भगवान विष्णु के नाना प्रकार के लीलावतारों में हयग्रीव अवतार भी वर्णित है। इस अवतार में भगवान का मुख अश्व का तथा देह पुरुष की थी। धर्मग्रन्थों में भगवान हयग्रीव को विद्या, बुद्धि एवं ज्ञान प्रदान करने वाले अवतार के रूप में वर्णित किया गया है। श्रीमद्भागवतपुराण, हयग्रीव उपनिषद, विष्णुपुराण, देवीभागवतपुराण तथा हयग्रीववध नामक महाकाव्य में भगवान के हयग्रीव अवतार का वर्णन प्राप्त होता है।
जिस प्रकार भगवान के सभी अवतारों का एक विशेष प्रयोजन होता है, उसी प्रकार भगवान के इस अवतार का उद्देश्य हयग्रीव नामक एक दैत्य का संहार तथा ब्रह्मा जी से चोरी हुये वेदों की पुनःप्राप्ति था। हयग्रीव अवतार में भगवान विष्णु ने सामवेद का गायन भी किया था।
भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार से सम्बन्धित हयग्रीव अवतार की कथा के अनुसार एक समय भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी के सौन्दर्य का दर्शन करके मुस्कुराने लगे जिसे माता लक्ष्मी ने अपने उपहास के रूप में समझ लिया। माता लक्ष्मी ने विष्णु जी को श्राप दे दिया कि - "आपका शीश आपके धड़ से विलग होकर अदृश्य हो जायेगा।" तदनन्तर क्रोध शान्त होने पर देवी लक्ष्मी अपने स्वामी को दिये श्राप के कारण विचलित होने लगीं। भगवान विष्णु ने उन्हें समझाते हुये कहा कि - "हे देवि! आप व्यथित न हों, आपका यह श्राप हमारी ही लीला का एक अङ्ग है। यह श्राप ही हमारे हयग्रीव अवतार का कारण बनेगा।"
प्राचीन काल में हयग्रीवासुर नाम का एक अत्यन्त शक्तिशाली दैत्य था, जो हयग्रीव के नाम से भी प्रसिद्ध था। हयग्रीवासुर का मुख अश्व का एवं शरीर पुरुष का था। हयग्रीवासुर महर्षि कश्यप एवं दिति का पुत्र था। हिरण्याक्ष, रक्तबीज, धूम्रलोचन एवं हिरण्यकशिपु जैसे बलशाली राक्षस उसके अनुज भ्राता थे तथा वज्रंगासुर एवं अरुणासुर उसके ज्येष्ठ भ्राता थे। उसकी एक सहोदरी भी थी जिसका नाम होलिका था।
कालान्तर में हयग्रीवासुर ने माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिये कठोर तप किया। माता पार्वती उसकी तपस्या से प्रसन्न हुयीं तथा प्रकट होकर उससे मनोवाञ्छित वरदान माँगने को कहा। माता पार्वती को अपने समक्ष साक्षात् पाकर हयग्रीवासुर ने उन्हें बारम्बार नमस्कार किया तथा उन्हें निवेदन करते हुये बोला - "हे जगत्माता! आप यदि मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे अमर कर दें।" माता पार्वती ने कहा - "हे वत्स! इस सृष्टि में जिसका भी जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है, अपितु देवताओं को भी पुण्य क्षीण होने पर मृत्युलोक में जन्म लेना पड़ता है। अतः तुम कोई अन्य वरदान माँगो।"
माता पार्वती के वचनों को सुनकर हयग्रीवासुर ने कहा - "हे माँ! आप मुझे यह वरदान प्रदान करें कि मेरे जैसा प्राणी अर्थात् जिसका मुख अश्व का हो एवं देह पुरुष की हो वही मेरा वध करने में सक्षम हो।" माता पार्वती तथास्तु कहकर वहाँ से अन्तर्धान हो गयीं। माता पार्वती के वरदान से निर्भय होकर हयग्रीवासुर स्वयं को अमर समझने लगा एवं समस्त लोकों में अत्याचार करने लगा। उसने ऋषि मुनियों को प्रताड़ित करना आरम्भ कर दिया। अपने बल के अहङ्कार में भ्रमित होकर हयग्रीवासुर ने ब्रह्मा जी के वेदों को चुरा लिया।
