धुनुची नृत्य, पश्चिम बंगाल में आयोजित होने वाली दुर्गा पूजा की एक महत्वपूर्ण एवं लोकप्रिय परम्परा है। दुर्गा पूजा के समय देवी माँ को प्रसन्न करने हेतु ढाक की थाप पर धुनुची नृत्य किया जाता है। मुख्य रूप से धुनुची नृत्य का आयोजन षष्ठी तिथि पर सन्ध्या आरती के समय किया जाता है। धुनुची नृत्य करने वाले भक्तों को धनुच्ची कहा जाता है, जो कि एक मिट्टी के पात्र में प्रज्वलित हवन सामग्री को लेकर अपने हाथ, मस्तक तथा मुख से उस पात्र को पकड़े हुये विभिन्न प्रकार की कलाओं का प्रदर्शन करते हुये नृत्य करते हैं।
धुनुची नृत्य को यह नाम इस नृत्य में प्रयोग किये जाने पात्र से मिला है, जिसे धुनाची कहा जाता है। धुनाची पात्र में प्रज्वलित की जाने वाली सामग्री को धूना (ধুনো) कहा जाता है, जो आरती के समय प्रयोग की जाने वाली एक प्रकार की हवन सामग्री होती है। पारम्परिक रूप से धुनाची मिट्टी से निर्मित होता है तथा इसकी आकृति विशेष प्रकार की होती है, जिसका ऊपरी भाग बड़ा अथवा चौड़ा तथा नीचे का भाग पतला होता है। धुनाची के इस विशेष आकर-प्रकार के कारण इसे लेकर नृत्य करने वाले भक्तों को सहजता होती है तथा यह आकृति ज्वलनशीलता को भी नियन्त्रित करती है। धुनाची के तल में एक दहकता हुआ कोयला होता है, जिसके ऊपर नारियल के खोल का बुरादा, हवन सामग्री तथा कपूर इत्यादि छिड़का जाता है। यह सामग्री जब धीमी गति से प्रज्वलित होती है तब सुगन्धित धूम्र उत्पन्न होता है, जिसे धुनि कहा जाता है।
पूर्वी भारत में, विशेषतः पश्चिम बंगाल में धुनुची नृत्य दुर्गा पूजा का अभिन्न अङ्ग है। धुनुची नृत्य दोनों हाथों में एक-एक धुनाची लेकर ढाक की धुन पर किया जाता है। ढाक एक प्रकार का ढोल है, जो कि बंगाल का पारम्परिक वाद्य यन्त्र है। दुर्गा पूजा के अवसर पर विभिन्न स्थानों पर धुनुची नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है तथा कुछ प्रतिभागी तीन धुनाची एक साथ लेकर नृत्य करते हैं, जिनमें से तीसरी धुनाची दाँतो से पकड़ी जाती है।