सर्वप्रथम पारिवारिक परम्परा के अनुसार पूज्य पितरों तथा कुल-देवता, ग्राम-नगर-देवताओं के मध्य में सरसों के तेल का एक बड़ा दीपक तथा उसके चारों ओर ग्यारह-इक्कीस-इक्यावन अथवा अधिक छोटे दीपक, एक परात अर्थात् बड़ी थाली में रखकर सजा लें। तदुपरान्त दीप-देव का ध्यान करें।
दीप-देव का ध्यान करते हुये पूजा आरम्भ करनी चाहिये। दीप-देव का ध्यान करते समय निम्नलिखित मन्त्र का जाप करना चाहिये।
भो दीप! ब्रह्मरूपस्त्वं ह्यन्धकार-विनाशकः।
गृहाण मया कृतां पूजाम् ओजस्तेजः प्रवर्धय॥
मन्त्रार्थ - हे दीप! आप अन्धकार का नाश करने वाले ब्रह्म-स्वरूप हैं। मेरे द्वारा की गयी पूजा को ग्रहण करें तथा ओज तथा तेज की वृद्धि करें।
दीप-देव के ध्यान के पश्चात् दीप-देव का पूजन करते हुये निम्नलिखित मन्त्र का जाप करना चाहिये तथा दोनों हाथों की हथेलियों जोड़कर अञ्जलि में तीन पुष्प लेकर दीपक के समक्ष अर्पित कर देना चाहिये।
ॐ दीप-वृक्षाय नमः।
मन्त्रार्थ - दीप-वृक्ष को नमस्कार है।
दीप-देव की पूजा के उपरान्त, निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करते हुये दीपमालिका को नमस्कार करें।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुख-सम्पदम्।
मम बुद्धि-प्रकाशं च दीप-ज्योतिर्नमोऽस्तु ते॥
शुभं भवतु कल्याणमारोग्यं पुष्टि-वर्धनम्।
आत्म-तत्त्व-प्रबोधाय दीप-ज्योतिर्नमोऽस्तु ते॥
दीपावलिर्मया दत्ता गृहाण त्वं सुरेश्वरि!
अनेन दीप-दानेन ज्ञान-दृष्टि-प्रदा भव॥
मन्त्रार्थ - दीप-ज्योति शुभ करे, कल्याण करे, आरोग्य करे, सुख-सम्पदा प्रदान करे, मेरी बुद्धि को प्रकाशित करे, दीप-ज्योति-स्वरूपा आप भगवती को नमस्कार। शुभ कल्याण एवं आरोग्य हो तथा पुष्टि की वृद्धि हो। आत्म-तत्त्व को प्रबुद्ध करने वाली दीप-ज्योति, आपको नमस्कार। हे देवेश्वरि! मेरे द्वारा अर्पित दीप-पँक्ति को आप स्वीकार करें तथा इस दीप-दान से आप मुझे ज्ञान-दृष्टि प्रदान करें।
उक्त प्रकार से दीपमालिका का पूजन करने के पश्चात् दीपमालिका को नमस्कार करें एवं पञ्च-पात्र से दाहिने हाथ में जल लेकर दीप-मालिका के चारों ओर घुमाते हुये भूमि पर छिड़क दें।
तत्पश्चात् धान का लावा, लाई, ईख, नारियल, फल एवं मिष्टान्न आदि उपलब्ध वस्तुयें अर्पित करें। कलश, भगवान गणेश एवं भगवती लक्ष्मी की नवीन मूर्तियों, तिजोरी, बही-खातों तथा दीपमालिका के सम्मुख धान का लावा छिड़क दें।