वेदों का हरण होने से सम्पूर्ण सृष्टि में अज्ञान का अन्धकार व्याप्त हो गया। वेदों को चुराने के उपरान्त हयग्रीव ने भगवान श्री हरि विष्णु को युद्ध के लिये ललकारा। भगवान विष्णु उसकी इच्छा को स्वीकार करते हुये उससे युद्ध करने के लिये प्रकट हो गये। हयग्रीवासुर एवं भगवान विष्णु के मध्य भीषण युद्ध हुआ किन्तु यह युद्ध किसी अन्तिम परिणाम पर नहीं पहुँच रहा था। वह युद्ध एक सप्ताह तक होता रहा, तदुपरान्त आठवें दिन वह असुर एवं भगवान विष्णु दोनों ही क्लान्त हो गये तथा युद्ध स्थगित कर विश्राम करने लगे।
भगवान विष्णु धनुष की प्रत्यन्चा पर मस्तक टिकाकर विश्राम कर रहे थे। भगवान को इस अवस्था में विश्राम करते देख ब्रह्मा जी ने अपने तेज द्वारा एक कीट प्रकट किया तथा उसे विष्णु जी के धनुष की प्रत्यन्चा काटने का आदेश दिया। उस कीट ने ब्रह्मा जी के आदेशानुसार विष्णु जी के धनुष की प्रत्यन्चा काट दी जिससे भीषण ध्वनि हुयी तथा उस प्रत्यन्चा के प्रहार से भगवान विष्णु का शीश उनके धड़ से विलग होकर अदृश्य हो गया।
उसी समय माता पार्वती द्वारा आकाशवाणी हुयी तथा उन्होंने ब्रह्मा जी से एक अश्व का मस्तक लाने को कहा। ब्रह्मा जी एक नील वर्ण के अश्व का मस्तक लेकर आये तथा अश्विनी कुमारों की सहायता से उस अश्व के मस्तक को भगवान के धड़ से जोड़ दिया जिससे भगवान हयग्रीव का अवतार हुआ। तदुपरान्त भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में उस दैत्य से युद्ध किया तथा हयग्रीवासुर का संहार कर दिया। हयग्रीवासुर का वध करने के उपरान्त भगवान हयग्रीव ने वेद लाकर ब्रह्मा जी को लौटा दिये।
इस प्रकार उस दुर्जन राक्षस के अत्याचारों से समस्त प्राणियों की रक्षा एवं वेदों की पुनःप्राप्ति के उद्देश्य से भगवान श्रीहरि विष्णु ने श्री हयग्रीव अवतार लिया था।
भगवान हयग्रीव भगवान विष्णु के स्वयम्भू अवतार हैं। अतः उनके माता-पिता के विषय में कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता है। भगवान हयग्रीव के श्रीलक्ष्मी-हयग्रीव स्वरूप में उनकी अर्धाङ्गनी के रूप में देवी लक्ष्मी का वर्णन प्राप्त होता है।
भगवान हयग्रीव नीलवर्ण वाले हैं। उनका मुख अश्व का तथा शरीर पुरुष का है। उन्हें चतुर्भुज रूप में दर्शाया जाता है। भगवान हयग्रीव अपनी ऊपर की दो भुजाओं में शङ्ख एवं चक्र धारण करते हैं तथा उनकी नीचे की दो भुजाओं में से एक वरद मुद्रा में रहती है एवं अन्तिम भुजा में वे वेद लिये हुये रहते हैं। वे पीताम्बरी धारण करते हैं तथा अद्वितीय स्वर्णाभूषणों से अलङ्कृत रहते हैं। उनके मस्तक पर दिव्य बहुमूल्य रत्नों से युक्त मुकुट शोभायमान होता है।
श्री लक्ष्मीहयग्रीव स्वरूप में भगवान को उपरोक्त रूप में अपनी बायीं जङ्घा पर देवी लक्ष्मी को विराजमान किये चित्रित किया जाता है। भगवान हयग्रीव से सम्बन्धित कुछ चित्रों में उन्हें चक्र के स्थान पर पद्म लिये हुये तथा ब्रह्मा जी को उनके वेद लौटाते हुये दर्शाया जाता है।
हयग्रीव सामान्य मन्त्र -
श्रीहयग्रीव सहित श्रीमहालक्ष्मी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि॥
स्कन्द पुराण वर्णित हयग्रीव मन्त्र -
ॐ नमो भगवते आत्मविशोधनाय नमः।
हयग्रीव गायत्री मन्त्र -
ॐ वाणीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि।
तन्नः हयग्रीवः प्रचोदयात्॥