'रत्नों' का वर्णन वेदों, पुराणों, आयुर्वेद ग्रन्थों और अन्य धर्मशास्त्रों में विस्तार पूर्वक किया गया है। ज्योतिष के ग्रन्थों यथा 'बृहत्संहिता' आदि ग्रन्थों में रत्नों की ग्रह बाधा निवारक वाली भूमिका पर विस्तार से चर्चा की गयी है। रत्न किसी भी ग्रह के प्रभाव में वृद्धि कर देते हैं। सभी नौ ग्रह भिन्न-भिन्न रत्नों के कारक होते हैं। अतः ज्योतिष नियमों के आधार पर यदि रत्न धारण किया जाये तो यह जातक के लिये अत्यन्त उन्नतिकारक भी होता है। यहाँ आप अपना जन्मविवरण अङ्कित करके अपने लिये अनुकूल रत्नों की सूचि देख सकते हैं।
प्राचीन हिन्दु शास्त्रों में रत्नों पर अलग से सैकड़ों ग्रन्थ लिखे गये हैं। 'रत्न समुच्चय', 'भाव प्रकाश' आदि ग्रन्थों में रत्नों का विस्तार से वर्णन मिलता है। ज्योतिष एवं आयुर्वेद में रत्नों के प्रभाव का अत्यन्त गहनता से अध्ययन किया गया है। विभिन्न रोगों के उपचार में रत्नों के प्रयोग की प्राचीन परम्परा रही है। रत्न ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के उत्तम प्रवाहक होते हैं। ज्योतिष शास्त्र के ग्रन्थों के अनुसार, सूर्य का सम्बन्ध माणिक्य, चन्द्रमा का सम्बन्ध मोती, मङ्गल का सम्बन्ध मूँगा, बुध का सम्बन्ध पन्ना, बृहस्पति का सम्बन्ध पुखराज, शुक्र का सम्बन्ध हीरे, शनि का सम्बन्ध नीलम, राहु का सम्बन्ध गोमेद तथा केतु का सम्बन्ध विडालाक्ष (लहसुनिया) से माना गया है। इन रत्नों के उपरत्न भी अत्यधिक प्रचलित हैं, जिनकी सङ्ख्या 84 बतायी गयी है। किन्तु मूल रूप से उपरोक्त 9 प्रमुख रत्न यही हैं, जिनका प्रयोग ग्रह बाधा के निवारण हेतु किया जाता है।
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