफल नहीं हो पाते हैं।
देवी लक्ष्मी ने अपने भक्तों को सफलता एवं विजय प्रदान करने हेतु यह रूप धारण किया है।
देवी विजय लक्ष्मी को अष्टभुज रूप में लाल रँग के वस्त्र धारण किये हुये कमल पुष्प पर विराजमान दर्शाया जाता है। देवी अपनी छः भुजाओं में क्रमशः शंख, चक्र, तलवार, ढाल, कमल और पाश धारण करती हैं तथा उनके अन्य दो हाथों अभय मुद्रा और वरद मुद्रा में स्थित रहते हैं।
ॐ विजयलक्ष्म्यै नमः।
जय कमलासनि सद्गतिदायिनि, ज्ञानविकासिनि गानमये
अनुदिनमर्चित कुङ्कुमधूसर, भूषित वासित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित, शङ्कर देशिक मान्य पदे
जय जय हे मधुसूदन कामिनि, विजयलक्ष्मी सदा पालय माम्॥
देवी लक्ष्मी के विजय लक्ष्मी रूप के 108 नामों को विजय लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनामावली के रूप में जाना जाता है - विजय लक्ष्मी के 108 नाम।