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कपिल मुनि | कपिल अवतार | महर्षि कपिल

DeepakDeepak

कपिल मुनि

कपिल मुनि

जिस प्रकार भगवान विष्णु दुष्टों का अन्त करने के लिये विभिन्न अवतार धारण करते हैं, उसी प्रकार वे संसार को विभिन्न गूढ विषयों का ज्ञान प्रदान करने हेतु भी अवतरित होते रहते हैं। भगवान विष्णु के ऐसे ही अवतारों में से एक कपिल मुनि का अवतार है। कपिल मुनि को महर्षि कपिल, कपिल अवतार तथा कपिलदेव के नाम से भी जाना जाता है। कपिल ऋषि भगवान विष्णु के पञ्चम अवतार हैं। कपिल ऋषि के रूप में अवतरित होकर भगवान विष्णु ने सृष्टि को सांख्य दर्शन का ज्ञान प्रदान किया। सांख्य दर्शन तत्त्व ज्ञान पर आधारित शास्त्र है। कपिल ऋषि ने सर्वप्रथम विकासवाद का प्रतिपादन किया तथा उन्होंने कपिलस्मृति नामक धर्मशास्त्र की रचना की थी। कपिल ऋषि ने ही भारत को ज्ञानमार्ग से अवगत कराया था।

Kapila Muni
कपिल मुनि

कपिल ऋषि के अनुसार - "सुख दुःख प्रकृति प्रदत्त हैं तथा पुरुष अज्ञान रूपी बन्धन में बद्ध है। अज्ञान नष्ट होने पर पुरुष एवं प्रकृति अपने-अपने स्थान पर स्थित हो जाते हैं।" वेदान्त, योग दर्शन तथा पौराणिक दार्शनिकों द्वारा स्पष्ट रूप में सांख्य के त्रिगुणवाद एवं विकासवाद को स्वीकार किया गया है। अतः सभी प्रकार के दर्शन कपिल ऋषि के प्रवर्तित सांख्य दर्शन द्वारा प्रभावित हैं।

महर्षि कपिल उत्पत्ति

महाभारत एवं विभिन्न पुराणों में प्राप्त वर्णन के अनुसार प्रत्येक कल्प के आदि में कपिल ऋषि अवतरित होते हैं तथा जन्म के साथ ही उन्हें समस्त सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। अतः कपिल ऋषि को आदिसिद्ध एवं आदिविद्वान्‌ भी कहा जाता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार कपिल ऋषि का जन्म कर्दम ऋषि एवं माता देवहूति की सन्तान के रूप मे हुआ था।

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय भगवान ब्रह्मा ने अपने पुत्र महर्षि कर्दम को सृष्टि की वृद्धि करने का आदेश दिया। भगवान ब्रह्मा की आज्ञा से महर्षि कर्दम बिन्दुसार तीर्थ में बिन्दु सरोवर के निकट तपस्या करने लगे। धर्मग्रन्थों में प्राप्त वर्णन के अनुसार प्राचीन काल में तपश्चर्या के द्वारा ही प्राणियों की समस्त कामनायें पूर्ण होती थीं।

कर्दम जी की कठिन तपस्या से भगवान श्री हरि नारायण प्रसन्न हुये तथा उन्होंने महर्षि कर्दम को दर्शन देते हुये कहा - "हे मुनिवर! स्वायम्भुव मनु की कन्या देवहूति ही तुम्हारे लिये सर्वोत्तम धर्मपत्नी है। वह कन्या ब्रह्मा जी द्वारा निर्देशित सृष्टि रचना के कार्य की पूर्ति में तुम्हारी सहायता करेगी। जिस समय महाराज स्वायम्भुव मनु अपनी पुत्री देवहूति सहित तुम्हारे आश्रम में सम्बन्ध लेकर पधारेंगे, उस समय तुम देवहूति से विवाह सम्बन्ध स्वीकार कर लेना, ऐसी मेरी आज्ञा है।" प्रभु श्री नारायण ने महर्षि कर्दम से आगे कहा कि - "हे ऋषिवर कालान्तर में देवहूति के गर्भ से तुम्हारे पुत्र के रूप में मेरा अवतार होगा। मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में अवतरित होकर समस्त संसार को सांख्यशास्त्र एवं भक्ति का ज्ञान प्रदान करूँगा।"

भगवान नारायण के वचनानुसार एक दिन महाराज मनु अपनी पुत्री सहित महर्षि कर्दम के आश्रम पर पधारे तथा उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह महर्षि कर्दम से करने का आग्रह किया। महर्षि कर्दम ने भी अपनी स्वीकृति प्रदान की। जिसके पश्चात् उन दोनों का विवाह सम्पन्न हो गया। विवाह के उपरान्त भी महर्षि कर्दम तपश्चर्या में लीन हो गये। उनकी धर्मपत्नी देवहूति निरन्तर भक्ति एवं समर्पण से महर्षि कर्दम और उनके आश्रम की सेवा में तत्पर रहती थी। राजमहल का वैभवशाली जीवन त्यागकर वे अब वल्कल धारण करने वाली तपस्विनी का जीवन व्यतीत कर रही थीं।

