देवी भुवनेश्वरी दस महाविद्याओं में से चतुर्थ महाविद्या हैं। उन्हें सृष्टि देवी अर्थात सम्पूर्ण सृष्टि की अधिष्ठात्री के रूप में भी जाना जाता है, जो स्वयं सपूर्ण सृष्टि के रूप में विद्यमान हैं। अपने नाम के अनुरूप ही देवी भुवनेश्वरी समस्त लोकों की महारानी हैं तथा सम्पूर्ण सृष्टि पर शासन करने वाली हैं। वह विभिन्न लक्षणों में देवी त्रिपुर सुन्दरी के समान हैं।
देवी भुवनेश्वरी को आदि शक्ति के रूप में जाना जाता है, जो शक्ति के अति प्राचीन रूपों में से एक हैं। देवी भुवनेश्वरी के सगुण स्वरूप को देवी पार्वती के रूप में जाना जाता है। हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार, भुवनेश्वरी जयन्ती भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को मनायी जाती है।
देवी भुवनेश्वरी का स्वरूप देवी त्रिपुर सुन्दरी के समान है। देवी का वर्ण उगते सूर्य के समान है एवं वह अपने केशों में अर्धचन्द्र धारण करती हैं। देवी भुवनेश्वरी को चतुर्भुजधारी रूप में त्रिनेत्र धारण किये हुये दर्शाया जाता है। उनके दो हाथ अभय मुद्रा एवं वरद मुद्रा में हैं तथा शेष दो हाथों में देवी अंकुश एवं पाश (रस्सी का फन्दा) लिये रहती हैं।
भुवनेश्वरी साधना समस्त प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु की जाती है। सन्तान, धन, ज्ञान तथा सौभाग्य प्राप्ति हेतु देवी की आराधना की जाती है।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमः॥