टिप्पणी: सभी समय २४-घण्टा प्रारूप में Frankfurt am Main, जर्मनी के स्थानीय समय और डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है) के साथ दर्शाये गए हैं।
आधी रात के बाद के समय जो आगामि दिन के समय को दर्शाते हैं, आगामि दिन से प्रत्यय कर दर्शाये गए हैं। पञ्चाङ्ग में दिन सूर्योदय से शुरू होता है और पूर्व दिन सूर्योदय के साथ ही समाप्त हो जाता है।
कूर्म जयन्ती, भगवान विष्णु के कूर्म अवतार के जन्म की वर्षगाँठ है। कूर्म अवतार, सत्ययुग में भगवान विष्णु का द्वितीय अवतार था। हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार वैशाख, शुक्ल पूर्णिमा को कूर्म जयन्ती मनायी जाती है। कूर्म अवतार में विष्णु जी एक कच्छप के रूप में प्रकट हुये थे। मान्यताओं के अनुसार भगवान कूर्म की आराधना करने से समृद्धि एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है। इस अवसर पर तीर्थ स्नान एवं दान आदि कर्मों का भी विशेष महत्व होता है।
पद्मपुराण के अनुसार जिस समय समुद्र मन्थन किया जा रहा था, तब कोई ठोस आधार न होने के कारण मन्दराचल पर्वत डूबने लगा था, उस समय विष्णु जी ने कूर्म रूप में अवतरित होकर मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया था। कूर्म अवतार को कच्छपावतार के नाम से भी जाना जाता है। हालाँकि, लिङ्गपुराण में वर्णित कथा के अनुसार कालान्तर में पृथ्वी रसातल में डूब रही थी, उस समय पृथ्वी की रक्षा करने हेतु भगवान विष्णु कूर्म रूप में अवतरित हुये थे तथा उन्होंने पृथ्वी को अपनी पीठ पर स्थापित कर उसकी रक्षा की थी।
कूर्म जयन्ती के पावन अवसर पर भगवान विष्णु के मन्दिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। इस दिन वैष्णवजन भगवान कूर्म के निमित्त एक दिवसीय उपवास का पालन करते हैं तथा कूर्मपुराण एवं श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं। कूर्मपुराण में भगवान कूर्म द्वारा ऋषियों को चार पुरुषार्थों, अर्थात् धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का ज्ञान प्रदान किया गया है।
आन्ध्र प्रदेश के श्री कूर्मम में स्थित कूर्मनाथस्वामी मन्दिर में कूर्म जयन्ती का पर्व अत्यन्त विशाल स्तर पर मनाया जाता है। इस मन्दिर में भगवान विष्णु को श्री कूर्मनाथस्वामी एवं देवी लक्ष्मी को देवी कूर्मनायकी के रूप में पूजा जाता है। इस दिन भगवान कूर्मनाथस्वामी का वैदिक विधि-विधान द्वारा विशेष पूजन एवं अभिषेक किया जाता है। तदुपरान्त नगर में कूर्मनाथस्वामी की शोभायात्रा निकाली जाती है।
कूर्मनाथस्वामी मन्दिर में भगवान कूर्म की वैष्णव एवं शैव दोनों पद्धतियों के माध्यम से पूजा-अर्चना की जाती है। ग्यारहवीं शताब्दी से भी पूर्व निर्मित यह मन्दिर कलिङ्ग एवं द्रविड़ शैली पर आधारित है तथा इसे भगवान कूर्म का प्राचीनतम मन्दिर माना जाता है।
इस्कॉन के अनुयायियों द्वारा भी कूर्म जयन्ती भव्य रूप से मनायी जाती है। कूर्म जयन्ती के अवसर पर इस्कॉन के भक्तगण पवित्र नदियों में पूर्णिमा स्नान करके भगवान विष्णु के कूर्म अवतार का पूजन करते हैं तथा एक दिवसीय उपवास का पालन करते हैं।
भगवान विष्णु के कूर्म अवतार के विषय में विस्तृत वर्णन पढ़ने हेतु उक्त लेख का अवलोकन करें - कूर्म अवतार।