देवहूति की पति के प्रति भक्ति, समर्पण एवं सेवाभाव से प्रसन्न होकर महर्षि ने उनसे कहा - "हे शुभे! तुमने भक्तिभाव एवं समर्पण से मेरी सेवा की है, मैं तुम्हारी किस कामना की पूर्ति करूँ?" देवहूति ने महर्षि कर्दम के समक्ष सन्तान प्राप्ति की इच्छा प्रकट की। महर्षि कर्दम ने देवहूति को उनकी कामना की पूर्ति का आशीष प्रदान किया। तदनन्तर देवहूति के गर्भ से 9 पुत्रियों का जन्म हुआ।

कालान्तर में महर्षि कर्दम के हृदय में पूर्ण वैराग्य का उदय हुआ, जिसके कारण उन्होंने अकेले ही तपस्या के उद्देश्य से वनगमन का निश्चय किया। महर्षि के इस निर्णय के विषय में ज्ञात होने पर देवहूति ने व्यथित होकर उनसे कहा - "हे स्वामी! यद्यपि मैं इन्द्रियों के विषय में मूढ़ हूँ। मैं आपके प्रभाव से अनभिज्ञ रही, तथापि आपके तुल्य महापुरुष का संग कल्याणकारी होना चाहिये। हे प्रभो! कृपया मेरे उद्धार का कोई मार्ग बतलायें।" अपनी धर्मपत्नी के मुख से इस वचन को सुनकर महर्षि बोले - "हे कल्याणी! तुम व्याकुल न हो, तुम्हारे गर्भ से परम पुरुष अवतरित होने वाले हैं। वे ही तुम्हें तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे। मैं उनका दर्शन करने के पश्चात् ही यहाँ से प्रस्थान करूँगा।" तदनन्तर उचित समय आने पर भगवान श्री हरि विष्णु देवहूति के गर्भ से कपिल मुनि के रूप में अवतरित हुये। अपने कथनानुसार कपिल मुनि के दर्शन के पश्चात् आदेश लेकर महर्षि कर्दम तपस्या हेतु वन में चले गये।

भगवान कपिल ने अपनी माता देवहूति को तत्वज्ञान का उपदेश करते हुये कहा - "यह मन ही मनुष्य के बन्धन एवं मोक्ष का कारण है। मनुष्यों को सभी ओर से अपने मन को खींचकर भगवान के स्वरूप में स्थित करना चाहिये।" माता को भक्ति व सांख्य शास्त्र का उपदेश देकर भगवान कपिल समुद्र तट पर पहुँच गये। कथानुसार समुद्र ने कपिल देव को अपने तल में स्थान प्रदान किया। माता देवहूति अपने पुत्र के मुख से उपदेश श्रवण करने के उपरान्त भगवान में अपना मन स्थित करके मुक्ति को प्राप्त हो गयीं।

भगवान कपिल द्वारा प्रदान किये गये सांख्यशास्त्र के उपदेश का उद्देश्य तत्वज्ञान के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करना है। ब्राह्मण ग्रन्थों में यज्ञकर्म के माध्यम से अपवर्ग की प्राप्ति का वर्णन प्राप्त होता है। सांख्य दर्शन में कर्मकाण्ड से अधिक ज्ञानकाण्ड को महत्वपूर्ण माना गया है। उपनिषदों में ज्ञान को कर्म से उत्तम माना गया है।

इस प्रकार भगवान विष्णु ने कपिल मुनि के रूप में अवतरित होकर संसार को सांख्य दर्शन का ज्ञान प्रदान किया था।

महर्षि कपिल कुटुम्ब वर्णन

कपिल ऋषि के पिता कर्दम ऋषि एवं माता देवहूति थीं। वामन पुराण के अनुसार कपिल ऋषि का विवाह केशिनी नामक स्त्री से हुआ था तथा उन दोनों से ही यक्षों की उत्पत्ति हुयी थी।

महर्षि कपिल स्वरूप वर्णन

कपिल ऋषि को जटा-जूटधारी कमण्डलु, जपमाला एवं ब्रह्मदण्ड आदि धारण किये हुये एक वृद्ध ऋषि के रूप में दर्शाया जाता है। वे गेरुआ रंग के वस्त्र धारण करते हैं तथा पद्मासन में विराजमान रहते हैं।

महर्षि कपिल मन्त्र

मूल मन्त्र -

ॐ श्रीगुरुकपिलेभ्यो नमः।

महर्षि कपिल से सम्बन्धित त्यौहार

  • कपिल मुनि जयन्ती
  • कपिल मुनि मेला, बीकानेर, राजस्थान
  • गङ्गासागर मेला

महर्षि कपिल के प्रमुख एवं प्रसिद्ध मन्दिर

  • कपिल मुनि मन्दिर, गङ्गासागर, पश्चिम बंगाल
  • कपिल मुनि आश्रम, उत्तरकाशी, उत्तराखण्ड
  • कपिल मुनि मन्दिर, कलायत, हरियाणा
  • कपिल मुनि आश्रम, कतारगाम, सूरत, गुजरात
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