एक समयकी बात है, ब्रह्मा आदि देवताओंने पुष्प आदि विविध उपचारोंसे महेश्वरी दुर्गाका पूजन किया। इससे प्रसन्न होकर दुर्गतिनाशिनी दुर्गा ने कहा - 'देवताओ! मैं तुम्हारे पूजनसे संतुष्ट हूँ, तुम्हारी जो इच्छा हो, माँगो, मैं तुम्हें दुर्लभ-से-दुर्लभ वस्तु भी प्रदान करूँगी।' दुर्गाका यह वचन सुनकर देवता बोले - 'देवि! हमारे शत्रु महिषासुर को, जो तीनों लोकोंके लिये कंटक था, आपने मार डाला, इससे सम्पूर्ण जगत् स्वस्थ एवं निर्भय हो गया। आपकी ही कृपासे हमें पुनः अपने-अपने पदकी प्राप्ति हुई है। आप भक्तोंके लिये कल्पवृक्ष हैं, हम आपकी शरणमें आये हैं। अतः अब हमारे मनमें कुछ भी पानेकी अभिलाषा शेष नहीं है। हमें सब कुछ मिल गया। तथापि आपकी आज्ञा है, इसलिये हम जगत्की रक्षाके लिये आपसे कुछ पूछना चाहते हैं। महेश्वरि! कौन-सा ऐसा उपाय है, जिससे शीघ्र प्रसन्न होकर आप संकटमें पड़े हुए जीवकी रक्षा करती हैं। देवेश्वरि! यह बात सर्वथा गोपनीय हो तो भी हमें अवश्य बतावें।'
देवताओंके इस प्रकार प्रार्थना करनेपर दयामयी दुर्गादेवीने कहा - 'देवगण! सुनो - यह रहस्य अत्यन्त गोपनीय और दुर्लभ है। मेरे बत्तीस नामोंकी माला सब प्रकारकी आपत्तिका विनाश करनेवाली है। तीनों लोकोंमें इसके समान दूसरी कोई स्तुति नहीं है। यह रहस्यरूप है। इसे बतलाती हूँ, सुनो -
1 - दुर्गा, 2 - दुर्गार्तिशमनी, 3 - दुर्गापद्विनिवारिणी, 4 - दुर्गमच्छेदिनी, 5 - दुर्गसाधिनी, 6 - दुर्गनाशिनी, 7 - दुर्गतोद्धारिणी, 8 - दुर्गनिहन्त्री, 9 - दुर्गमापहा, 10 - दुर्गमज्ञानदा, 11 - दुर्गदैत्यलोकदवानला, 12 - दुर्गमा, 13 - दुर्गमालोका, 14 - दुर्गमात्मस्वरूपिणी, 15 - दुर्गमार्गप्रदा, 16 - दुर्गमविद्या, 17 - दुर्गमाश्रिता, 18 - दुर्गमज्ञानसंस्थाना, 19 - दुर्गमध्यानभासिनी, 20 - दुर्गमोहा, 21 - दुर्गमगा, 22 - दुर्गमार्थस्वरूपिणी, 23 - दुर्गमासुरसंहन्त्री, 24 - दुर्गमायुधधारिणी, 25 - दुर्गमाङ्गी, 26 - दुर्गमता, 27 - दुर्गम्या, 28 - दुर्गमेश्वरी, 29 - दुर्गभीमा, 30 - दुर्गभामा, 31 - दुर्गभा, 32 - दुर्गदारिणी
जो मनुष्य मुझ दुर्गाकी इस नाममालाका पाठ करता है, वह निःसन्देह सब प्रकारके भयसे मुक्त हो जायगा।'
'कोई शत्रुओंसे पीड़ित हो अथवा दुर्भेद्य बन्धनमें पड़ा हो, इन बत्तीस नामोंके पाठमात्रसे संकटसे छुटकारा पा जाता है। इसमें तनिक भी संदेहके लिये स्थान नहीं है। यदि राजा क्रोधमें भरकर वधके लिये अथवा और किसी कठोर दण्डके लिये आज्ञा दे दे या युद्धमें शत्रुओंद्वारा मनुष्य घिर जाय अथवा वनमें व्याघ्र आदि हिंसक जन्तुओंके चंगुलमें फँस जाय तो इन बत्तीस नामोंका एक सौ आठ बार पाठमात्र करनेसे वह सम्पूर्ण भयोंसे मुक्त हो जाता है। विपत्तिके समय इसके समान भयनाशक उपाय दूसरा नहीं है। देवगण! इस नाममालाका पाठ करनेवाले मनुष्योंकी कभी कोई हानि नहीं होती। अभक्त, नास्तिक और शठ मनुष्यको इसका उपदेश नहीं देना चाहिये। जो भारी विपत्तिमें पड़नेपर भी इस नामावलीका हजार, दस हजार अथवा लाख बार पाठ स्वयं करता या ब्राह्मणोंसे कराता है, वह सब प्रकारकी आपत्तियोंसे मुक्त हो जाता है। सिद्ध अग्निमें मधुमिश्रित सफेद तिलोंसे इन नामोंद्वारा लाख बार हवन करे तो मनुष्य सब विपत्तियोंसे छूट जाता है। इस नाममालाका पुरश्चरण तीस हजारका है। पुरश्चरणपूर्वक पाठ करनेसे मनुष्य इसके द्वारा सम्पूर्ण कार्य सिद्ध कर सकता है। मेरी सुन्दर मिट्टीकी अष्टभुजा मूर्ति बनावे, आठों भुजाओंमें क्रमशः गदा, खड्ग, त्रिशूल, बाण, धनुष, कमल, खेट (ढाल) और मुद्गर धारण करावे। मूर्तिके मस्तकमें चन्द्रमाका चिह्न हो, उसके तीन नेत्र हों, उसे लाल वस्त्र पहनाया गया हो, वह सिंहके कंधेपर सवार हो और शूलसे महिषासुरका वध कर रही हो, इस प्रकारकी प्रतिमा बनाकर नाना प्रकारकी सामग्रियोंसे भक्तिपूर्वक मेरा पूजन करे। मेरे उक्त नामोंसे लाल कनेरके फूल चढ़ाते हुए सौ बार पूजा करे और मन्त्र-जप करते हुए पूएसे हवन करे। भाँति-भाँति के उत्तम पदार्थ भोग लगावे। इस प्रकार करनेसे मनुष्य असाध्य कार्यको भी सिद्ध कर लेता है। जो मानव प्रतिदिन मेरा भजन करता है, वह कभी विपत्तिमें नहीं पड़ता।'
देवताओंसे ऐसा कहकर जगदम्बा वहीं अन्तर्धान हो गयीं। दुर्गाजीके इस उपाख्यानको जो सुनते हैं, उनपर कोई विपत्ति नहीं आती।