टिप्पणी: सभी समय १२-घण्टा प्रारूप में Wazirganj, भारत के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
हिन्दु पञ्चाङ्ग अनुसार श्रावण पूर्णिमा वर्ष की पाँचवीं पूर्णिमा है। यह दिन धार्मिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन अनेक प्रमुख त्योहार, व्रत एवं धार्मिक आयोजन होते हैं। यह आयोजन श्रद्धा, अनुशासन एवं भक्ति की अभिव्यक्ति करते हैं। श्रावण पूर्णिमा पर अनेक भक्तगण उपवास करते हैं। क्षेत्रीय मान्यताओं एवं व्रत के प्रकार के अनुसार कुछ लोग फलाहार करते हैं, तो कुछ पूरे दिन निर्जला उपवास करते हैं। व्रत का उद्देश्य आत्मशुद्धि तथा ईश्वर के प्रति भक्ति में वृद्धि करना होता है। यह व्रत सामान्यतः चन्द्र दर्शन के पश्चात् समाप्त किया जाता है। व्रत के समापन पर क्षेत्रीय परम्परा के अनुसार भगवान विष्णु अथवा भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है।
श्रावण पूर्णिमा पर मनाया जाने वाला सर्वाधिक प्रसिद्ध पर्व रक्षा बन्धन है। रक्षा बन्धन के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधती हैं तथा उनकी दीर्घायु की कामना करती हैं। तदुपरान्त भाई अपनी बहनों को सुरक्षा का वचन देते हैं। यह पर्व भाई-बहन के पवित्र प्रेम एवं कर्तव्य को दर्शाता है।
अनेक स्थानों पर इस दिन पितरों की शान्ति हेतु नारायण बलि, श्राद्ध, पितृ तर्पण एवं पिण्डदान आदि विशेष कर्मकाण्ड किये जाते हैं। विशेष रूप से गया, प्रयाग, ऋषिकेश, रामेश्वरम आदि तीर्थ स्थलों पर पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति हेतु यह सभी अनुष्ठान किये जाते हैं।
दक्षिण भारत में इस दिन को अवनी अवित्तम के रूप में मनाया जाता है। ब्राह्मण समुदाय के लिये यह दिन यजुर्वेद उपाकर्म का होता है। ब्राह्मण इस दिन वेद अध्ययन का सङ्कल्प लेते हैं तथा यज्ञोपवीत परिवर्तित करते हैं। यह दिन ऋषियों के प्रति आभार एवं वैदिक परम्परा के पुनः प्रारम्भ का प्रतीक है।
उत्तर एवं मध्य भारत के कुछ क्षेत्रों में यह दिन कजरी पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर किसान एवं महिलायें उत्तम कृषि पैदावार के लिये मिट्टी के कलश एवं अंकुरित अनाज से विशेष पूजा-अर्चना करती हैं।
श्रावण पूर्णिमा को हयग्रीव जयन्ती के रूप में भी मनाया जाता है। यह पर्व भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार के जन्म की वर्षगाँठ के रूप में मनाया जाता है। भगवान हयग्रीव विष्णु जी के 24 अवतारों में से एक हैं तथा उन्हें ज्ञान एवं विद्या का देवता माना जाता है। विद्यार्थी एवं साधकगण इस दिन उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।
श्रावण पूर्णिमा का उल्लेख स्कन्दपुराण, भविष्यपुराण तथा गरुड़पुराण जैसे धर्मग्रन्थों में प्राप्त होता है। शिवपुराण में भी श्रावण मास में व्रत तथा भगवान शिव की विशेष पूजा का महत्व वर्णित किया गया है। श्रावण पूर्णिमा एक ऐसा पावन दिवस है जो विविध अनुष्ठानों, पर्वों एवं त्यौहारों से परिपूर्ण होता है तथा आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होने का अवसर प्रदान करता है।