महा शिवरात्रि पूजा विधि
अधिकांश लोग महा शिवरात्रि के अवसर पर व्रत का पालन करते हैं। समय के अनुसार व्रत पालन करने के ढँग भी परिवर्तन हुआ है। धार्मिक ग्रन्थों में जिस प्रकार से पूजा प्रक्रिया का वर्णन किया गया है, कदाचित् ही शिवरात्रि के अवसर पर उसका पूर्ण रूप से पालन किया जाता होगा।
पूजा विधि के वर्तमान स्वरूप में, भक्तगण प्रातः शिवालयों में जाते हैं। अधिकांश लोग मध्याह्न से पूर्व ही शिवलिङ्ग पूजा सम्पन्न कर लेते हैं, क्योंकि अधिकतम शिव मन्दिरों के पट मध्याह्न के उपरान्त सन्ध्या दर्शन की तैयारी हेतु बन्द कर दिये जाते हैं। सन्ध्याकाल में अधिकांश शिव मन्दिर मात्र दर्शन के लिये ही खुलते हैं, पूजन आदि गतिविधियों के लिये नहीं। प्रातःकाल भक्तगण दुग्ध एवं जल से शिवलिङ्ग का अभिषेक करते हैं तथा बिल्व पत्र, बिल्व फल एवं धतूरा सहित विभिन्न सामग्रियाँ शिवलिङ्ग पर अर्पित करते हैं।
महा शिवरात्रि के अवसर पर अनेक लोग प्रसाद के रूप में भाँग मिश्रित मधुर पेय वितरित करते हैं। भाँग के पौधे की पत्तियों द्वारा भाँग तैयार होती है तथा इसे समाज में भगवान शिव के प्रसाद के रूप में सहजता से स्वीकार किया जाता है।
अधिकांश भक्त फलों एवं रसों के आहार पर सम्पूर्ण दिवस उपवास का पालन करते हैं। साधारणतः लोग सन्ध्याकाल में एक बार उपवास का भोजन ग्रहण कर लेते हैं। महा शिवरात्रि के अगले दिन, भोजन में विशेषतः सादा चावल एवं बेसन की कड़ी भगवान शिव को अर्पित की जाती है तथा तत् पश्चात् इसे किन्ही बाबा जी को दिया जाता है, जिन्हें बम भोले के नाम से जाना जाता है तथा वह प्रतीकात्मक रूप से भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रसाद अर्पित करने के पश्चात् ही परिवार के सदस्य भोजन ग्रहण कर सकते हैं।
उपरोक्त लेख से यह ज्ञात होता है कि, अधिकांश भारतीयों द्वारा महा शिवरात्रि कैसे मनायी एवं जानी जाती है। हालाँकि, एक अन्य कठिन विधि है, जिसका सुझाव अधिकांश धर्मग्रन्थों में दिया गया है।
धर्मग्रन्थों के अनुसार शिवरात्रि पूजा विधि
निम्नलिखित महा शिवरात्रि पूजा विधि, विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों से एकत्रित की गयी है। हमने महा शिवरात्रि हेतु निर्धारित सभी मुख्य अनुष्ठानों को सम्मिलित किया है।
- महा शिवरात्रि व्रत से एक दिवस पूर्व, मात्र एक समय भोजन करने का सुझाव दिया गया है। यह व्रत के समय की जाने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि, व्रत के दिन पाचन तन्त्र में कोई अपचित भोजन शेष न रहा गया हो।
- शिवरात्रि के दिन प्रातःकाल शीघ्र उठकर स्नान आदि कर्म करने चाहिये। इस दिन स्नान के जल में काले तिल डालने का सुझाव दिया गया है। यह मान्यता है कि, शिवरात्रि के दिन किये जाने वाले पवित्र स्नान से न केवल देह, अपितु आत्मा का भी शुद्धिकरण भी हो जाता है। यदि सम्भव हो तो, इस दिन गङ्गा स्नान करना चाहिये।
