☰
Search
Mic
हि
Android Play StoreIOS App Store
Setting
Clock

नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चन्द्रघण्टा की पूजा

DeepakDeepak

देवी चन्द्रघण्टा

Goddess Chandraghanta
देवी चन्द्रघण्टा

उत्पत्ति

देवी पार्वती के विवाहित स्वरूप को देवी चन्द्रघण्टा के रूप में जाना जाता है। भगवान शिव से विवाह होने के पश्चात् देवी महागौरी ने अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करना आरम्भ कर दिया, जिसके कारण देवी पार्वती को देवी चन्द्रघण्टा के नाम से जाना जाने लगा।

नवरात्रि पूजा

नवरात्रि उत्सव के तृतीय दिवस के अवसर पर देवी चन्द्रघण्टा की पूजा-उपासना की जाती है।

शासनाधीन ग्रह

मान्यताओं के अनुसार, देवी चन्द्रघण्टा शुक्र ग्रह को शासित करती हैं।

स्वरूप वर्णन

देवी चन्द्रघण्टा बाघिन की सवारी करती हैं। वह अपने मस्तक पर अर्धवृत्ताकार चन्द्रमा धारण करती हैं। उनके मस्तक पर अर्धचन्द्र घण्टे के समान प्रतीत होता है तथा इसी कारण से देवी माता को चन्द्रघण्टा के नाम से जाना जाता है। देवी चन्द्रघण्टा को दस भुजाओं के साथ दर्शाया गया है। देवी चन्द्रघण्टा अपने चार बायें हाथों में त्रिशूल, गदा, तलवार तथा कमण्डलु धारण करती हैं तथा पाँचवाँ बायाँ हाथ वर मुद्रा में रखती हैं। वह अपने चार दाहिने हाथों में कमल पुष्प, तीर, धनुष तथा जप माला धारण करती हैं तथा पाँचवें दाहिने हाथ को अभय मुद्रा में रखती हैं।

विवरण

देवी पार्वती का यह रूप शान्तिपूर्ण एवं अपने भक्तों का कल्याण करने वाला है। इस रूप में देवी चन्द्रघण्टा अपने सभी अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित युद्ध हेतु तत्पर रहती हैं। मान्यतानुसार, उनके मस्तक पर विद्यमान चन्द्र-घण्टी की ध्वनि उनके भक्तों की समस्त प्रकार की शक्तियों से रक्षा करती हैं।

प्रिय पुष्प

चमेली

मन्त्र

श्री चन्द्रघण्टा मन्त्र

ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥

प्रार्थना

श्री चन्द्रघण्टा प्रार्थना

पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

स्तुति

श्री चन्द्रघण्टा स्तुति

या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ध्यानम्

श्री चन्द्रघण्टा ध्यान मन्त्र

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

स्तोत्रम्

श्री चन्द्रघण्टा स्तोत्र

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टम् मन्त्र स्वरूपिणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायिनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम्॥

कवचम्

श्री चन्द्रघण्टा कवच

रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम्॥
बिना न्यासम् बिना विनियोगम् बिना शापोध्दा बिना होमम्।
स्नानम् शौचादि नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिदाम॥
कुशिष्याम् कुटिलाय वञ्चकाय निन्दकाय च।
न दातव्यम् न दातव्यम् न दातव्यम् कदाचितम्॥

आरती

जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम। पूर्ण कीजो मेरे काम॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती। चन्द्र तेज किरणों में समाती॥
मन की मालक मन भाती हो। चन्द्रघण्टा तुम वर दाती हो॥
सुन्दर भाव को लाने वाली। हर संकट में बचाने वाली॥
हर बुधवार को तुझे ध्याये। सन्मुख घी की ज्योत जलाये॥
श्रद्दा सहित तो विनय सुनाये। मूर्ति चन्द्र आकार बनाये॥
शीश झुका कहे मन की बाता। पूर्ण आस करो जगत दाता॥
काँचीपुर स्थान तुम्हारा। कर्नाटिका में मान तुम्हारा॥
नाम तेरा रटूँ महारानी। भक्त की रक्षा करो भवानी॥


Kalash
कॉपीराइट नोटिस
PanditJi Logo
सभी छवियाँ और डेटा - कॉपीराइट
Ⓒ www.drikpanchang.com
प्राइवेसी पॉलिसी
द्रिक पञ्चाङ्ग और पण्डितजी लोगो drikpanchang.com के पञ्जीकृत ट्रेडमार्क हैं।
Android Play StoreIOS App Store
Drikpanchang Donation