
टिप्पणी: सभी समय २४:००+ प्रारूप में लँकेस्टर, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय २४:०० से अधिक हैं और आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
अमावस्या तिथि श्राद्ध परिवार के उन मृतक सदस्यों के लिये किया जाता है, जिनकी मृत्यु अमावस्या तिथि, पूर्णिमा तिथि तथा चतुर्दशी तिथि को हुयी हो। यदि कोई सम्पूर्ण तिथियों पर श्राद्ध करने में सक्षम न हो, तो वो मात्र अमावस्या तिथि पर सभी के लिये श्राद्ध कर सकता है। अमावस्या तिथि पर किया गया श्राद्ध, परिवार के सभी पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करने के लिये पर्याप्त है। जिन पूर्वजों की पुण्यतिथि ज्ञात नहीं है, उनका श्राद्ध भी अमावस्या तिथि पर किया जा सकता है। इसीलिये अमावस्या श्राद्ध को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।
साथ ही पूर्णिमा तिथि पर मृत्यु प्राप्त करने वालों के लिये महालय श्राद्ध भी अमावस्या श्राद्ध तिथि पर किया जाता है, न कि भाद्रपद पूर्णिमा पर। हालाँकि, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध पितृ पक्ष से एक दिन पहले पड़ता है, किन्तु यह पितृ पक्ष का भाग नहीं है। सामान्यतः पितृ पक्ष, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध के अगले दिन से आरम्भ होता है। अमावस्या श्राद्ध को अमावस श्राद्ध के रूप में भी जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में महालय अमावस्या नवरात्रि उत्सव के आरम्भ का प्रतीक है। देवी दुर्गा के भक्तों का मानना है कि, इस दिन देवी दुर्गा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था।
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिये कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
सर्वपितृ अमावस्या पितृ पक्ष की अन्तिम तिथि होती है, जिसे सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों के श्राद्ध हेतु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है। गरुड़पुराण में प्राप्त वर्णन के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, अथवा तिथि विशेष पर श्राद्ध करने में असमर्थता हो, तो अश्विन कृष्ण अमावस्या के दिन सर्वपितृ अमावस्या के रूप में श्राद्ध करना श्रेयस्कर होता है।
इस तिथि को महालय अमावस्या भी कहा जाता है। महालय का अर्थ है - "वह महान तिथि जिसमें समस्त पितरों का आवाहन कर उनका एक साथ पूजन किया जाये।" मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष में पितृगण पृथ्वीलोक पर आते हैं तथा अमावस्या को विदा होते हैं। अतः इस दिन विधिपूर्वक किया गया श्राद्ध, तर्पण एवं पिण्डदान समस्त पितरों की तृप्ति हेतु किया जाता है, चाहे वे ज्ञात हों या अज्ञात। जिनका विधिवत् अन्त्येष्टि संस्कार सम्भव नहीं हो पाया, उनका श्राद्ध इस तिथि को करने से उन्हें भी शान्ति मिलती है। इसके अतिरिक्त, जिनका विवाह नहीं हुआ अथवा जिनका कोई वंशज नहीं है, उनके लिये भी सर्वपितृ अमावस्या को सामूहिक रूप से श्राद्ध करने का प्रावधान है।
सर्वपितृ अमावस्या को विशेष पुण्यकारी माना गया है। इस दिन ब्राह्मण भोज, वस्त्रदान, तिलदान, कुयें या जल स्रोतों पर जलदान, दीपदान तथा गाय को हरा चारा अर्पित करना अत्यन्त शुभ फलदायक होता है। इस पावन अवसर पर श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीविष्णुसहस्रनाम अथवा रुद्रपाठ का पाठ कर पितरों की आत्मा की शान्ति के लिये प्रार्थना की जाती है।
इस दिन किया गया श्रद्धापूर्वक श्राद्ध कर्म व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्त करता है तथा पारिवारिक कल्याण, विवाह, सन्तान, धन, सुख-समृद्धि एवं मानसिक शान्ति की प्राप्ति में सहायक होता है। यह तिथि पितृगणों के प्रति श्रद्धा, सम्मान एवं कृतज्ञता प्रकट करने की एक विशेष अवसर के रूप में सम्पूर्ण हिन्दु समाज द्वारा मनायी जाती है।