धूमावती दस महाविद्या देवियों में से सातवीं देवी हैं। देवी धूमावती एक वृद्ध विधवा हैं, जो अशुभ एवं अनाकर्षक वस्तुओं से सम्बन्धित हैं। देवी सदैव भूखी-प्यासी रहती हैं तथा कलह उत्पन्न करती हैं।
देवी धूमावती के स्वरूप एवं स्वाभाव की तुलना देवी अलक्ष्मी, देवी ज्येष्ठा एवं देवी निऋति से की जाती है। ये तीनों देवियाँ नकारात्मक गुणों की सूचक हैं, किन्तु वर्ष पर्यन्त विभिन्न विशेष अवसरों पर इनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
प्राणतोषिणी तन्त्र में वर्णित कथाओं के अनुसार, एक बार देवी सती ने प्रचण्ड भूख से अतृप्त होने के कारण भगवान शिव को निगल लिया। तदोपरान्त, भगवान शिव के अनुरोध के पश्चात् देवी ने उन्हें मुक्त कर दिया। इस घटना से क्रोधित होकर भगवान शिव ने देवी का परित्याग कर दिया तथा उन्हें विधवा रूप धारण करने का श्राप दे दिया। हिन्दु पञ्चाङ्ग के अनुसार, धूमावती जयन्ती ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी को मनायी जाती है।
देवी धूमावती को एक वृद्ध एवं कुरूप विधवा स्त्री के रूप में दर्शाया जाता है। अन्य महाविद्याओं के समान वह कोई आभूषण धारण नहीं करती हैं। वह पुराने एवं मलिन वस्त्र धारण करती हैं एवं उनके केश पूर्णतः अव्यवस्थित रहते हैं।
उन्हें दो भुजाओं के साथ चित्रित किया गया है। देवी अपने कम्पित हाथों में, एक सूप रखती हैं तथा उनका अन्य हाथ वरदान मुद्रा अथवा ज्ञान प्रदायनी मुद्रा में होता है। वरदान एवं ज्ञान प्रदायनी मुद्रा को क्रमशः वरद मुद्रा एवं ज्ञान मुद्रा के रूप में जाना जाता है। वह एक बिना अश्व के रथ पर सवारी करती हैं, जिसके शीर्ष पर ध्वज एवं प्रतीक के रूप में कौआ विराजमान रहता है।
घनघोर दरिद्रता से मुक्ति प्राप्त करने हेतु देवी धूमावती की पूजा की जाती है। समस्त प्रकार के रोगों से मुक्ति हेतु भी देवी की आराधना की जाती है।
ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा॥