- स्नान आदि से निर्वृत होने के पश्चात्, भक्तगणों को एक दिवसीय उपवास करने तथा अगले दिन उसका पारण करने का संकल्प ग्रहण करना चाहिये। संकल्प ग्रहण के समय भक्तगण व्रत के समय दृढ़ रहने की प्रतिज्ञा करते हैं तथा बिना किसी विघ्न-व्यवधान के व्रत सम्पन्न करने हेतु भगवान शिव से आशीर्वाद की कामना करते हैं। हिन्दु व्रत-उपवास अत्यन्त कठिन होते हैं तथा लोग इन्हें सफलतापूर्वक सम्पन्न करने हेतु व्रत से पूर्व दृण संकल्प करते हैं तथा भगवान से आशीष ग्रहण करते हैं।
- उपवास के समय भक्तों को सभी प्रकार के भोजन से दूर रहना चाहिये। उपवास के एक अन्य कठिन रूप में जल की भी अनुमति नहीं है, इसे निर्जला व्रत कहा जाता है। यद्यपि, दिन के समय फलों एवं दुग्ध का सेवन करने का सुझाव दिया जाता है, जिसके पश्चात् रात्रिकाल तक कठिन उपवास का पालन किया जाना चाहिये। अन्य शब्दों में कहें तो, दिन के समय फल एवं दुग्ध का सेवन किया जा सकता है।
- भक्तों को सन्ध्याकाल में पूजन करने एवं मन्दिर जाने से पूर्व पुनः स्नान करना चाहिये। यदि कोई मन्दिर जाने में सक्षम नहीं है, तो पूजन आदि गतिविधियाँ सम्पन्न करने हेतु अस्थायी शिवलिङ्ग का निर्माण किया जा सकता है। घर पर अभिषेक-पूजन करने हेतु मिट्टी के शिवलिङ्ग का निर्माण करके उसपर घृत लेपन कर प्रयोग किया जा सकता है।
- शिव पूजा रात्रि काल में की जानी चाहिये। रात्रिकाल में एक अथवा चार बार शिवरात्रि पूजा की जा सकती है। चार बार शिव पूजा करने हेतु सम्पूर्ण रात्रि की समयावधि को चार प्रहर के रूप में चार भागों में विभाजित किया जा सकता है। जो भक्त एक बार पूजा करना चाहते हैं, उन्हें मध्य रात्रि के समय पूजा करनी चाहिये। कृपया अपने शहर के लिये इन चार प्रहरों का पूजन काल ज्ञात करने हेतु महा शिवरात्रि पूजा समय देखें।
- पूजा विधि के अनुसार, भिन्न-भिन्न सामग्रियों द्वारा शिवलिङ्ग का अभिषेक करना चाहिये। अभिषेक हेतु प्रायः दुग्ध, गुलाब जल, चन्दन का लेप, दही, शहद, घी, चीनी तथा जल आदि सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। जो भक्तगण चार प्रहर की पूजा करते हैं, उन्हें अन्य सामग्रियों के अतिरिक्त प्रथम प्रहार में जलाभिषेक, द्वितीय प्रहार में दधि (दही) अभिषेक, तृतीय प्रहर में घृत (घी) अभिषेक तथा चतुर्थ प्रहर में शहद अर्थात मधु अभिषेक करना चाहिये।
- अभिषेक अनुष्ठान के उपरान्त, शिवलिङ्ग को बिल्व पत्र की माला से सुसज्जित किया जाता है। यह मान्यता है कि, बिल्व पत्र भगवान शिव को शीतलता प्रदान करते हैं।
- तदोपरान्त, शिवलिङ्ग पर चन्दन अथवा कुमकुम अर्पित किया जाता है तथा धूप-दीप आदि प्रज्वलित किये जाते हैं। भगवान शिव को सुसज्जित करने वाली अन्य सामग्रियों के रूप में मदार पुष्प, जिन्हें आक के रूप में भी जाना जाता है तथा विभूति, जिसे भस्म भी कहा जाता है आदि अर्पित की जाती हैं। विभूति एक पवित्र भस्म है, जो गाय के गोबर के कण्डों से बनती है।
- पूजा के समय ॐ नमः शिवाय मन्त्र का जप करना चाहिये।
- भक्तों को अगले दिन स्नान करने के पश्चात् उपवास का पारण करना चाहिये। व्रत का अधिकतम लाभ प्राप्त करने हेतु भक्तों को सूर्योदय एवं चतुर्दशी तिथि के समापन से पूर्व के मध्य की समयावधि में उपवास खोलना चाहिये। कृपया अपने शहर के लिये उपवास खोलने का समय ज्ञात करने हेतु महा शिवरात्रि पृष्ठ देखें।